झारखंड के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र, सरना धर्म कोड पर जल्द फैसला करने का किया आग्रह

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रांची : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर आदिवासियों के सरना धर्म कोड की मांग पर जल्द और सकारात्मक फैसला करने का आग्रह किया है। यह जानकारी बुधवार को मुख्यमंत्री ने एक्स (ट्विटर) हैंडल पर दी है। उन्होंने पत्र की फोटो भी ट्विटर पर साझा की है।
इस ट्वीट में मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को टैग भी किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखा है कि देश का आदिवासी समुदाय पिछले कई वर्षों से धार्मिक अस्तित्व की रक्षा के लिए जनगणना कोड में प्रकृति पूजक आदिवासी/सरना धर्मावलंबियों को शामिल करने की मांग को लेकर संघर्षरत है। साथ ही पूरा विश्वास जताया है कि जिस प्रकार प्रधानमंत्री समाज के वंचित वर्गों के कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं, उसी प्रकार इस देश के आदिवासी समुदाय के समेकित विकास के लिए पृथक आदिवासी/सरना धर्मकोड का प्रावधान सुनिश्चित करेंगे।

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आदिवासियों के धार्मिक अस्तित्व की रक्षा एक गंभीर सवाल

मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा कि आदिवासी समाज के लोग प्राचीन परंपराओं एवं प्रकृति के उपासक हैं। पेड़ों, पहाड़ों की पूजा और जंगलों को संरक्षण देने को ही धर्म मानते हैं। साल 2021 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 12 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं। झारखंड में आदिवासियों की संख्या एक करोड़ से भी अधिक है। झारखंड की एक बड़ी आबादी सरना धर्म को मानने वाली है। इस प्राचीनतम सरना धर्म का जीता-जागता ग्रंथ स्वयं जल, जंगल, जमीन और प्रकृति है। सरना धर्म की संस्कृति, पूजा पद्धिति, आदर्श और मान्यताएं प्रचलित सभी धर्मों से अलग है।

मुख्यमंत्री ने लिखा है कि झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश के आदिवासी समुदाय पिछले कई सालों से सरना धर्म कोड की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति पर आधारित आदिवासियों के पारंपरिक धार्मिक अस्तित्व के रक्षा की चिंता निश्चित तौर पर एक गंभीर सवाल है।
हेमंत सोरेन ने कहा है कि सरना धर्म कोड की मांग इसलिए उठ रही है ताकि प्रकृति का उपासक यह आदिवासी समुदाय अपनी पहचान के प्रति आश्वस्त हो सके। वर्तमान में जब समान नागरिक संहिता की मांग कतिपय संगठनों द्वारा उठाई जा रही है, तो आदिवासी समुदाय की इस मांग पर सकारात्मक पहल उनके संरक्षण के लिए जरूरी है। यदि सामाजिक न्याय के सिद्धांत पर इनका संरक्षण नहीं किया गया तो इनकी भाषा, संस्कृति के साथ इनका अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा।