कांग्रेस को मजबूत करने की दिशा में राहुल गांधी ने नया प्रयास शुरू किया है। भारत को जोड़ने की दिशा में राहुल की पैदल यात्रा भले ही कुछ राजनीतिक दलों को चुभ रही हो मगर यह सही है कि भारत को नए सिरे से पहचानने के साथ ही अपनी पार्टी को आम लोगों के करीब लाने की राहुल की इस कोशिश को कतई मजाक बनाकर उड़ाया नहीं जा सकता।
प्रसंगवश कहा जा सकता है कि राहुल गांधी की बातों को लेकर अक्सर मजाकिया अंदाज में पेश करने वाली भारतीय जनता पार्टी भी उनकी यात्रा को लेकर किसी मजाकिया बयानबाजी से बच रही है। जाहिर है हर दल को यह बात समझ में आ रही है कि राहुल ने अपनी पार्टी के साथ ही अपनी छवि को भी जनता से जोड़ने का प्रयास शुरू किया है।
इस यात्रा में उनसे जुड़ने वालों की संख्या देखकर भी कहा जा सकता है कि इस यात्रा की कांग्रेस को जरूरत थी। लेकिन यात्रा के अलावा भी राहुल गांधी को कई बातों का ख्याल रखना होगा।
अव्वल तो यह कि उनकी जान को खतरा है क्योंकि कुछ अतिवादी संगठनों की ओर से बार-बार उन्हें मार डालने की धमकी दी जा रही है। ऐसे में किसी के भी भीड़ से निकलकर राहुल से मिल लेने की घटना को छोटा नहीं समझना चाहिए। इसे अति उत्साह में लिया गया कदम भी नहीं कहा जा सकता।
राहुल की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। इसके अलावा दूसरी बात यह है कि सिर्फ भारत जोड़ो यात्रा से ही कांग्रेस का कायाकल्प नहीं होने वाला है। बुनियादी स्तर पर भी संगठन में बदलाव लाने की जरूरत होगी।
दरअसल राहुल के इर्द-गिर्द कुछ लोगों की चौकड़ी इस तरह बन जाया करती है जो उन्हें आम लोगों से दूर कर दिया करती है तथा पार्टी के निचले स्तर के लोगों से आलाकमान को काटने की कोशिश करती रहती है। इस तरह की चौकड़ी पर भी नजर रखनी होगी।
इसके अलावा कांग्रेस को यह समीक्षा करनी चाहिए कि आखिर पिछली किन गलतियों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है तथा हिन्दी भाषी प्रदेशों में उसे दुबारा लोग क्यों नहीं अपना रहे हैं।
इसमें सबसे अधिक भूमिका उन मठाधीशों की रही है जिनका समाज में कोई जनाधार नहीं रहा मगर केवल दिल्ली दरबार का चक्कर लगाकर ही अपनी नेतागिरी चमकाते रहे। ऐसे आसमानी नेताओं की पहचान करके उन्हें तुरंत साइड करने की भी जरूरत आन पड़ी है।
यदि राहुल गांधी की इस यात्रा का सकारात्मक प्रभाव जानने की इच्छा हो तो पार्टी नेतृत्व को कठोर फैसले लेने होंगे। ज्ञातव्य है कि चुनाव में कुछ चुनिंदा लोग ही काम करते हैं और वह भी गांधी परिवार के नाम पर ही वोट मांगते हैं।
लेकिन पार्टी को बहुमत मिलने के बाद ही कुछ लोग मंत्री की कुर्सी पर गिद्ध दृष्टि लगा देते हैं। दरअसल ऐसे लोगों का कोई जनाधार नहीं होता और सबसे पहले कुर्सी नहीं मिलने पर ऐसे लोग ही बागी हो जाते हैं जिससे पार्टी में टूट की आशंका बनी रहती है। राहुल गांधी को ऐसे तत्वों पर भी नजरदारी करनी होगी।
उनकी भारत को जोड़ने की मुहिम का जनता ने भरपूर स्वागत किया है लेकिन केवल इस यात्रा के भरोसे कांग्रेस पुनः मजबूत नहीं हो सकती। लोकतंत्र में सबको अपने हिस्से की लड़ाई लड़ने की आजादी है। राहुल गांधी को समझदारी से काम लेने की जरूरत है।
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