Jharkhand का Mini London सैलानियों को लुभाने के लिए सज-सँवर रहा हैं…

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रांची : भारत में भी एक लंदन है जिसे हम मिनी लंदन भी कह सकते हैं। भारत के इस मिनी लंदन का नाम है मैक्लुस्कीगंज। इस प्रदेश के बसने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। कहा जाता है कि जब टिमोथी मैक्लुस्की जब पहली बार यहां आया तो वह यहां की प्रकृति और अबो हवा को देखकर मोहित हो गया और उसने एंगलो इंडियन परिवारों को बसाने की जिद्द ठान ली । 1930 की साइमन कमिशन की रिपोर्ट में एंगलो इंडियन का कोई जिक्र नहीं था ।

ब्रिटिश सरकार ने इसकी जिम्मेदारी से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया था। जिसके कारण उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। इसी बीच टिमोथी मैक्लुस्की ने तय किया कि भारत में ही अपने लोगों के लिए रहने कि व्यवस्था करेगा और फलस्वरूप मैकलुस्कीगंज का जन्म हुआ। जिसके बाद यहां कई धनी एंगलो इंडियंस परिवारों ने यहां बंगले बनाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते यह खूबसूरत शहर में परिवर्तित हो गया। बता दे कि अब भी यहां एंगलो इंडियन लोगों को देखा जा सकता है। झारखंड के जंगलों के बीच इस सुंदर से कस्बे को बसाने का काम किया था Colonisation Society of India ने। यहां की जमीन 1930 में रातु महाराज से लीज पर ली गई थी।

आज का मिनी लंदन करीब 10,000 एकड़ की जमीन पर फैला है जो अब खूबसूरत पर्यटन स्थल भी बन चुका है। रांची जिले का यह ‘मिनी लंदन’ पर्यटकों को अपनी और लुभा रहा है। पहाड़ों और जंगलों से घिरे यहां की वादियों को और खूबसूरत बनाने के लिए रांची जिला प्रशासन ने तैयारी शुरू कर दी है। एक जमाने में यहां 400 एंग्लो इंडियन परिवार रहते थे। इस कारण बड़ी संख्या में लोग गोरों के इस गांव को देखने आते थे, लेकिन अब यहां एंग्लो इंडियन परिवार नहीं हैं। हालांकि पर्यटक अब भी यहां आते हैं, लेकिन तादाद काफी कम हो गई है। यहां अंग्रेजों की बनाई पुरानी हवेलियों आज भी हैं, जिन्हें गेस्ट हाउस के रूप में तब्दील कर दिया गया है। मैक्लुस्कीगंज की खूबसूरती बढ़ाने वाली डेगाडेगी नदी को विकसित किया जाएगा। यातायात की सुविधा के लिए नदी किनारे सड़क बनाई जाएगी।

यहां पर्यटकों को बैठने के लिए शेड भी बनाया जाएगा। नदी के किनारे को और खूबसूरत बनाने और पर्यटकों के ठहराव के लिए भविष्य में नए गेस्ट हाउस भी बनाए जाएंगे। बता दें कि डेगाडेगी नदी के दोनों किनारे पर रेत है और उपरी हिस्से में बड़ी-बड़ी समतल चट्टानें हैं, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं। यहां अक्सर ही पर्यटक तस्वीरें लेते दिख जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस नदी में हमेशा पानी रहता है। नदी के दोनों ओर हरे-भरे जंगल प्राकृतिक संपदा को और समद्धि देते हैं। पहले डेगाडेगी नदी पर पुल नहीं थे, तब ग्रामीण पैदल ही नदी पार करते थे, इसीलिए इस जगह को डेगाडेगी कहा जाने लगा।

मैक्लुस्कीगंज के नकटा पहाड़ को इको टूरिज्म क्षेत्र बनाया जाएगा। पहाड़ तक जाने के लिए पक्की सड़क बनाई जाएगी। पहाड़ के आसपास के क्षेत्र को भी विकसित किया जाएगा मैक्लुस्कीगंज-चामा मार्ग के दुल्ली से एक कच्ची सड़क अभी नकटा पहाड़ जाती है। इस पहाड़ पर पर्यटक आते रहते हैं, लेकिन यहां सड़क और अन्य मौलिक सुविधाएं नहीं होने से पर्यटक नियमित नहीं आ रहे हैं। यहां सड़क और अन्य सभी सुविधाएं उपलब्ध करा कर इसे इको क्षेत्र में विकसित किया जाएगा। नकटा पहाड़ के नीचे और उसके शिखर पर पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था की जाएगी। यहां शेड और बेंच भी लगाए जाएंगे।

 

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