रांची : जवान झारखंड को खुशहाल बनाने का दावा लगभग राज्य के सभी राजनीतिक पार्टियां करती है। कमोवेश राज्य की जनता ने सभी राजनीतिक दलों को मौका भी दिया, लेकिन समस्या सुरसा की मुंह बनी हुई है। इस समस्या का मुख्य कारण राज्य में आईएएस, आईपीएस सहित अधिकारियों की भारी कमी है, जिसके कारण जनता के कार्यों का संपादन सही ढंग से नहीं हो पाता है। वर्तमान में भी दो दर्जन से ज्यादा आईएएस नहीं हैं।
मालूम हो कि झारखंड नये राज्य का गठन 15 नवंबर 2000 को हुआ था। अलग राज्य बनने का एकमात्र उद्देश्य था, झारखंड का विकास। राज्य तो अलग बना लेकिन जनता की समस्या जस की तस धरी रह गई और नेताओं की संपत्ति सौ गुणा से ज्यादा बढ़ गई और राज्य की पहचान एक भ्रष्ट प्रदेश के रूप में हो गई है।
जनता के कार्यों का निपटारा नहीं होने का मुख्य कारण अधिकारियों, कर्मचारियों की भारी कमी ही रही। एक-एक अधिकारी के पास चार चार विभाग रहे हैं, जिसका असर कार्यों के संपादन पर रहा है। झारखंड में आईएएस के कुल 215 पद स्वीकृत है लेकिन कार्यरत मात्र 185 हैं। यह भी तब जब पिछले दिनों राज्यसेवा के 40 अधिकारियों को प्रोन्नति मिली है। इसके पहले मात्र 145 आईएएस ही कार्यरत थे, जिसमें कुछ की पोस्टिंग केंद्र सरकार में भी थी। अभी भी कई आईएएस केंद्र की सेवा में है।
राज्य बनने के बाद झारखंड में आईएएस की कमी का रोना प्रदेश सरकार रोते रही है लेकिन इसकी भरपाई अभी तक नहीं हुई है। परंतु झारखंड सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर राज्यसेवा के अधिकारियों को प्रोन्नति देने से इतना तय हो गया है कि अब कोई विभाग प्रभार में नहीं चलेगा।