15 फरवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर रहेंगे राज्य के खाद्यान्न व वनोपज व्यापारी
कृषि बाजार शुल्क के खिलाफ व्यापारियों में आक्रोश
व्यापारियों के समर्थन में भाजपा भी उतरी
राज्य सरकार से विधेयक वापस लेने की मांग
स्निग्धा मित्रा
रांची : सर्दियों की गुलाबी ठंड में झारखंड का पारा गर्म नजर आ रहा है। 3 फरवरी 2023 को झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने चार सुझावों के साथ झारखंड विधानसभा से पारित ‘झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन विधेयक-2022 को अपनी सहमति प्रदान की। जिसपर चर्चा के लिए उन्होंने कृषि एवं पशुपालन मंत्री बादल को राजभवन बुलाया था।
राज्यपाल ने झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन विधेयक, 2022 पर अपनी स्वीकृति राज्य सरकार को कुछ सुझाव भी दिये थे। उन्होंने कहा था कि इस विधेयक के आलोक में नियमावली के गठन के दौरान सभी हितधारकों से व्यापक चर्चा सुनिश्चित की जाए। वहीं इस विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद अब राज्य में खाद्यान्न खरीदारों से दो प्रतिशत कृषि बाज़ार टैक्स और तुरंत नष्ट होने वाले कृषि उपज पर एक प्रतिशत टैक्स लगेगा। इसे लेकर झारखंड के करीब डेढ़ लाख खाद्यान्न व्यवसायियों में भारी आक्रोश है।
इस विधेयक को लेकर व्यापारियों ने एकजुट होकर कहा कि कृषि उत्पाद की खरीद-बिक्री पर सरकार की ओर से दो प्रतिशत कृषि बाजार शुल्क लगाया गया है, जो पूरी तरह से तानाशाही और अफसरशाही है। हालांकि विधेयक वापस लेने की मांग को लेकर राज्य सरकार से व्यपारियों ने कई बार बातचीत की। कोई नतीजा नहीं निकलने के बाद फेडरेशन ऑफ झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के आह्वान पर व्यवसायियों ने 15 फरवरी से राज्यव्यापी बंदी करने की घोषणा की है। वहीं राज्य में व्यवसायियों की सबसे बड़ी संस्था का मानना है कि इस बिल से व्यवसायियों के व्यापार और स्वाभिमान को ठेस पहुंचेगा।
इस संबंध में झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष किशोर मंत्री ने कहा कि इस कानून को राज्य सरकार ने विधानसभा से पारित किया है। जिसका विरोध शुरू से ही राज्य भर के व्यापारी कर रहे हैं। इसके बाद भी राज्य सरकार इस कानून को वापस नहीं ले रही है। उसी के विरोध में कल से पूरे राज्य में खाद्यान्न व्यवसायी हड़ताल पर रहेंगे।
झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स के कोल्हान प्रमंडलीय उपाध्यक्ष नितिन प्रकाश ने भी झारखंड राज्य कृषि उपज एवं पशुधन विपणन विधेयक, 2022 पर अफसोस जताया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक पूर्ण रूप से किसान, व्यापारी व जनता विरोधी है। इसके विरोध में राज्य भर के खाद्यान्न व वनोपज व्यवसायी 15 फरवरी से अपना कारोबार बंद रखेंगे। राज्य में किसी भी तरह से खाद्यान्न का क्रय-विक्रय नहीं होगा। जबतक राज्य सरकार इस विधेयक को वापस नहीं ले लेती है, तब तक विरोध जारी रहेगा।
इधर कृषि बिल को लेकर व्यपारियों के अलावा राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गयी है। मामले को लेकर भाजपा सांसद संजय सेठ ने कहा की रघुवार सरकार ने जिस पाप को खत्म किया था, आज फिर हेमंत सरकार उस पाप को बढावा दे रही है। व्यापरियों को डरा धमका कर वसूली किया जा रहा है, जिससे छोटे व्यपारी बिना किसी गलती के मारे जाएंगें। दूसरी तरफ भाजपा ने व्यवसयियों के हड़ताल का नौतिक समर्थन किया है।
इस मुद्दे पर विधानसभा में सरकार को घेरने की बात भी कही है। वहीं झामुमो का कहना है कि राज्यपाल के स्वीकृति के बाद ही कृषि बिल को लाया गया है, इसके बावजूद व्यवसायियों को किसी तरह की आपत्ति है तो उन्हें सीएम से मिलकर समाधान निकालना चाहिए।
गौरतलब है कि 24 मार्च 2022 को झारखंड विधानसभा से यह विधेयक पारित करा कर पहली बार राज्यपाल के पास भेजा गया था। लेकिन राज्यपाल की ओर से हिन्दी-अंग्रेजी रूपांतरण सहित अन्य कई आपत्तियों के साथ इसे अस्वीकृत कर सरकार को 17 मई 2022 को लौटा दिया था। राज्यपाल ने विधेयक के संबंध में कई सुझाव भी राज्य सरकार को दिये थे। इस विधेयक में मुख्य रूप से किसानों के उत्पाद को बाज़ार उपलब्ध कराने की बात कही गई थी। बहरहाल , किसानों ,व्यवसायियों और आम उपभोक्ताओं को लाभ देने के लिए रघुवर दास की सरकार ने कृषि बिल को खत्म कर दिया था, लेकिन हेमंत सरकार ने फिर 2 फीसदी टैक्स बढ़ा कर किसानों और आम उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ा दिया है।
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