वह शख्स जिसने की गांधी हत्या की भविष्यवाणी

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श्रीराम पुकार शर्मा

मारी भारतभूमि रत्न गर्भा है। ऐसे ही एक अनमोल भारत-संतति हुए हैं ‘पंडित सूर्यनारायण व्यास’। उन्होंने ही स्वतंत्र भारत की अद्वितीय अकाट्य कुंडली बनाई है,जिसके आधार पर भारत अपनी आजादी के बाद से  निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है।

उज्जैन महाकाल विश्वेश्वर की पवित्र नगरी है, जो प्राचीन काल से ही अपने राजनीतिक और धार्मिक महत्ता के अलावे, द्वापर युग और महाभारत काल का एक प्रमुख शिक्षण केंद्र रहा। यहीं भगवान श्री कृष्ण अपने अग्रज बलराम और अपने प्रिय मित्र सुदामा के साथ अपने गुरु सांदीपनि के आश्रम में रहकर शिक्षण प्राप्त किए। एक समय था, जब उज्जैन नगरी से होकर गुजरने वाली भौगोलिक देशान्तर रेखा को ही विश्व की प्रमुख मानक समय रेखा मानकर विश्व भर के समय को निर्धारित किया जाता था। पर अन्य भौतिक संपदाओं की भाँति ही उस प्रमुख मानक समय रेखा को भी अंग्रेजों ने यहाँ से लूटकर अपने देश इंग्लैंड ले जाकर उसकी राजधानी लंदन के ग्रीनविच में जी.एम.टी अर्थात ग्रीनविच मीन टाइम के रूप में स्थापित कर दिया।

महाकाल की इसी पवित्र नगरी उज्जैन में प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित नारायण व्यास जी थे, जिन्होंने ‘संदीपन परंपरा’ का निर्वाह करते हुए प्रमुख शिक्षण केंद्र ‘महर्षि संदीपनी आश्रम’ की स्थापना की। माना जाता है कि वे पौराणिक महर्षि संदीपन के ही वंशज रहे हैं। प्रख्यात ज्योतिषी होने के कारण वे स्वाधीनता से पूर्व कोई 144 राजघरानों के राज ज्योतिषी हुआ करते थे। संस्कृत और ज्योतिष के उस असाधारण व्यक्तित्व के दर्शन हेतु कभी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एवं मदनमोहन मालवीय भी वहाँ पधारे थे।

समादृत प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित नारायण व्यास और श्रीमती रेणुदेवी के विद्वत घर-आँगन में 2 मार्च, 1902 को तेज ललाट युक्त एक विलक्षण प्रतिभाशाली शिशु का जन्म हुआ, जिसका नाम उन्होंने आध्यात्मिक भाववश सूर्य के तेज के अनुकूल सूर्यनारायण रखा । सूर्यनारायण व्यास अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिताजी द्वारा संचालित महर्षि संदीपनी आश्रम में और परवर्तित उच्च शिक्षा वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्राप्त की। आठ वर्ष की किशोरावस्था से ही उन्होंने लेखन कार्य प्रारम्भ कर दिया था। माधव कॉलेज की पत्रिका में उनकी पहली रचना शारदोत्सव मराठी में छपी थी। कालांतर में वह बालक ज्योतिष और खगोलशास्त्री के साथ ही लेखक, पत्रकार, स्वाधीनता सेनानी, इतिहासकार, पुरात्ववेत्ता आदि के रूप में पंडित सूर्यनारायण व्यास के स्वरूप में प्रसिद्ध हुआ। उनमें एक समय में एक हाथ से व्याकरण, तो दूसरे हाथ से ज्योतिष लिखने की अद्भुत विलक्षण क्षमता भी सुलभ थी।

