एक मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को एक अहम बात कही है। अदालत का कहना है कि आरोपियों की मर्दानगी की जांच के लिए नई वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, इसके लिए जल्द से जल्द SOP तैयार करनी चाहिए ताकि सीमन की जांच करने की प्रक्रिया को बंद किया जा सके। नाबालिग लड़का और लड़की द्वारा दाखिल एक याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने टू फिंगर टेस्ट की भी बात की। हाईकोर्ट ने साफ किया कि SOP तैयार करते हुए हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि टू फिंगर टेस्ट को बंद करने की जरूरत है। बता दें कि यहां जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश, जस्टिस सुंदर मोहन की अगुवाई में एक कमेटी का गठन किया गया था जिसका उद्देश्य POCSO एक्ट लागू करवाना था।
अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि हमारी कोशिश है कि मर्दानगी टेस्ट, टू फिंगर टेस्ट के पुराने तरीके बंद किए जाने चाहिए। डीजीपी को आदेश दिया जाना चाहिए कि वह 1 जनवरी, 2023 से अबतक की एक रिपोर्ट तैयार करवाएं जिसमें यौन अपराध से जुड़े किसी केस में इन केस का जिक्र किया गया हो। ऐसी किसी भी रिपोर्ट को अदालत के सामने रखा जाना चाहिए। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि विज्ञान ने इतनी तरक्की की है। ऐसे में जरूरी है कि हम नई प्रैक्टिस को लागू में लाएं और किसी भी तरह की पुरानी तकनीक को पीछे ही छोड़ दें। ऐसे में हमें भी जल्द से जल्द SOP तैयार करनी चाहिए, इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही हम आगे के ऑर्डर जारी करेंगे। अदालत में अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 अगस्त को होगी।
टू-फिंगर टेस्ट को लेकर अक्सर सुर्खियां बनती रहती हैं। पिछले साल सर्वोच्च अदालत ने भी इस तरह की प्रैक्टिस पर रोक लगाने की बात कही थी और इसे गलत करार दिया था। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस टेस्ट की पढ़ाई को भी बंद करने का आदेश दिया था। जानकारी के अनुसार टू फिंगर टेस्ट में किसी महिला के प्राइवेट पार्ट में 2 उंगलियां डाली जाती हैं, ताकि यह देखा जा सके कि वह सेक्सुअली एक्टिव है या नहीं। अदालत की ओर से कई बार इसपर सख्त टिप्पणी की गई है। बैन भी किया गया है लेकिन अलग-अलग मामलों में अक्सर यह इस्तेमाल होता आया है। यही कारण है कि इसको लेकर कई बार विरोध हुआ है और अब एक बार फिर मद्रास हाईकोर्ट की यह टिप्पणी देखने को मिली है।