कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने पर दोनों समाज के राय अलग अलग

कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने पर दोनों समाज के राय अलग अलग, दोनों ही बजा रहे अपनी डफली अपना राग

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चाईबासा : झारखंड सरकार के लिए वर्ष 2023ज्वलंत मुद्दों का वर्ष रहा है। 1932 का जिन्न अभी बॉटल में बंद नहीं हुआ है कि आदिवासी कुड़मी का मुद्दा होट केक बनकर रह गया है। पूरा झारखंड इस मुद्दा की ज्वाला से तप रहा है। कुढ़मी को आदिवासी का दर्जा दिलाने के नाम पर विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक दलों ने मोर्चा संभाल रखा है।सड़क से सदन तक इसकी गूंज सुनाई दे रही है।वर्तमान में सारे मुद्दे इस मुद्दा के आगे बौने साबित हो रहे है।ग्रामीण क्षेत्र में इसे लेकर गर्मागर्म बहस छिड़ी हुई है।जहा कू डमी समाज अपने को आदिवासी साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है वहीं आदिवासी जन जाति समाज इसे किसी प्रकार स्वीकार नहीं कर रहा है।दोनों समाज में मतभेद भी बढ़ रहा है दोनों ही समाज के अपनी डग्ली अपना राग है।

 

हमारी संस्कृति रीत रिवाज सब कुछ आदिवासियों जैसी ही है

आजसू के जिला वरीय उपाध्यक्ष गंगा धर महतो ने कहा कुड़मी आदिवासी ही है। भारत के प्राचीनतम समाज है। हमारी संस्कृति रीत रिवाज सब कुछ आदिवासियों जैसी ही है। पहले कुड़मी को आदिवासी के श्रेणी में ही रखा गया था फिर एक षड्यंत्र के तहत इसे पिछड़ा वर्ग में शामिल कर दिया।हम अपने हक हुकूक की लड़ाई के लिए उलगुलान करेंगे। झामुमो नेता  सह जगन्नाथ पुर प्रखंड अध्यक्ष संदेश सरदार ने कहा कोन किस श्रेणी में आता है ये मैटर नहीं करता।मैटर ये है कि प्रत्येक समाज का अपेक्षिक विकास कैसे हो।आदिवासी और कुडमी अलग अलग है।इनकी परम्परा रीत रिवाज सब अलग अलग है।न ये हमारे धर्म को स्वीकार सकते है न आदिवासी उनकी परम्परा को अपना सकते है।तो फिर ये हाई तोबा क्यों। कुड़मी नेता त्रिनाथ महतो ने कहा शुरू से परम्परा रही है कुड़मी आदिवासी भाई भाई।पहले जब हम आदिवासी थे।हम खुद आदिवासी कहलाना पसंद कर रहे है तो इस पर किसी को क्या आपत्ति है।

 

हमेशा आदिवासियों को हीन दृष्टि से देखते आए है

सामाजिक कार्यकर्ता निवास तिरिया ने कहा जो हमेशा आदिवासियों को हीन दृष्टि से देखते आए है।आज खुद आदिवासी कहलाना क्यों पसंद कर रहे है।अस्ला में उनकी नजर हमारी जल जंगल जमीन पर है।वे सीधे साधे आदिवासियों की जमीन हड़पने और आरक्षण का लाभ लेकर गरीब आदिवासियों का हक मारने का शड़तांट्र रच रहे है। परमानंद महतो ने कहा हमारी संस्कृति शादी विवाह पूजा पाठ की विधि में समानता है।हमारी सभ्यता और संस्कृति समान है।कुद्मि वास्तव में आदिवासी ही है। संदीप तिरिया ने कहा आदिवासी सरना धर्म को मानते है जबकि कुडमी हिन्दू धर्म को मानते है।आदिवासी प्रकृति के पुजारी है जबकि कुडमी मूर्ति पूजा में आस्था रखते है। दोनों समाज धार्मिक सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से बिल्कुल अलग है।

 

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