विपक्ष की अगली बैठक

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केंद्र की एनडीए सरकार को घेरने की तैयारी होने लगी है। इस क्रम में पटना में विपक्षी नेताओं की एक बैठक हुई। बैठक में एकजुटता का नारा सुना गया और लालू द्वारा राहुल गांधी के लिए शादी का प्रस्ताव रखा गया। अजीबोगरीब बात यह रही कि एक-दूसरे के धुर विरोधी भी पटना के मंच पर देखे गए। जिस सीपीएम के खिलाफ ममता बनर्जी लंबे समय तक बंगाल में लड़ती रहीं, पटना में उन्हें सीपीएम के साथ देखा गया। इससे कम से कम इतना जरूर पता चलता है कि देश भर में घूम-घूम कर नीतीश कुमार ने जो विपक्षी नेताओं को पटना आने का न्यौता दिया था-उसका असर हुआ है। लेकिन मोदी सरकार को घेरने या एनडीए की सरकार को हराने के लिए अभी विपक्ष को कई राउंड बैठकें करनी होंगी क्योंकि एनडीए का सर्वमान्य चेहरा खुद नरेंद्र मोदी हैं। और मोदी के मुकाबले विपक्षी खेमा किसे चुनता है, देश यह भी देखने को आतुर होगा।

विपक्ष की ओर से एनडीए सरकार के कुशासन की बात कही जा रही है। इस कुशासन से लोगों को निजात दिलाने के लिए विपक्ष किस चेहरे को पेश करेगा-अभी यह तय नहीं हो सका है। जबकि लगातार दो बार लोकसभा का चुनाव जीत चुकी भाजपा को लगातार दूसरी बार उत्तर प्रदेश में भी चुनावी जीत का अनुभव हासिल है। चुनावी गणित में निपुण हो चुकी भाजपा को रोकने के लिए ताकतवर गठबंधन की जरूरत होगी और इसके लिए पहले मोदी से मुकाबला करने वाले विपक्षी नेता की जरूरत होगी। नेता की पहचान के बाद नीतियों की बात आएगी, फिर तय होगा कॉमन मिनिमम प्रोग्राम।

यह सही है कि बंगाल के अलावा भाजपा को तमिलनाडु, कर्नाटक और हिमाचल में कांग्रेस के हाथों शिकस्त मिली है, लेकिन अभी विपक्ष जनता को समझा पाने की स्थिति में नहीं लगता। मोदी का विकल्प खोजने की बात इसलिए हो रही है क्योंकि कथित तौर पर विरोधियों के खिलाफ मोदी सरकार केंद्रीय एजेंसियों को काम में लगा रही है। मतलब यह कि जिन नेताओं के खिलाफ सीबीआई, ईडी, एनआईए या आयकर के छापे पड़ रहे हैं- वे मोदी हटाओ, देश बचाओ की बात कर रहे हैं। इससे समाज को संकेत जाता है कि मोदी का विरोध राजनेता अपने बचाव के लिए करना चाहते हैं, जनता की भलाई के लिए नहीं। पटना में भी विपक्षी दल अपने-अपने हिस्से की जमीन बचाने में लगे रहे। जनता के हितों की रक्षा के लिए कोई बात नहीं हो रही है। इससे जनता में भ्रम की स्थिति बनेगी। जनता यह समझने को बाध्य होगी कि विपक्ष में शामिल दलों की अपनी जेब पर संकट है, इसीलिए लोग मोदी-मोदी चिल्ला रहे हैं। ऐसे में अगली बैठक से तमाम मोदी विरोधियों को चाहिए कि एक ऐसी राजनीतिक लाइन तय करें जिससे जनता को भरोसा हो कि विपक्ष केवल विरोध के लिए विरोध नहीं कर रहा। यह विरोध केवल कुर्सी हासिल करने के लिए नहीं बल्कि देश की सेहत बदलने के लिए है। तभी विपक्ष की बात जनता की समझ में आएगी। याद रहे, केंद्रीय एजेंसियों का डर राजनेताओं को होता है, जनता को नहीं। जनता के बीच एक पारदर्शी तस्वीर पेश करने की जरूरत है। भाजपा लगातार विरोधियों पर परिवारवाद का तोहमत लगाती है। परिवारवाद के आरोपों से खुद को बचाते हुए जनहित के मुद्दों को समाज के सामने लाने पर ही विपक्षी एकता पर लोगों को भरोसा होगा। विपक्ष अगली बैठक में पहुंचने से पहले इस मसले पर होमवर्क करे।