रांची : झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस का तबादला महाराष्ट्र हो गया है। झारखंड में 10वें राज्यपाल के तौर पर बैस का करीब एक साल आठ महीने का कार्यकाल राजनीतिक विवादों के लिए याद किया जाएगा। तकरीबन एक दर्जन से भी ज्यादा मौकों पर राज्यपाल रमेश बैस और राज्य की मौजूदा हेमंत सोरेन सरकार के बीच विवाद, टकराव और परस्पर असहमति के हालात बने।
एक तरफ जहां राज्यपाल ने झारखंड में ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी के गठन के मुद्दे पर राज्य सरकार द्वारा उनके अधिकारों के अतिक्रमण की शिकायत केंद्र तक पहुंचाई, तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन ने उनपर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने और राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता का माहौल पैदा करने के आरोप लगाए।
छत्तीसगढ़ निवासी रमेश बैस की नियुक्ति सात जुलाई, 2021 को बतौर राज्यपाल झारखंड के रूप में हुई। राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ उनके संबंध शुरू में काफी अच्छे रहे। कई मौके पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री एक साथ एक गाड़ी में सवार होकर आते-जाते रहे लेकिन धीरे-धीरे दोनों के संबंध खराब होते चले गए। संबंध इतने खराब हुए कि राज्यपाल 15 नवंबर को स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनाए जाने के बाद भी कार्यक्रम में नहीं गए।
इसके बाद सरकार पर कई तरह के आरोप लगे। कहा गया कि सरकार द्वारा जरूरी प्रोटोकॉल फ्लो नहीं किया गया। इतना ही नहीं राज्यपाल पर सीधे तौर पर राज्य सरकार को अस्थिर करने का भी आरोप लगा। मुख्यमंत्री सीधे तौर पर कई बार राज्यपाल को निशाने पर लिया। इतना नहीं राज्यपाल ने भी कई तरह के ऐसे बयान दिए, जिससे झारखंड की सियासत में विवाद पैदा हुआ।
10 फरवरी, 2022 को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रेस वार्ता करके सीएम हेमंत सोरेन पर अनगड़ा पत्थर खनन लीज मामले पर गंभीर आरोप लगाए। इसके बाद भाजपा नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिला। हेमंत सोरेन को जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 9 (ए) के तहत विधायक पद से अयोग्य ठहराने और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने की मांग की। इसके बाद राज्यपाल ने इसपर त्वरित कार्रवाई शुरू करते हुए इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया से मंतव्य मांगा।
आयोग ने परामर्श देने से पहले सीएम और भाजपा नेताओं को अपना-अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस दिया। 27 अप्रैल को दिल्ली में पीएम और गृह मंत्री से राज्यपाल मिले। इसके बाद राज्य की राजनीति गर्म हो गयी। 28 जून को आयोग ने सुनवाई शुरू की और 12 अगस्त तक चार तारीखों में बहस पूरी हो गयी। आयोग ने अपना मंतव्य देने से पहले 18 अगस्त तक दोनों पक्षों से लिखित जवाब मांगा। फिर यह खबर आयी कि आयोग का मंतव्य राजभवन को प्राप्त हो गया। अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। कहा गया कि अब कभी भी मुख्यमंत्री इस्तीफा दे सकते हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री के उत्तराधिकारी को लेकर भी कई तरह के नाम आने शुरू हो गए।
इसके बाद विधायकों को एयरलिफ्ट करने भी काम शुरू हो गया। विधायकों को एक बार खूंटी और दूसरी बार छत्तीसगढ़ ले जाया गया। आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। राजनीतिक अस्थिरता का दौर इतना बढ़ गया कि सीएम हेमंत सोरेन और झामुमो के निशाने पर सीधे राज्यपाल आ गए। यूपीए के प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिले और मांग की गयी कि अगर आयोग का जो भी मंतव्य आया है, उसे राजभवन क्लीयर करे। क्योंकि, राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन गया है। मुख्यमंत्री ने भी राजभवन से मांग किया कि अब मामले का पटाक्षेप हो जाना चाहिए।
इन विधेयकों को राज्यपाल ने लौटाया
-1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक को वापस कर दिया।
-भीड़ हिंसा (मॉब लिंचिंग) निवारण विधेयक। इसे दोबारा अभी तक विधानसभा से पारित नहीं किया गया।
-पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय विधेयक को लौटाया गया। इसके बाद इसे पुन: विधानसभा से पारित करके राजभवन भेजा गया। दूसरी बार में राज्यपाल ने मंजूरी प्रदान की।
-झारखंड राज्य कृषि उपज और पशुधन विपणन को वापस किया। सरकार ने दोबारा इसे भेजा। इसके बाद राज्यपाल ने मंजूरी प्रदान की। मगर कुछ शर्तों और सुझावों के साथ।
-कोर्ट फीस (झारखंड संशोधन) विधेयक को लौटाया और पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। दोबारा भेजने के बाद राज्यपाल ने इसकी मंजूरी प्रदान की।
-कराधान अधिनियम बकाया राशि समाधान विधेयक को वापस किया। सरकार ने इसे दोबारा पारित करके भेजा। दूसरी बार राज्यपाल ने इसे मंजूरी प्रदान की।
-वित्त विधेयक 2022 को राज्यपाल ने दूसरी बार वापस कर दिया। राज्यपाल ने इसमें जरूरी सुझाव देते हुए फिर से समीक्षा करने का निर्देश दिया।