खामोश मोहब्बत की दास्तान है रांची का इमाम कोठी

सैयद अली इमाम ने अपनी बेगम अनीस फातिमा के लिए बनवाया था

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शिखा झा

रांची : बादशाह शाहजहाँ अपनी बेगम मुमताज़ से इतनी मोहब्बत करते थे कि उसे अमर बनाने के लिए उन्होंने ताजमहल बनवा दिया । ताजमहल आज दुनिया के अजूबों में से एक है। लेकिन जिनकी मैं बात कर रही न तो वे शाहजहां थे और न उनकी बेगम मुमताज। लेकिन उनके ख्यालों में प्रेम का प्रतीक एक ताजमहल तो तैरता ही था जो वे अपनी बेगम के लिए बनवाना चाहते थे। जब उनकी यह तमन्ना जमीन पर उतरी तो रांची की धरती ने वो आलीशान इमारत देखी जो खूबसूरती के लिए रांची में चर्चा का विषय बन गई, ये और बात थी कि इमाम साहब का ताजमहल संगमरमर से न बनकर लाल ईंटों और सुर्खी चूने से बना था। यूं तो कई नवाबों,राजाओं और बादशाहों ने भी अपनी महबूबाओं के लिए आलीशान इमारतें बनवाईं लेकिन वो न तो ताजमहल की तरह मशहूर हो पाईं और न ही यादगार बन पाईं।

प्रेम की गवाह है इमाम कोठी

रांची की इमाम कोठी भी मोहब्बत की ऐसी ही एक कहानी बयां करती है। एक वक़्त था जब रांची में खुली जगह की कमी नहीं थी।अंग्रेज़ों के ज़माने से ही रांची एक लोकप्रिय हिल स्टेशन बन चुका था, जहां बड़ी तादाद में सैलानी आया करते थे लेकिन पिछले कई सालों में शहरीकरण की दौड़ में झारखण्ड की राजधानी रांची शहर एक घनी आबादी वाले कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया। अगर लागों को यह बताया जाए कि इस कांक्रीट के जंगल के बीच एक विशाल क़िला या महल छुपा हुआ है तो शायद ही कोई विश्वास करे। दरअसल,एक ज़माने में रांची, बिहार की जानीमानी हस्तियों की पसंदीदा जगह हुआ करती थी और जिस महल की में बात कर रहा हूँ उसे ऐसे ही एक हस्ती ने , बड़ी प्यार से अपनी पत्नी के लिए बनवाया था। बदक़िस्मती से आज लोग इसे मोहब्बत की निशानी नहीं बल्कि भूतिया महल के रूप में जानते हैं। पिछले लगभग 13 सालों से यह महल टाइल्स का एक बड़ा गोदाम है।

इमाम कोठी प्यार के रंगों में रंगी कोठी है

इस आलीशान महल की अब यह हालत है की लोग न सिर्फ़ इसकी पहचान बल्कि इसके इतिहास को भी भूल बैठे हैं । जिस इसका नाम इमाम कोठी हुआ करता था। जानकार बताते हैं कि इमाम कोठी प्यार के रंगों में रंगी कोठी है। इस को कोठी ब्रिटिश हुकूमत के पहले बिहारी बैरिस्टर और हैदराबाद डेक्कन के प्राइम मिनिस्टर सर सैयद अली इमाम ने अपनी बेगम अनीस फातिमा के लिए बनवाया था। अनीस बेगम सर सैयद अली इमाम की तीसरी बेगम थी और उन्हीं के लिए उन्होंने रांची में यह इमारत बनवाई थी। उनकी चाहत तो यह थी कि मरने के बाद उनकी और उनकी बेगम की कब्र साथ रहे, जिससे वे मरकर भी जुदा न हों सके। लेकिन उनकी यह चाहत पूरी न हो सकी।

 

अनीस कैसल है इमारत का नाम

दरअसल इमाम कोठी एक लंबे समय तक वीरान पड़ी रही थी । लोगों को लगता था कि इस पर किसी भूत का साया है । लोगों के डर या अंधविश्वास का फ़ायदा उठाकर बदमाशों ने इसे अपना अड्डा बना लिया। इसके महंगे दरवाज़े और खिड़कियां स्थानीय गुंडों ने ही चुराए थे। यहां एक हत्या भी हुई थी। आख़िरकार, ये जगह मोतीलाल नाम के एक स्थानीय टाइल्स व्यापारी ने ख़रीद ली । उसने क़िले का एक गेट बनवाया और उसके चारों ओर दीवार खड़ी कर दी। इस भव्य इमारत और इसके परिसर को संगमरमर के गोदाम में बदल दिया गया।

120 कमरे हैं कोठी में

यह इमारत सन 1932 में बनी थी लेकिन सौ साल भी नहीं बीते और सपनों का यह महल गोदाम में तब्दील हो गया। सर अली इमाम चाहते थे कि मरने के बाद उनकी वाइफ की कब्र भी उनके कब्र के करीब बने। उन्होंने अनीस कैसल के पास दो कब्रें बनवाई थीं। एक कब्र में 1932 में अली इमाम के इंतकाल के बाद उन्हें दफना दिया गया, पर दूसरी कब्र आज तक खाली पड़ी है। अंतिम समय में लेडी इमाम पटना आईं और पटना में ही उनका इंतकाल हुआ। इंतकाल के बाद उन्हें पटना में ही दफना दिया गया।