चाईबासा : झारखंड के भाजपा और समर्थित दल सचमुच झारखंड का भला चाहती है तो झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने का काम करें। ताकि देश के सबसे पिछड़े राज्य की श्रेणी में से राज्य को उभारा जा सके। यह प्रतिक्रिया झारखंड पुनरूत्थान अभियान के संयोजक सन्नी सिंकु ने दी है। विदित हो 9 वर्ष पहले तत्कालीन झाविमो और आजसू ने विधानसभा से लेकर सड़क पर भी मानव श्रृंखला आंदोलन चलाकर झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की थी । जिसमे विधानसभा में भाजपा विधायकगण भी समर्थन प्रदान किए थे। इन वर्षों में देश के पिछड़े हुए राज्यों में झारखंड का नाम शिखर पर शुमार है। साथ ही राज्य सरकार भी केंद्र से उचित राशि नहीं मिलने की रोना रोते रहता है। सत्ता दल और विपक्ष दोनों ही दल चाहती है कि राज्य सभी क्षेत्र में समग्र विकास करे। ताकि राज्य के सवा तीन करोड़ जनता की जीवन स्तर सुधरे,प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि हो।इसका बेहतर उपाय झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिलाना प्रतीत होता है। केंद्र राज्य को नब्बे प्रतिशत अनुदान दे तो राज्य सरकार का रोना बंद होगा। हालांकि ताज्जुब लगता है झारखंड सरकार 2020 से 2022 के वित्तीय वर्ष में जो राशि केंद्र से राज्य को प्राप्त हुई थी। उसे आदिवासी जिलों में नहीं खर्च कर पाई। यह भी राज्य की हास्यास्पद स्थिति है। सरकार और सरकरीतंत्र की शिथिलता की हद है।अब राज्य में नियोजन नीति की जद है। सरकार और विपक्ष के बीच खूब तन रही है। झारखंडी जनता दर्शक दीर्घा से देख रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष झारखंडी जनता के साथ कितनी संजीदगी से खड़ी है सर्वविदित है।
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झारखंड विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने की अहर्ता पूरी करती है।देश के जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है। उन राज्यों से भी अधिक झारखंड का आर्थिक स्थिति खराब है। झारखंड की भौगोलिक स्थिति पहाड़, पठार,जंगलों से घिरा हुआ है। झारखंड को आदिवासी राज्य के रूप में ही तत्कालीन भार साधक सदस्य ने घोषणा की थी। और राज्य के अंतराष्ट्रीय सीमा में बांग्लादेश अवस्थित है। राज्य की पहचान नक्सल प्रभावित राज्यों में की जाती है। खनिज की खुदाई से 68 प्रतिशत से अधिक भूमि की गुणवत्ता खराब हो गई है। भूमि का क्षरण के कारण 60 प्रतिशत से अधिक भूमि राज्य में बंजर भूमि की स्थिति में है।वन सर्वेक्षण के आधार पर घने जंगलों का क्षेत्रफल पहले से घटा है। पूरे देश में झारखंड की स्थिति सबसे खराब राज्यों की टॉप पर है। बड़े बांध और खनन से झारखंडियों की विस्थापन इनके सांख्यिकी पर पूरी तरह से प्रभाव डाल रही है।जबकि झारखंड बनने के बाद 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने राज्य के राज्यपाल से परामर्श करने के उपरांत झारखंड को अनुसूचित राज्य के रूप में घोषित किए है। पर राज्यपाल उल्लेखित स्थिति से सबंधित प्रतिवेदन प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को समायोजित करते है या नहीं यह समझ से परे है। राज्य सरकार राज्य में पदस्थापित नौकरशाह की निगरानी उचित रूप में करते है ऐसा नहीं लगता। क्योंकि जिला प्रशासन की ईमानदारी,निष्ठा,पारदर्शी और जवाबदेह कार्यसंस्कृति दिखाई नहीं देता । राज्य की जनता किसी भी आवश्यक सेवा के लिए कार्यालय का चक्कर काटते थक जाते है।इसलिए झारखंड पुनरुत्थान अभियान मांग करती है सचमुच झारखंड में स्थापित सत्तापक्ष और विपक्ष की राजनीति राज्य के सवा तीन करोड़ जनता पर केंद्रित है तो झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए एकजुट हो जाएं।