कैदी की मौत के मामले में पूर्व ओसी को 25 साल के बाद मिली सजा

पुरुलिया कोर्ट ने सुनायी सजा

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पुरुलियाः पुरुलिया के शाबर परिवार को 25 साल के बाद कोर्ट से न्याय मिला है। कोर्ट के इस फैसले को उस परिवार के लोगों ने स्वागत किया है। एक विचाराधीन कैदी बुधन शाबर की जेल हिरासत में मौत के मामले में सोमवार को पुरुलिया कोर्ट के जज ने पूर्व ओसी अशोक राय को 8 साल की सजा सुनाई है।

इसके अलावा 30,000 रुपये का जुर्माना (डिफ़ॉल्ट रूप से 1 वर्ष कारावास) की भी सजा दी है। ढाई दशक बाद मृत युवक बुधन शाबर की पत्नी और परिजनों को न्याय मिलने से थोड़ी राहत मिली है।

उस दिन, पुरुलिया न्यायालय के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश जहांगीर कबीर ने फैसला सुनाया कि बुधन शाबर को आत्महत्या के लिए अशोक राय ने उकसाया था।

यहां बता दें कि बुधन शाबर को गिरफ्तार बड़ाबाजार थाने की पुलिस ने पुरुलिया कोर्ट में पेश किया था। तत्कालीन जज ने उसे 5 दिनों के लिए जेल हिरासत में भेज दिया था।

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आरोप है कि पुलिस हिरासत में बुधन को बुरी तरह पीटा गया था। उसी दिन उसे दोबारा कोर्ट में पेश किया गया। उसके अगले दिन की शाम को उसकी मौत हो गई। शाम 6:10 बजे जेल के सेल नंबर -2 से उसका शव बरामद किया गया।

उसने तौलिया के सहारे फांसी लगाया था। परिवार के लोग बुधन से मिलने गए तो जेल प्रशासन ने बताया कि बुधन ने जेल में आत्महत्या कर ली है। उस समय उसकी उम्र महज 27 साल थी। इस घटना के बाद महाश्वेता देवी ने कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की थी।

वे पश्चिम बंगाल खेरिया-शाबर वेलफेयर एसोसिएशन की कार्यकारी अध्यक्ष थीं। बुधन की मौत के बाद उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस इस मामले में झूठ बोल रही है। उन्होंने कहा कि बुधन की जेल हिरासत में मौत हो गई। महाश्वेता देवी की इस आरोपों खंडन किया भी किया था।

तब महाश्वेता देवी ने एक पोस्ट कार्ड पर पत्र लिखकर इस मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से हस्तक्षेप की मांग की। इस पत्र को उच्च न्यायालय ने एक रिट याचिका के रूप में स्वीकार कर लिया था। चीफ जस्टिस ने इसे जनहित याचिका के तौर पर जस्टिस रूमा पाल के पास भेज दिया।  जनजाति खेरिया शाबर समाज के अनुसार बुधन के शव को उसके घर के अंदर जमीन में दफना दिया गया था। हाईकोर्ट के आदेश के बाद  शव को कब्र से निकाल कर फिर से पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। बाद में कोर्ट में पोस्टमार्टम की वीडियो रिकॉर्डिंग पेश की गई। उसी साल 8 जुलाई को हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था। इससे पहले, राज्य सरकार को रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया था। यह मामला 25 साल तक चला। इस दौरान 46 गवाह पेश किए गए। इस मामले का आरोप पत्र 2002 में दायर किया गया था। सिट का गठन 2003 में किया गया था। उसके बाद फिर ट्रायल शुरू हुआ। तत्कालीन ओसी अशोक रॉय दोषी पाये गये थे।