आइए जानें आखिर क्या लिखा है मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में ?

7 मई, 1976 की अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इसमें साफ गया था कि जोशीमठ में भारी निर्माण कार्यों, ढलानों पर कृषि, पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है।

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देहरादून । जोशीमठ के हालातों पर अब र्सिफ सिर पीटने के अलावा कुछ खास नहीं बचा। इस कस्बे को लेकर आज से लगभग आधी सदी पहले आगाह किया जा चुका था, लेकिन बेपरवाही  इस कदर हावी थी कि उसमें ये पहाड़ी कस्बा कहीं का नहीं रहा।

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एक 18 सदस्यों वाली कमेटी ने 46 साल पहले ही आगाह किया था कि जोशीमठ भौगोलिक तौर पर अस्थिर है, इससे साफ था कि यहां पर कभी भी कुछ हो सकता है। कमेटी का कहना था कि इस इलाके में बगैर सोचे-समझे किया गया निर्माण कार्य कभी भी मुसीबत को दावत दे सकता है और यह सच साबित हुआ।

इसी तरह के हालात 70 के दशक में भी देखे गए थे। यही वजह रही थी कि इस शहर के भूस्खलन और डूबने की वजहों को जानने के लिए तत्कालीन गढ़वाल मंडल आयुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था।

इस कमेटी ने 7 मई, 1976 की अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इसमें साफ गया था कि जोशीमठ में भारी निर्माण कार्यों, ढलानों पर कृषि, पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है। इसे बदतर हालातों से बचने के लिए बारिश के पानी के रिसाव को रोकने के लिए इसकी निकासी के लिए पक्का निर्माण, सही तरीके का सीवेज सिस्टम और मिट्टी का कटाव को रोकने के लिए नदी के किनारों पर सीमेंट ब्लॉक बनाने के सुझाव दिए गए थे।

इस रिपोर्ट को संजीदगी से लेने की जगह इसकी अनदेखी की गई है। अब हालात इतने खराब हो चुके हैं कि मौजूदा संकट के लिए कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे पर रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने में नाकाम रहने के आरोप थोप रहे हैं।

मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ की भौगोलिक कुंडली ऐसी है जो इसे भूगर्भीय तौर से अस्थिर दिखाती है। यही वजह है कि ये इलाका भूस्खलनों, सड़कों के टूटने, जमीन धंसने की परेशानियों से दो-चार होता रहता है। इस इलाके में लगातार होते निर्माण के काम, जनसंख्या में बढ़ोतरी से यहां महत्वपूर्ण जैविक गड़बड़ी हुई है।

बार-बार होने वाले भूस्खलन पर रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके संभावित कारणों में हिलवॉश हो सकता है। हिलवॉश, कटाव की एक प्रक्रिया है जिसमें सतह पर ढीली पड़ी तलछटको बारिश का पानी बहा ले जाता है। इसके अलावा खेती वाली जमीन की लोकेशन, हिमनदी सामग्री के साथ पुराने भूस्खलन के मलबे पर बसावट, अपक्षय और धाराओं से मिट्टी का कटाव भी लैंडस्लाइड के बार-बार होने की वजह बनते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ढलानों से नीचे बहने वाले पानी का तेज वेग ढलानों को नंगे कर देता है और इनकी सतह से रिसने वाला पानी नरम मिट्टी को पूरी तरह से भिगो डालता है और इसे बहा ले जाता है। इस तरह से  शिलाखंडों यानी बोल्डर्स के बीच गड्ढे बनाते हैं। बोल्डर्स उन बड़ी चट्टानों को कहते हैं जो कटाव की वजह से नरम पड़ जाती है। इस तरह से बगैर सहारे के ये शिलाखंड बोल्डर अपने मूल द्रव्यमान से अलग हो जाते हैं, जिसके वजह से स्लाइड होता है। इस प्रक्रिया का बार-बार होना ढलान को और अधिक ढलवा कर देता है।

रिपोर्ट में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर ध्यान दिलाया गया है। इसमें कहा गया है कि पेड़ महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बारिश के लिए यांत्रिक बाधाओं के तौर पर काम करते हैं, जल संरक्षण क्षमता में बढ़ोतरी करते हैं और ढीले मलबे या तलछट के ढेर को पकड़ते हैं। मवेशी को चराना और चारागाह बनाने में बढ़ोतरी होना भी पेड़ों की कटाई के जैसा ही है।

जोशीमठ क्षेत्र में प्राकृतिक वन आवरण को कई एजेंसियों ने बेहरमी से नष्ट कर दिया है, चट्टानी ढलान नंगे और पेड़ों के बगैर हैं। पेड़ों के अभाव में मृदा अपरदन और भूस्खलन होता है। प्राकृतिक तौर से हो रहा भूस्खलन और नरम चट्टानों का फिसलना और खिसकना इसके नतीजे के तौर पर सामने आता है।

रिपोर्ट में बताया गया कि जोशीमठ रेत और पत्थर के जमाव पर बसा है और ये एक टाउनशिप के लिए मुफीद नहीं है। इसमें कहा गया है कि ब्लास्टिंग और भारी ट्रैफिक से होने वाले कंपन से प्राकृतिक कारकों में भी असंतुलन पैदा होगा। पानी निकासी की उचित सुविधाओं की कमी होना भी भूस्खलन के लिए जिम्मेदार है। मौजूद सोख्ता गड्ढे जो घरों से निकलने वाली गंदे पानी को सोखते हैं वो मिट्टी और बोल्डर के बीच गड्ढे बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। इससे आगे जमीन के अंदर पानी का रिसाव होगा और मिट्टी का कटाव होगा।

वहीं अब मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कहा कि विकास और विनाश एक साथ नहीं चल सकते, जोशीमठ पर बहुत खतरे आए हैं, उसने सबको पार किया है इसलिए इसे भी पार करेगा। पुष्कर सिंह धामी जैसे मुख्यमंत्री के होते हुए जोशीमठ पर आए संकट के बादल हटा दिए जाएंगे।

उत्तराखंड के जोशीमठ में क्षतिग्रस्त इमारतों को ढहाने का काम मंगलवार से शुरू हुआ है। अधिकारियों का कहना है कि जो इमारतें दरारों की वजह से दूसरी बिल्डिंगों के लिए खतरा बन सकती हैं, उन्हें जमींदोज किया जाएगा। जोशीमठ के इलाके को तीन जोन में बांटा गया है, जो खतरनाक, बफर और पूरी तरह से सुरक्षित हिस्सों में रखे गए हैं। इन जोन को मैग्नीट्यूड के आधार पर भूस्खलन के खतरे को देखते हुए बनाया गया है। बताया जा रहा है कि भू-धंसाव के शिकार जोशीमठ की 600 से ज्यादा इमारतों पर दरारें मिली हैं। इन इमारतों में जो सबसे बुरी तरह प्रभावित हुई होगी, उन्हें ध्वस्त किया जाएगा।