झारखंड : मत्स्य पालन कर आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं गांव की महिलाएं

न रोजगार का साधन था और न पूंजी, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल गई इै

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खूंटी, 16 अप्रैल (हि.स.) :  एक समय था कि महिलाएं खासकर गांवों की महिलाएं सिर्फ घरों की दीवारों तक सिमट कर रह जाती थी। न रोजगार का साधन था और न पूंजी, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल गई इै। ग्रामीण महिलाओं के आजीविका संवर्धन को लेकर जोहार परियोजना का संचालन ग्रामीण विकास विभाग के झारखंड लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) की ओर से किया जा रहा है। जोहार परियोजना में महिलाओं की आजीविका वृद्धि के लिए विभिन्न गतिविधियों में कार्य किया जा रहा है। इनमें मत्स्य पालन जोहार परियोजना का एक मुख्य घटक है। ग्रामीण महिलाएं जोहार परियोजना से जुड़कर पहली बार मत्स्य पालन कार्य कर अपनी आजीविका बढ़ा रही है। इन ग्रामीण महिलाओं के पास साधन होते हुए भी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होने और मछली पालन की जानकारी नहीं होने के कारण अपने स्रोतों का सही उपयोग नहीं कर पा रही थीं। चार उपघटकों में कार्य किया जाता है, मछली उत्पादन, मत्स्य बीज उत्पादन, समेकित मछली पालन और पेन और केज कल्चर में मत्स्य पालन। जोहार परियोजना के तहत उपरोक्त वर्णित उपघटकों में कार्य कर अपनी आजीविका को सुदृढ़ करने के लिए महिलाओं का क्षमता वर्धन भी किया जाता है। इसके लिए ग्राम स्तर में तकनीकी प्रशिक्षित मत्स्य मित्र द्वारा मछली पालन करने के लिए प्रारंभिक तरीकों को छोड़कर वैज्ञानिक तरीके ( तालाब प्रबंधन, जल जांच, बीच संचयन, आहार प्रबंधन, रोग निराकरण प्रबंधन और बाजारीकरण) से मछली पालन करने के विषय में प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

 

गांव के लिए उदाहरण बनी नीलमणि:  रेहरगडा ग्राम की नीलमणि होरो मत्स्य उत्पादन में अब अपने गांव के लिए एक उदाहरण बन चुकी हैं। इनके इस उदाहरण बनने में जोहार परियोजना का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। नीलमणि बताती हैं कि जोहार परियोजना में जुड़ने से पहले मजदूरी का काम करती थी। साथ ही महुआ चुनना और बेचना तथा पारंपरिक खेती से जीविकोपार्जन कर रही थी। जोहार उत्पादक समूह से जुड़ने से पहले नीलमणि के पास में न तालाब था और न ही खेती-बारी के लिए जमीन। उत्पादक समूह में मछली पालन प्रशिक्षण प्राप्त कर तालाब को किराया में लेक र उसने मछली पालन किया और आज वह सफल मछली उत्पादक महिला किसान हैं।