ब्यूरो रांची : आखिर हो हल्ला के बिच पारित हुआ 23 विधेयक। हंगामे, बायकॉट और स्थगन के ही माहौल में 11 अगस्त को संसद का मॉनसून सत्र समाप्त हो गया। आखिरी दिन भी कामकाज नाम मात्र का ही हुआ। इस पूरे सत्र में कई जरूरी बिल पास हुए लेकिन चर्चा और बहस किसी पर नहीं हुई। अपवाद दिल्ली सेवा बिल रहा, जिस पर दोनों पक्षों के बीच लंबी चर्चा हुई। विपक्ष की ओर से महत्वपूर्ण आपत्तियां दर्ज कराई गईं तो सत्ता पक्ष की ओर से उसके बिंदुवार जवाब दिए गए। इस एक चर्चा को छोड़ दिया जाए तो यह पूरा सत्र मणिपुर पर चर्चा की मांग की भेंट चढ़ गया। जो अविश्वास प्रस्ताव इस सत्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बना, उसके पीछे भी यही बात रही कि मणिपुर पर स्वस्थ, सार्थक चर्चा की कोई राह सत्तापक्ष और विपक्ष नहीं ढूंढ पाए।
दिलचस्प है कि शुरू से आखिर तक दोनों पक्ष यही दावा करते रहे कि वे मणिपुर के हालात पर चर्चा करना चाहते हैं। समझना मुश्किल है कि यह कैसी इच्छा थी जो लगातार बातचीत के बाद भी दोनों पक्षों को समय रहते सहमति के किसी ऐसे बिंदु पर नहीं ला सकी, जिससे मणिपुर पर सदन के अंदर सार्थक चर्चा भी होती और मॉनसून सत्र का कामकाज भी हो पाता। बहरहाल, इसी सत्र में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद सदस्यता की बहाली भी हुई जो मानहानि के एक मामले में गुजरात की एक अदालत द्वारा दो साल कैद की सजा सुनाए जाने के बाद छिन गई थी।
आखिर सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा शुरू होने से एक दिन पहले उनकी सदस्यता बहाल हुई और वह इस चर्चा में शिरकत कर सके। उनके भाषण की वजह से और कुछ हुआ हो या न हुआ हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम राहुल का वह नैरेटिव एक बार फिर सामने आ गया, जिसे सत्तापक्ष अपने लिए अनुकूल बताता रहा है और जिससे विपक्ष का कम से कम एक वर्ग कथित तौर पर बचने की कोशिश करता रहा है। पिछले कुछ सत्रों की तरह संसद का यह सत्र भी सदन के अंदर से ज्यादा सदन के बाहर लगी गांधी प्रतिमा के पास ही विपक्ष के विरोध प्रदर्शन का गवाह बना।
विपक्षी सांसदों को सजा के तौर पर कार्यवाही से बाहर करने या निलंबित करने के मामले इस बार भी हुए। आप सांसद संजय सिंह को तो अगले सत्र के लिए भी निलंबित करने का फैसला ले लिया गया। राघव चड्ढा के खिलाफ फर्जीवाड़े का आरोप लगाया गया तो लोकसभा में कांग्रेस के सदन नेता अधीर रंजन चौधरी तीखे भाषण के चलते निलंबित किए गए। कुल मिलाकर देखा जाए तो संसद का यह सत्र भी देश में संसदीय लोकतंत्र के भविष्य को लेकर कोई बेहतर संकेत नहीं दे सका।
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