बाद में पंडित सूर्यनरायाण व्यास सिद्धनाथ आगरकर के साथ तिलक की जीवनी का हिन्दी में अनुवाद करते हुए और सावरकर का अंडमान की गूँज पढ़ते हुए क्रांतिकारी भी बने। प्रख्यात पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी के संसर्ग में उन्होंने पत्रकारिता के गुर को सीखा और उनके साथ कर्मवीर का सम्पादन कार्य भी किया। ऐसे ही समय वे पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र जैसी क्रांतिकारी हस्ती के संपर्क में भी आए। उनको चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, गणेश शंकर विद्यार्थी, मनमोहन गुप्त, मन्मथ नाथ गुप्त, कैप्टन लक्ष्मी, यशपाल,शचिंद्रनाथ सान्याल, भूदेव विद्यालंकार,भगवानदास माहौर, शिव वर्मा और जयप्रकाश नारायण जैसे कितने क्रांतिकारियों का संसर्ग भी प्राप्त रहा।

पंo सूर्यनारायाण व्यास हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने हिन्दी में हजारों लेख, निबन्ध, व्यंग्य, अनुवाद, यात्रा वृतांत आदि लिखे। उन्होंने सामाजिक समरसता के लिए 1916 में महाकाल मंदिर में हरिजनों के प्रवेश को लेकर पहली गिरफ्तारी दी थी और क्षिप्रा नदी के तट पर हरिजनों के साथ स्नान भी किया था।

पंo सूर्यनारायाण व्यास एक देशभक्त क्रांतिकारी रहे। 1930 में उज्जैन के देशभक्त जत्थों का नेतृत्व करते हुए अजमेर सत्याग्रह में पिकेटिंग करने गए। अजमेर में लॉर्ड मेयो की स्टेचू को सुभाष चंद बोस के आव्हान पर सिर्फ तोड़ा ही नहीं, एक टूटा हाथ बरसों तक उज्जैन में अपने निवास भारती भवन में रख अंग्रेजों को चेताते भी रहे। एक बार फिर 1934 में उन्होंने उज्जैन के जत्थे का नेतृत्व कर अजमेर में गिरफ्तारी दी और १६ मास जेल में भी रहे। 1942 में उन्होंने स्वतंत्रता जन्य कार्य हेतु एक गुप्त रेडियो स्टेशन का सम्पादन किया था। यहाँ तक कि उन्होंने अपने प्रण के अनुकूल अपना विवाह भी देश स्वाधीन होने के उपरांत 1948 में ही किया था।

पंडित सूर्यनारायण व्यास जी एक प्रसिद्ध दूरदर्शी भविष्यवेत्ता भी रहे थे। उनकी सारी भविष्यवाणियाँ समय आने पर बिल्कुल सत्य साबित हुई हैं। स्वयं हिटलर ने भी उनसे अपने भविष्य के बारे में परामर्श किया था। 1924 में बनारस से प्रकाशित आज में उन्होंने गाँधी मरेंगे नहीं, मारे जाएँगे लेख में लिखा था, – गाँधी का वध एक ब्राह्मण द्वारा पूजा-स्थल पर होगा। उन्होंने 1930में आज में ही एक लेख में कहा था कि भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र होगा। और बिल्कुल वैसा ही हुआ भी।

1947 में जब यह सुनिश्चित हो गया कि अंग्रेज भारत छोड़ देंगे, तब डॉo राजेन्द्र प्रसाद ने गोस्वामी गणेशदत्त महाराज के माध्यम से पंडित सूर्यनारायण व्यास जी को शीघ्र ही दिल्ली बुलवाया और पंचांग के अनुकूल स्वतंत्र भारत की कुण्डली बनाने का आग्रह किया। पंचांगों के गंभीर अध्ययन के उपरांत उन्होंने ने ही बताया था कि 14 और 15 अगस्त की मध्यरात्रि में अभिजीत मुहूर्त का स्थिर लग्न रात्रि 11 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 15 मिनट तक के लिए मात्र 24 मिनट की अवधि का ही है। अतः भारत के सत्ता हस्तान्तरण का कार्य इसी शुभ मुहूर्त में ही किया जाए। उनका मानना था कि स्थिर लग्न में प्राप्त लोकतंत्र सदैव स्थिर रहेगा। इतना ही नहीं, बल्कि उन्होंने अपने निर्देश पर गोस्वामी गिरधारीलाल के नेतृत्व में देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संसद के शुद्धीकारण हेतु देर रात संसद भवन को गंगा जल से धुलवाया भी था। उसी समय उन्होंने यह भी संकेत किया था कि 1990 के बाद ही देश की प्रगति होगी और 2020 तक भारत विश्व का सिरमौर बन जाएगा। यह सब सच होते दिखा और दिख भी रहा है।

