राज्य में नहीं लागू हो सकता है खतियान, प्रखंडस्तरीय नियोजन नीति की जरूरत : सालखन
पारसनाथ का मरांग बुरू राममंदिर की तरह
चाईबासा : झारखंड बने 22 वर्षों के बावजूद किसी भी सरकार ने स्थानीयता, आरक्षण और नियोजन नीति को स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं कर पाया है। अभी भी किसी पार्टी के पास कोई ठोस नीति उपलब्ध नहीं दिखता है। अंततः झारखंडी शिक्षित बेरोजगारों के साथ घोर अन्याय हुआ और हो रहा है। अब 1932 के खतियान का अटक- लटक जाना स्वभाविक था। चूँकि पहले भी मान्य झारखंड हाई कोर्ट द्वारा यह 27.11.2002 को खारिज किया जा चुका है। सनद रहे किसी भी अन्य राज्य में खतियान आधारित स्थानीयता नीति नहीं है। स्थानीयता का जायज आधार स्थानीय भाषा संस्कृति और स्थानीय जातिगत सूची (उपराष्ट्रीयता की अवधारणा) हो सकता है। किन्तु सोरेन परिवार को जनहित से ज्यादा वोट और नोट की फिक्र है। अतः झारखंडी जन को रोजगार देने से ज्यादा 1932 के खतियान को हौवा बनाकर उन्हें जनता को ब्लैकमेल करना और झुनझुना थमाना पसंद है। ख़ातियान कभी भी लागू नहीं हो सकता है। अतः झारखंडी जन को रोजगार के लिए “प्रखंडवार नियोजन नीति” को लागू करने के आंदोलन को तेज करना चाहिए। अन्यथा नवयुवकों का बर्बाद होना तय है।
प्रखंडवार नियोजन नीति
झारखंड सरकार के पास उपलब्ध सभी सरकारी और गैर सरकारी नौकरियों का 90% भाग ग्रामीण क्षेत्रों को आवंटित किया जाए। तत्पश्चात आबादी के अनुपात से प्रखंडवार कोटा तय किया जाए। फिर प्रखंड विशेष के कोटा को उसी प्रखंड के अवेदकों से भरा जाए। इसमें खतियान की जरूरत नहीं है। चूंकि सभी स्थानीय माने जा सकते हैं और प्रखंड में उपलब्ध जातियों (एसटी, एससी, ओबीसी आदि) के आबादी के अनुपात से प्रखंड के कोटा को भरा जाए। यह 3 महीनों के भीतर लागू हो सकता है।
आदिवासी सेंगेल अभियान सभी राजनीतिक दलों, संगठनों, बुद्धिजीवियों, नवयुवकों आदि से अपील करता है इसको लागू करने में सहयोग करें। क्योंकि यह स्थानीयता, आरक्षण और नियोजन नीतियों को समायोजित करते हुए एक समाधान प्रस्तुत करता है। अन्यथा सोरेन खानदान अपनी राजनीतिक स्वार्थों की जिद में लूट, झूठ और भ्रष्टाचारी सरकार को बनाए रखने की हर संविधान बिरोधी कोशिश जारी रखेगा। भोले भाले नासमझ आदिवासी- मूलवासियों को दिग्भ्रमित करता रहेगा।
सेंगेल का “मरांग बुरू बचाओ भारत यात्रा”
17 जनवरी 2023 को जमशेदपुर से प्रारंभ यह यात्रा कल धनबाद ज़िला होते हुए आज 6.2.23 को 21 वें दिन चाईबासा, प. सिंहभूम ज़िला पहुंचा है। यात्रा का उद्देश्य जन जागरण और जन एकता है। यात्रा का नेतृत्व सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू और केंद्रीय संयोजक सुमित्रा मुर्मू कर रहे हैं। मरांग बुरू ( पारसनाथ पहाड़) को जैनों के कैद से मुक्त करने और 2023 में हर हाल में आदिवासियों के प्रकृति पूजा धर्म- सरना धर्म कोड को लागू करने के लिए सेंगेल 11 फरवरी 2023 से अनिश्चितकालीन रेल रोड चक्का जाम करने को बाध्य है। यह हमारा संविधानसम्मत अधिकार है। सोरेन सरकार ने हम आदिवासियों के ईश्वर- मरांग बुरु को जैनों के हाथ बेचने का पाप किया है। दिशोम गुरु ने पहले 3.50 करोड़ रुपयों में 1993 में झारखंड बेचा था, जेल गया था। अब जेएमएम के एमएलए, एमपी और मुख्यमंत्री तालझारी गांव, ललमटिया थाना ( गोड्डा जिला ) की जमीन को 19.1.23 से जबरन बुलडोजर लगाकर आदिवासियों से छीनने का काम कर रहे हैं। कुरमी को ST बनाने के पीछे भी सोरेन परिवार का षणयंत्र है। हम सोरेन परिवार को सर्वत्र बेनकाब करने को मज़बूर हैं। लूट, झूठ और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे सोरेन परिवार के पतन के बगैर आदिवासी- मूलवासी का उत्थान असम्भव है। दिशो गुरु, ईसाई गुरु और गांव गांव में परंपरा के नाम पर वंशानुगत जमे हुए अधिकांश अनपढ़, पियक्कड़ माझी हाड़ाम (आदिवासी ग्राम प्रधान) आदिवासी समाज को बर्बाद कर रहे हैं। इनका बिरोध जनहित, जनतंत्र और संविधान हित मे जरूरी है।
राम मंदिर की तरह मरांग बुरु
हमारे ईश्वर- मरांग बुरु, हमारा प्रकृति धर्म – सरना धर्म और हमारी धार्मिक और प्राकृतिक आस्था और विश्वास पर किसी के द्वारा चोट करना, अब हम आदिवासी और बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। मरांग बुरु हमारे लिए राम मंदिर से कमतर नहीं है। राम मंदिर आंदोलन की तरह मरांग बुरु आंदोलन भी आक्रमक हो सकता है। यदि केंद्र, राज्य सरकार तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अविलंब वार्तालाप कर समाधान की पहल नहीं करते हैं तो बाबरी मस्जिद की तरह जैन मंदिर को ध्वस्त करने के लिए आदिवासी मज़बूर हो सकते हैं। चूंकि मरांग बुरु पर पहला अधिकार हम आदिवासियों का है, जैनों का नहीं है। अन्ततः 11 फ़रवरी 23 से सेंगेल द्वारा आहूत रेल रोड चक्का जाम जोरदार होगा।
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