कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनते ही कुछ लोगों को दिन में ही सपने आने लगे हैं। खासकर उन कांग्रेसियों में ज्यादा उत्साह देखा जा सकता है जिन्हें किसी के दूसरे के कंधे पर बंदूक फायर करने की आदत हो गई है। हकीकत है कि नेहरू-गांधी परिवार से अलग किसी भी तथाकथित बड़े कांग्रेसी नेता ने इन सालों में ऐसे आंदोलन का सूत्रपात नहीं किया है जिसे देश की जनता याद रख सके। ऐसे में केवल सत्ता की मलाई खाने वाले नेताओं को एक बाऱ फिर से सत्ता की ललक तो हो चली है मगर नेहरू-गांधी परिवार के बूते। इस खास कुनबे के लोगों का कहना है कि अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से प्रियंका वढरा (गांधी) को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाया जाना चाहिए। ऐसी मांग करने वालों को लगता है कि कर्नाटक की जीत में प्रियंका की भूमिका राहुल गांधी से भी ज्यादा रही है, इसलिए पीएम के चेहरे के तौर पर प्रियंका को ही पेश किया जाना चाहिए।
मांग गलत नहीं है। प्रियंका में नेतृत्व के सारे गुण हैं तथा बंगलुरू में उनकी रणनीति सचमुच करिश्मा दिखाने में कामयाब रही। लेकिन राहुल को हाशिए पर रखने की सोच का क्या कहा जाए। आम कांग्रेस जनों को यह पता है कि लगभग गायब हो चुकी कांग्रेस पार्टी में नई ऊर्जा भरने का काम राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने की। देश के कोने-कोने में राहुल ने अकेले दम पर घूमकर जिस तरह मोदी विरोधी हवा को एक साथ लाने का प्रयास किया, उससे कांग्रेस का संगठन दुबारा चंगा होने लगा है। राहुल की कोशिश की बुनियाद पर ही कर्नाटक की जीत की इमारत खड़ी की गई। ऐसे में राहुल से भी देश के युवाओं को नई उम्मीद जगी है। केवल सत्ता के लिए किसी की अहमियत को कम कर देना सही नहीं है। कानूनी विवाद के कारण राहुल को दरकिनार रखकर अगर प्रियंका को सामने लाया जाता है तब भी अभी काफी कुछ करने की जरूरत है क्योंकि देश में अनेक ऐसे भी दल हैं जिन्हें कांग्रेस और भाजपा दोनों से ही समान दूरी बनाकर चलने की सूझ रही है। ऐसे दलों को भी साथ लेना होगा, उनकी सहमति लेनी होगी। कांग्रेस जल्दी अपने स्वार्थों से तौबा करना नहीं जानती। इतिहास गवाह है कि जिस किसी भी दल को कांग्रेस ने सरकार बनाने में सहयोग किया है, उसे अकालमौत का शिकार होना पड़ा है। ऐसे में मोदी के विरुद्ध अगर विपक्ष को एकजुट होना है तो पहले कांग्रेस को तय करना होगा कि नेतृत्व कौन करेगा। यहां जिद नहीं बल्कि समर्पण की जरूरत होगी। इस मामले में ममता बनर्जी के सुझाव को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता जिसमें उनका मानना है कि जो क्षेत्रीय दल देश में जहां मजबूत हैं, उन्हें ही भाजपा के खिलाफ लड़ने दिया जाए तथा चुनाव बाद नेता का चयन हो। इसके अलावा एक विचार यह भी सुना जा रहा है जिसमें नीतीश कुमार को सबसे मेल-जोल बढ़ाने का जिम्मा दिया गया है। माना यही जा रहा है कि नीतीश को भी मोदी के खिलाफ उतारा जा सकता है। उधर महाविकास अघाड़ी के कुशल कारीगर शरद पवार ने अभी अपना पत्ता खोला नहीं है। ऐसे में कांग्रेस द्वारा प्रियंका के नाम का ढोल पीटना अभी सही नहीं है। प्रियंका में इंदिरा गांधी का अक्स जरूर झलकता है लेकिन अभी वह समय शायद नहीं आया जिसमें उन्हें पीएम पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया जाए। इस मामले में अभी जल्दबाजी ठीक नहीं होगी।