नई दिल्ली/रांची : आज के समय में रिश्ते जितनी जल्दी बनते हैं उतनी ही जल्दी टूट भी जाते हैं। लेकिन अगर शादी की बात करें तो इसे टूटने में काफी वक्त लगता है। कपल चाह कर भी अपनी शादी से मुँह नहीं फेर सकते। उन्हें शादी तोड़ने के लिए भी 6 महीने का लम्बा इंतज़ार करना पड़ता और फिर कोर्ट की दी गयी तारीख पर उन्हें परेशान होना पड़ता। लेकिन अब जिस तरह चटमंगनी होती है उसी तरह से झट तलाक हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि संविधान के आर्टिकल 142 के तहत उन्हें यह अधिकार है कि कोई भी न्यायोचित फैसला दे सकता है। बेंच ने कहा, ‘हमने व्यवस्था दी है कि सुप्रीम कोर्ट के लिए किसी शादीशुदा रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है।
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कोर्ट ने कहा कि जीवनसाथियों के बीच दरार नहीं भर पाने के आधार पर वह किसी भी शादी को खत्म कर सकता है। SC ने साफ कहा कि पार्टियों को फैमिली कोर्ट भेजने की जरूरत नहीं है, जहां उन्हें 6 से 18 महीने तक का इंतजार करना पड़ सकता है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13बी में पारस्परिक सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया बताई गई है। सेक्शन 13(बी) 1 कहता है कि दोनों पार्टियां जिला अदालत में अपनी शादी को खत्म करने के लिए याचिका दे सकती हैं। इसमें आधार यह होगा कि वे एक साल या उससे भी अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं या वे साथ नहीं रह सकते या पारस्परिक तरीके से शादी को खत्म करने पर सहमत हुए हैं।