हजारिबाग : कटकमसांडी ने विश्व में दर्ज कराई अपनी उपस्थिति

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हजारिबाग : झारखण्ड सिर्फ अपने खनिजों के भण्डार के लिए ही नहीं जाना जाता बल्कि जंगली जंगल की अछूती सुंदरता, अद्भुत वन्य जीवन और शानदार झरनों के लिए भी प्रसिद्ध है। झारखंड की समृद्ध और विविध संस्कृति और मनमोहक प्राकृतिक वैभव हर साल बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। वही बता दे की झारखंड में धर्म-धार्मिकता के प्राचीन अवशेष अक्सर मिलते हैं। यहां के छोटानागपुर के पठारों पर शिवलिंगों की बहुतायत है। वहीं, बौद्ध एवं जैन धर्म से जुड़े प्राचीन स्थलों की भी कमी नहीं है।

हजारों साल पुराने में गालिथ यहां मिलते हैं। ऐसे स्मारक हजारीबाग, रांची, चतरा, लोहरदगा आदि जिलों में हैं। झारखंड में शैल चित्रा और गुफा चित्रा भी काफी पुराने मिलते हैं। हजारीबाग-पलामू-लोहरदगा, गुमला, पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम जैसे इलाकों में इन्हें देखा जा सकता है। पर्यटक जब भी झारखण्ड आते तो यहाँ के मंदिरों में पूजा पाठ भी करते है। आपको बता दे की रांची के माही क्रिकेट के दुनिया के सबसे चमकते सितारे महेंद्र सिंह धोनी का रांची के मां दिउड़ी मंदिर से माही की अटूट आस्‍था जुड़ी है। माही के दिउड़ी मंदिर बार-बार दर्शन के लिए आने की वजह से इस मंदिर को खासी प्रसिद्धि मिली। माना जाता है कि धोनी जब-जब अपने घर रांची जाते हैं, वह मां देउड़ी के दर्शन करने जरूर जाते हैं। हाल ही में सुपरस्टार रजनीकांत इन दिनों झारखंड दौरे पर थे उसी दौरान रजरप्पा मंदिर में देवी के दर्शन किए और मां छिन्नमस्ता का आशीर्वाद लिया।

आपको बता दे कि हजारीबाग जिले के कटकमसांडी प्रखंड की डांटो पंचायत के डांटो खुर्द के मूर्तिया टोला में नौवीं से 12वीं शताब्दी की मूर्ति मिली है। मूर्ति काले पत्थर से बनी है। इस मूर्ति की ऊंचाई करीब ढाई फीट है। मुख्य मूर्ति का बायां हाथ आधा खंडित है, जबकि एक हाथ नीचे की ओर आशीर्वाद की मुद्रा में है। बायें हाथ में भाले की आकृति है। मूर्ति ठीक नीचे दो छोटी छोटी प्रतिमा और बनी हुई है। एक हाथ में फरसा व दूसरे हाथ में फूल की आकृति बनी हुई है। यहां के लोग इस मूर्ति को मां काली के रूप में करते हैं। भारतीय पुरातात्विक विभाग, रांची के सेवानिवृत्त उपनिदेशक एचपी सिन्हा ने इस मूर्ति की पहचान बौद्ध देवी तारा के रूप की है। उन्होंने कहा कि मूर्ति में बनी नक्काशी पाल कालीन सभ्यता में बनी मूर्तियों से मिलती जुलती है। इतिहासकार अंगद किशोर का मानना है कि यह मूर्ति बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा की बौद्ध देवी तारा की मूर्ति है।

 

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