जंग किसी भी मायने में किसी समस्या के समाधान की राह नहीं होती। दुनिया की हर कौम तथा हर देश केवल तभी विकास करते हैं जब वहां शांति का माहौल हो।
जगजाहिर है कि कोई भी मुल्क किसी से अनायास जंग की बात नहीं करता, कुछ सिरफिरों को छोड़कर। लेकिन आजकल एक अजीबोगरीब रंग देखने को मिल रहा है। खासकर भारतीय मीडिया इस रंग से सराबोर है। रंग है खूरेंजी का।
किसी भी समाचार चैनल को अगर देखने की कोशिश की जाय तो सबसे पहले रूस और यूक्रेन की खबर ही ट्रेंड करती मिलेगी। जंग की ऐसी दमदार रिपोर्टिंग खुद जंग झेल रहे देशों के मीडिया वाले भी नहीं कर रहे।
रूस- यूक्रेन की जंग को भारतीय समाचार चैनलों ने कुछ इस कदर लोगों तक पहुंचाना शुरू किया है जिससे लगता है कि पुतिन या जेलेंस्की के वार रूम में ही भारतीय चैनलों के लोग मौजूद हैं।
किस देश की कितनी ताकत है। किसके साथ कौन देश खड़ा है। किससे-किसको कितना खतरा है तथा किसके पास कितना ताकतवर परमाणु बम है।
बस, इसी की चर्चा होती रहती है। कुछ लोग तो बाकायदा कुछ घंटों में ही पूरी दुनिया का इतिहास समेटने की कोशिश में लग जाते हैं, जो बाकायदा चैनलों के जरिये दावा करते हैं कि परमाणु युद्ध बस अब होने ही वाला है।
परमाणु युद्ध का बिगुल भले ही युद्ध लड़ रहे देशों की ओर से न फूंका जाय मगर भारतीय समाचार चैनलों पर लगातार परमाणु युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। दयनीय हालत है यह।
पूरी दुनिया जहां अमन के साथ जीने की कोशिश कर रही है, वहां भारतीय चैनलों के जरिये युद्ध थोपने की कोशिश को भला क्या कहा जाए। इसे मानसिक दिवालियापन ही कहा जाना चाहिए।
चैनलों के जरिये परमाणु युद्ध और उसके साथ ही विश्व युद्ध की भविष्यवाणी करने वाले ज्योतिषी पत्रकारों से पूछा जा सकता है कि अगर परमाणु बम का विस्फोट हुआ, कहीं पुतिन ने सचमुच अपना बम फोड़ा तो फिर क्या तुम्हारा चैनल साबूत बचा रहेगा। चैनल साबूत भी रहा तो भी क्या लोग तुम्हारे चैनल की खबरें देखने को मौजूद रहेंगे।
इस दयनीय हालत से बचने की जरूरत है। जंग किसी भी कीमत पर सराहनीय नहीं हो सकती। और खासकर अगर किसी भी देश ने परमाणु विस्फोट किया तो दुनिया जल उठेगी क्योंकि आज पूरी दुनिया में परमाणु अस्त्रों की भरमार हो चुकी है।
ऐसे में कोई भी देश सुरक्षित बचेगा-यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। यदि कोई दैव योग से बच भी गया तो अल्फा, बीटा और गामा किरणों के विकिरण से उसकी पूरी प्रजाति ही नष्ट हो जाएगी।
इस भीषण विध्वंस की काल्पनिक तस्वीर से ही मानवता काँप उठती है। ऐसे आलम में यदि भारतीय चैनलों के जरिये परमाणु युद्ध या विश्व युद्ध की बात परोसी जा रही है तो यह निंदनीय है।
कल्पना की उड़ान को विराम देने की जरूरत है। मीडिया का काम लोगों को आश्वस्त करने का है, सही जानकारी देने का है। किसी को आतंकित करके हो सकता है कि टीआरपी की दौड़ में सफलता हासिल हो जाए लेकिन वह सफलता भी चिरस्थाई नहीं होगी। मीडिया इस बात पर गौर करे।