पश्चिम बंगाल के पूर्व गवर्नर केसरीनाथ त्रिपाठी का निधन, प्रयागराज में ली अंतिम सांस
शाम 4:00 बजे प्रयागराज के रसूलाबाद घाट पर अंतिम संस्कार होगा
प्रयागराज/कोलकाताः बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व गवर्नर पंडित केसरी नाथ त्रिपाठी का रविवार सुबह करीब 5 बजे निधन हो गया। लगभग 89 वर्ष की आयु में पंडित त्रिपाठी ने अपने प्रयागराज स्थित आवास पर अंतिम सांस ली।
परिवार की तरफ से मिली जानकारी के मुताबिक शाम 4:00 बजे प्रयागराज के रसूलाबाद घाट पर अंतिम संस्कार होगा। केसरीनाथ त्रिपाठी के निधन पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शोक जताया है। साथ में यूपी बीजेपी ने अपने तमाम कार्यक्रम को रद्द कर दिया है।
बता दें कि 30 दिसंबर 2022 को तबीयत बिगड़ने पर पंडित त्रिपाठी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि, उसके बाद 4 जनवरी को तबीयत में सुधार होने पर डिस्चार्ज होकर घर आ गए थे।
पंडित केसरी नाथ त्रिपाठी अपने पीछे पुत्र अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी और दो बेटियों को छोड़ गए हैं। केसरीनाथ त्रिपाठी को आज ही लखनऊ के एसजीपीजीआई में भर्ती कराया जाना था।
तीन बार यूपी विधानसभा के अध्यक्ष रहे
पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी का जन्म 10 नवंबर 1934 को हुआ था। पंडित केसरी नाथ त्रिपाठी बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ ही साथ यूपी विधानसभा के कई वर्षों तक अध्यक्ष रहे। पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी तीन बार यूपी विधानसभा अध्यक्ष रहे।
भारतीय जनता पार्टी के यूपी ईकाई के अध्यक्ष भी रहे। पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी 2014 से 2019 तक पश्चिम बंगाल के गवर्नर रहे इस बीच उन्हें बिहार, मेघालय और मिजोरम राज्यों का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया।
पंडित केसरी नाथ त्रिपाठी की राजनीतिक यात्रा
झूंसी विधानसभा क्षेत्र से जनता पार्टी के सदस्य के रूप में 1977 से 80 तक विधायक रहे। इसी दौरान यूपी में संस्थागत वित्त और बिक्री कर के कैबिनेट मंत्री की भी जिम्मेदारी मिली। पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी अप्रैल 1980 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए ।
जिसके बाद इलाहाबाद दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से 1989, 1991, 1993, 1996 और 2002 में विधायक चुने गए। उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष 1991 से 93 और 1997 से 2004 तक रहे । 2004 में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए और भाजपा के राष्ट्रीय अनुशासन समिति के सदस्य भी रहे।
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2012 में प्रयागराज की इलाहाबाद दक्षिण विधानसभा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े और हार का सामना करना पड़ा। यहीं से राजनीतिक कैरियर का पतन शुरू हो गया।
पुरस्कार, सम्मान और उपलब्धियां
पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। उन्हें विश्व भारती पुरस्कार, उत्तर प्रदेश रत्न पुरस्कार, हिंदी गरिमा सम्मान, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान, साहित्य वाचस्पति सम्मान, अभिषेक श्री सम्मान, बागीश्वरी सम्मान, चाणक्य सम्मान कनाडा में और काव्य कौस्तुभ सम्मान से सम्मानित किया गया है।
प्रारम्भिक शिक्षा
पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी की प्रारंभिक शिक्षा प्रयागराज में हुई। उन्होंने सेंट्रल हिंदू स्कूल, सरयूपारीण स्कूल अब सर्वाय इंटर कॉलेज और अग्रवाल इंटर कॉलेज से स्कूली शिक्षा पूरी की।
इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से उच्च शिक्षा ग्रहण की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1953 में कला स्नातक, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1955 में लॉ की डिग्री और चौधरी चरण विश्वविद्यालय मेरठ से मानद डी लिट की डिग्री हासिल की है।
बेटे नीरज त्रिपाठी हाईकोर्ट में अपर महाधिवक्ता हैं
पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी के बेटे नीरज त्रिपाठी इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपर महाअधिवक्ता हैं, जबकि बहू कविता यादव त्रिपाठी बीजेपी में सक्रिय हैं।
दो विवाहित बेटियां नमिता त्रिपाठी और निधि त्रिपाठी हैं। निधि त्रिपाठी सशस्त्र सेना मुख्यालय सेवा नई दिल्ली में अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी का विवाह 1958 में सुधा त्रिपाठी के साथ हुआ था।
सुधा त्रिपाठी की मृत्यु 2016 में ब्रेन स्ट्रोक के चलते दिल्ली एम्स में हुई थी. केसरीनाथ त्रिपाठी के पिता हरीश चंद्र त्रिपाठी इलाहाबाद हाईकोर्ट में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे और 1949 में सेवानिवृत्त हुए थे और मां शिवा देवी गृहणी थीं। पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी के बड़े भाई काशी नाथ त्रिपाठी थे।
कश्मीर आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया
पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान सामाजिक कार्य और राष्ट्रीय राजनीति में रुचि रखते थे. 1946 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस का सदस्य बनकर और 1952 में दक्षिणपंथी राजनीतिक दल जनसंघ के साथ जुड़कर राजनीति में अपना कदम रखा था।
उन्होंने 1953 में जनसंघ द्वारा शुरू किए गए कश्मीर आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. जिसके कारण उनकी उनकी गिरफ्तारी हुई और नैनी सेंट्रल जेल यूपी में अल्पकालीन कारावास भी हुआ।
जाने-माने कानून के ज्ञाता थे
पंडित केसरी नाथ त्रिपाठी ने 1956 में उत्तर प्रदेश की बार काउंसिल में एक वकील के रूप में नामांकन किया। जिसके बाद उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की।
उसी वर्ष में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद के संयुक्त सचिव बने. उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत में कई वर्षों तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता जगदीश स्वरूप के जूनियर के रूप में भी काम किया।
एक वकील के रूप में केसरी नाथ त्रिपाठी चुनाव कानून के विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई, चौधरी चरण सिंह, सुब्रमण्यम स्वामी, राजनारायण, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, लक्ष्मीकांत बाजपेई और जैसे विभिन्न विशिष्ट व्यक्तियों का केस उन्होंने लड़ा।
कई अन्य मंत्री, लोकसभा और विधानसभा के सदस्य भी कानूनी मशवरा लेते थे। उनकी पार्टी के अलावा दूसरी राजनीतिक दलों के भी लोग उनसे कानूनी मशविरा लेते थे। समाजवादी पार्टी के संस्थापक रहे मुलायम सिंह यादव भी उनके अच्छे मित्र थे और वह भी कानूनी सलाह लेने उनके पास अक्सर आया करते थे।
हाईकोर्ट के जज का ऑफर ठुकराया
हालांकि 1980 में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया था।
उन्होंने दो कार्यकाल 1987 से 88 और 88 से 89 के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। वह 1989 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता बने।
उन्होंने वर्ष 1991 से 93 और 97 में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की शाखा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. उन्होंने 1991, 1992, 1997,1998, 2000 और 2001 में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के सम्मेलन में भाग लिया।
एक कुशल लेखक और कवि भी रहे
पंडित केसरी नाथ त्रिपाठी को हिंदी भाषा के एक सक्रिय प्रवर्तक के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने 1999 में लंदन में विश्व हिंदी सम्मेलन और 2003 में पारामारिबो में प्रतिभाग किया था।
उन्होंने यूपी हिंदी संस्थान लखनऊ के कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में भी सेवाएं दी हैं। पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी एक कुशल लेखक और कवि भी रहे।
उन्होंने डेस्टिनेशन जीसस पुस्तक 2021 में, द विंग्स आफ एज 2018, जख्मों पर शबाब 2017, ख्यालों का सफर 2017, द इमेजेज 2002, जैसी कई किताबें लिखीं. इसके अलावा उन्होंने 1974 में प्रकाशित जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 पर एक विस्तृत टिप्पणी भी लिखी है।