नक्सलियों के डर से नहीं मनाया जा रहा माघे पर्व, कोल्हान के आदिवासियों का हाल

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झारखंड : पश्चिमि सिंहभूम जिले के घौर नक्सल प्रभावित टोंटों थाना क्षेत्र के जंगलों में नक्सलियों द्वारा लगाये गए आईईडी बम विषस्फोट होने के कारण ग्रामीणों में इस कदर खौप बन गया कि ग्रामीण माघे पर्व तक नहीं मना पा रहें है। इधर आजेड़बेड़ा गांव (सदर प्रखंड, पश्चिमी सिंहभूम) के आदिवासी 26 फरवरी 2022 को ग्राम सभा कर मागे पर्व को स्वतंत्रता पूर्वक मनाने देने के लिए पुलिस अधीक्षक, पश्चिमी सिंहभूम  से मांग करने को विवश हुए हैं। आलम यह है कि उक्त इलाके में जब से अर्द्धसैनिक बल द्वारा नक्सलवाद के खात्मा के नाम पर अभियान चलाया जा रहा है तब से ग्रामीणों के संवैधानिक अधिकार व आज़ादी से जीवन जीने का अधिकार पूरी तरह खत्म हो चुकी है। न जंगल से पत्ता-लकड़ी ला पा रहे रहे है, न ही मवेशियों को आजादी से चरा पा रहे हैं और न ही हाट बाजार से राशन व जरूरी अवश्य समान ला पा रहे हैं। गाँव-जंगल में सामान्य काम व अपने जीविका सम्बंधित कार्यों को करने में भी सुरक्षा बल द्वारा अनावश्यक रूप से पूछ-ताछ किया जा रहा है एवं धमकी दिया जाता है. पर्व मे खाने के चावल के साथ-साथ हाड़िया बनाने के लिए चावल की सामान्य दिनों से ज्यादा मात्रा में खर्च होती है चूंकि घर मे मेहमान आते हैं. लेकिन जब ग्रामीण 50 किलो चावल भी लाते हैं तो अर्द्धसैनिक बल द्वारा नक्सली के लिए राशन ले जाने के नाम पर रोक दिया जाता है और विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है।

 

ग्रामीणों को मजबूरन ग्राम सभा कर पुलिस अधीक्षक चाईबासा से स्वतंत्र रूप से मागे पर्व मनाने देने के लिए निवेदन करना पड़ा है। साथ ही, संलग्न पत्र को उपायुक्त पश्चिमी सिंहभूम, गृह सचिव, स्थानीय सांसद व विधायक को दिया गया है। ग्रामीणों ने कहा है कि 27 फरवरी से उनका मागे पर्व है (*हो आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व*). उन्होंने पुलिस से अनुरोध किया है कि उन्हें बिना रोक–टोक पर्व मनाने दिया जाए। पर्व में जंगल में पूजा होती है, वापस आकर रातभर नाच–गाना होता है, मेहमान आते हैं सप्ताह भर एक दुसरे के घर आना-जाना होते रहता है। जब से गांव में सीआरपीएफ का कैंप जबरन लगाया गया है एवं नक्सल अभियान चलाया जा रहा है, तब से गांव में डर और दमन का माहौल है। निर्दोष आदिवासियों को माओवादी करार दिया जा रहा है। फर्जी मामले में थाना में प्रताड़ित किया जा रहा है। ग्रामीण खुल के अपनी जिंदगी भी नहीं जी पा रहे हैं। साथ ही, कैंप लगने के बाद गांव में बाहरियों द्वारा विदेशी शराब का अवैध धंधा शुरू हो गया है। ग्रामीणों ने पुलिस अधीक्षक को यह भी अवगत कराया है कि नवंबर 2022 में चिड़ियाबेड़ा में एक नाबालिक के साथ सीआरपीएफ द्वारा छेड़खानी के विरुद्ध आज तक कार्यवायी नही हुई है।

 

सुरक्षा बल व पुलिस की कार्यवाई के कारण के गाँव में ऐसा डर और दमन के माहौल है कि आदिवासियों को अब अपने पारंपरिक पर्व के लिए भी पुलिस से सहयोग की अपील करनी पड़ रही है। विस्तृत जानकारी संलग्न मांग पत्र में है।