 

पंo सूर्यनारायाण व्यास की अधिकांश भविष्यवाणियाँ समय आने पर सच साबित हुई हैं, जिसमें सबसे चर्चित लालबहादुर शास्त्री के ताशकंद जाने से पहले ही एक लेख में उन्होंने साफ कर दिया था कि वे जीवित नहीं लौटेंगे। यह बात शास्त्रीजी तक भी पहुँची थी, लेकिन उन्होंने इसे हँसकर टाल दिया था। इसी तरह 7 दिसंबर 1950 को एक समाचार पत्र में उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के स्वास्थ्य पर चिन्ता जताते हुए 17 दिसंबर तक के समय को उनके लिए कठिन बताया था और 16 दिसंबर की आधी रात को सरदार पटेल की मृत्यु हो गई। इसी तरह से चीन से हुए युद्ध के बारे में उनकी बात ठीक निकली। महात्मा गाँधी,जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, इन्दिरा गाँधी सहित कई विशेष लोगों के बारे उन्होंने सटीक भविष्यवाणियाँ समय से काफी पहले कर दी थीं। यहाँ तक कि स्वयं की मृत्यु के बारे में भी उन्होंने एक लेख के द्वारा भविष्यवाणी की थी। वह भी सत्य ही साबित हुआ। बहुत कम लोगों को ही ज्ञात होगा कि पंo सूर्यनारायाण व्यास को महात्मा गाँधी हत्याकाण्ड हेतु दिल्ली में रेड फोर्ट की विशेष अदालत में बतौर गवाह के रूप में उपस्थित हुए थे। टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक श्री जी. एस. करंदीकर ने उन्हें जीवित विश्वकोष कहा था।

गवाही के बाद न्यायालय के खजांची त्रिभुवन नाथ ने 7 अक्टूबर 1948 को पत्र लिखकर 1999 रुपए और 2 आने यात्रा भत्ता एवं भोजन व्यय के रूप में स्वीकृत कर लेने का आग्रह किया था। पर पंo सूर्यनारायण व्यास ने 11 अक्टूबर 1948 को उत्तर में लिखा,- “कई कारणों से प्रदत्त वस्तु लेने में मैं औचित्य अनुभव नहीं कर रहा हूँ, किन्तु न्यायालय की सम्मान रक्षा के लिए इसे अस्वीकार करना भी उचित नहीं समझता। अतः आपसे मेरा सादर निवेदन है कि उपयुक्त रकम मेरी ओर से गाँधी स्मारक कोष में अर्पित कर दी जाए। यह पंo व्यास के स्वाभिमान का एक बहुत ही विरल उदाहरण है।

