कोलकाता: कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल में एक फैसले में कहा था कि तलाक के बाद शादी का वादा करके लिव इन रिलेशन में रहना धोखा नहीं है और न ही इसे रेप कहा जा सकता है। हाईकोर्ट उस फैसले के बाद फिर से एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि सहमति से बनाया गया संबंध रेप नहीं कहा जा सकता है।
पश्चिम बंगाल के बरहमपुर कोर्ट ने आरोपी को नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के आरोप में 2021 में सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय में आरोपी ने कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति देवांशु बसाक और न्यायमूर्ति शब्बर रशीदी की खंडपीठ में समीक्षा याचिका दायर की थी।
उस मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत में दोषी ठहराए गए आरोपी को बरी कर दिया था और कहा कि दोनों ने सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे। यह रेप नहीं हो सकता है।
इतना ही नहीं, हाईकोर्ट ने लड़की की उम्र पर भी सवाल उठाया। कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता जो बात कर रही है। वह उसकी उम्र से मेल नहीं खाती है। शिकायतकर्ता का आरोप है कि आरोपी ने उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया।
यह भी आरोप लगाया गया था कि जब वह 13 साल की थी, तब एक व्यक्ति ने एक गांव में लड़की के साथ कई बार बलात्कार किया। बाद में सुनवाई के दौरान खुलासा हुआ कि लड़की की मौजूदा उम्र 37 साल है। यह भी स्पष्ट है कि शादी को मजबूर करने के लिए दुष्कर्म का झूठा मामला दर्ज किया गया था।
शिकायतकर्ता के पिता, मां और बहन ने भी अदालत में रेप के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा। हाईकोर्ट ने सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद कहा कि इस मामले में दोनों की रजामंदी से शारीरिक संबंध बने और कोर्ट ने आरोपी को रेप के आरोप से बरी कर दिया।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि डीएनए परीक्षण रिपोर्ट से यह साबित होता है कि अपीलकर्ता पीड़िता से पैदा हुए बच्चे का पिता है। हालांकि कोर्ट ने कहा है कि किसी अन्य गवाह द्वारा बलात्कार के दावे की पुष्टि नहीं की गई है।