महाकालेश्वर और भारत के पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन की हर गतिविधियों में पंo सूर्यनारायण व्यास की सक्रिय भूमिका अवश्य रहती थी। कालिदास तथा विक्रमादित्य के नाम पर बनी संस्थाओं के संचालन के लिए उन्होंने पूर्वजों द्वारा संचित निधि भी खुले हाथों से खर्च की। उन्होंने सोए हुए राष्ट्र को जगाने के लिए, उस विक्रमादित्य के पराक्रम का आह्वान करने हेतु 1942 में विक्रम-पत्र की स्थापना की। इसी वर्ष विक्रम द्विसहस्राब्दी महोत्सव अभियान के अन्तर्गत विक्रम नामक पत्र का प्रकाशन किया तथा विक्रम विश्वविद्यालय, विक्रम कीर्ति मंदिर आदि कई संस्थाओं की स्थापना की और अखिल भारतीय कालिदास परिषद तथा कालिदास अकादमी जैसी संस्थाएं गठित कीं। उनके प्रयास से ही 1956 में कालिदास पर फीचर फिल्म बनी। उन्होंने विक्रमादित्य को अपने पराक्रम का चरित्र बनाया और विक्रम स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित करवाए, जो अरब, ईरान तक में लोकप्रिय हुए। इनकी साहित्य यात्रा पर पहली कृति सागर प्रवास 1937 में बिहार के लहसरियासराय से आचार्य शिवपूजन सहाय के माध्यम से हिन्दी, मराठी और संस्कृत भाषा में प्रकाशित हुई थी।

1958 में पंo सूर्यनारायण व्यास की बहुमुखी विलक्षण प्रतिभा को केंद्र कर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉo राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें पद्मभूषण अलंकरण प्रदान किया था, पर देश पर अंग्रेजी को लगातार थोपना जारी रखने वाले विधेयक के विरोध में उन्होंने 1967  में इसे लौटा दिया।

लेकिन हैरत की बात है कि पंo सूर्यनारायण व्यास जी ने अपनी मौत के बारे में भी एक व्यंग्यात्मक लेख आँखों देखी अपनी मौत को लिखा था, जो 22 जून, 1965 में एक अखबार में छपा भी था और सचमुच उनका देहावसान २२ जून को ही 1967 को हुआ। इसी तरह उन्होंने मूर्ति का मसला नामक एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने अपनी मृत्यु के उपरांत उज्जैन में होने वाली निम्नस्तरीय बहस के संदर्भ में उल्लेख किया था, यहाँ जीवित लोग अपनी प्रतिमा लगवा लेंगे, मगर उनकी प्रतिमा न लगने दी जाएगी, न लगाई जाएगी। उनकी भविष्यवाणी बहुत अंश में सही ही साबित हुई थी।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पंo सूर्यनारायण व्यास पर डाक टिकट जारी करते हुए उनके संबंध में कहा था,- जहाँ तक व्यासजी का प्रश्न है, उनमें ज्ञान और कर्म दोनों का अपूर्व समन्वय था। उन्होंने इस विद्या के माध्यम से दुनियाभर में भारत की एक अलग और प्रभावी छवि बनाई है।उनका अभिनन्दन मालवा भूमि के समस्त सांस्कृतिक अनुष्ठानों का अभिनन्दन है।

बहुआयामी प्रतिभा के धनी, विचारक, भविष्य दृष्टा, युग पुरुष पंoसूर्यनारायण व्यास द्वारा संचालित आश्रम में आज 7 हजार से भी अधिक विद्यार्थी उनके आश्रम में बिना किसी सरकारी मदद के ही बतौर कुलपति और विद्वजन विद्यार्थियों को संस्कृत और ज्योतिष विद्या का अध्यापन कर रहे हैं। भारत का सबसे पुराना पंचाग नारायण विजन पंचांग उन्हीं की देन है। उनकी क्षमता, परख और विद्वता जनित उपलब्धियों को आँकने में अनगिनत उपाधियाँ, अनगिनत अलंकरण आदि सबके सब कम ही पड़ जाएंगे। एक महान युगद्रष्टा, मालवी भाषा के उन्नायक, संस्कृत, मराठी, हिंदी, बांग्ला भाषाओं पर भी जबरदस्त अधिकार रखने वाले पंo सूर्यनारायण व्यास वास्तव में एक महामानव ही थे।