सेना में पाक जासूस

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भारतीय सेना के बारे में दुनिया के ज्यादातर देशों की धारणा काफी सकारात्मक है। यही वजह है कि भारत के धुर विरोधी भी भारतीय जवानों का सम्मान करते हैं तथा किसी भी विदेशी मिशन पर गये जवानों का विशेष ख्याल रखा जाता है। सेना के कामकाज, अंदरूनी व्यवहार, अधिकारियों और जवानों के बीच का परस्पर संबंध तथा भारत सरकार के साथ जवानों का सामंजस्य अपने आप में काबिलेतारीफ है। अपने जवानों की बहादुरी पर हर भारतीय का सीना चौड़ा होता है। यही वजह है कि किसी भी आंतरिक या बाहरी संकट की घड़ी में सारे  विकल्प तलाशने के बाद सरकार सेना बुलाती है। इससे साफ जाहिर है कि भारत में सेना का क्या महत्व है। लेकिन कोई अगर सेना के अधिकारियों या निचले स्तर के लोगों पर दगाबाजी का आरोप लगाता है तो बुरा लगता है, अपमान महसूस होता है। दरअसल खबर मिली है कि दो पाकिस्तानी नागरिक पश्चिम बंगाल के बैरकपुर स्थित सैन्य छावनी में मौजूद हैं जिन्हें बाकायदा भारतीय सेना में नौकरी दे दी गई है। आरोप तो आरोप ही होते हैं। उनकी सच्चाई का जबतक सही तरीके से पता नहीं लगा लिया जाता तबतक किसी के बारे में कुछ कहना मुनासिब नहीं होता। कलकत्ता हाईकोर्ट में दायर की गई शिकाय़त ही चीख-चीख कर कह रही है कि ऐसा हुआ है। आरोप लगाने वाले का कहना है कि स्थानीय पुलिस की मदद से ही शायद इन दोनों नागरिकों का पुलिस वेरिफिकेशन नहीं कराया गया है। अदालत ने इसे गंभीर विषय मानकर इसकी जांच करने का फरमान सुना दिया है।

इस मामले की जांच में सीआईडी को क्या हासिल होगा या जांच कहां तक पहुंचेगी- यह बाद की बात है। लेकिन प्रश्न यह है कि सेना को निशाना क्यों बनाया जा रहा है। अगर किसी ने शरारतवश अदालत का इस मसले पर ध्यानाकर्षण किया है तो उसे इसकी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन अगर इन आरोपों में तनिक भी सच्चाई है तो इसका मतलब बहुत गंभीर होता है।

देश के दुश्मन यह हमेशा चाहते हैं कि किसी न किसी बहाने भारतीय सेना की गुप्त कार्रवाइयों या योजनाओं की जानकारी उन्हें मिलती रहे। इसके लिए भारत-पाक सीमा से सटे गांवों में मौजूद अपने एजेंटों को पाक खुफिया संस्था आईएसआई तरह-तरह से प्रशिक्षित करती है। प्रशिक्षण के बाद ही उन्हें भारत में दाखिल कराया जाता है। इस क्रम में यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आजकल पड़ोसी मुल्क नया हथकंडा अपना रहा है जिसके तहत भारतीय जवानों तथा अधिकारियों को हनी ट्रैप में फंसाया जा रहा है। लेकिन सीधे भारत की जमीन पर किसी को उतार देना तथा भारतीय फौज में उसका दाखिला दिलाना जरा अजीब लगता है। इसीलिए बैरकपुर की सैन्य छावनी में मौजूद कथित इन पाक नागरिकों की पहचान जरूरी हो जाती है।

काबिलेगौर है कि पूर्वोत्तर भारत की सीमाओं को कोलकाता के ही मुख्यालय से नियंत्रित किया जाता है तथा बैरकपुर की ऐतिहासिक सैन्य छावनी इस मामले में काफी संवेदनशील मानी जा सकती है। अगर सेना में सचमुच पाकिस्तानी नागरिकों को बगैर जांच-पड़ताल के किसी ने दाखिल कराया है तो उसकी भी खोज जरूरी है। इससे पहले डीआरडीओ में भी एक वैज्ञानिक पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगा था जिसे बाद में गिरफ्तार कर लिया गया। इसलिए ऐसे मामलों को नजरअंदाज करना या उनकी उपेक्षा करना गलत होगा। उम्मीद है कि सीआईडी की जांच से सच्चाई बहुत जल्दी सामने आएगी तथा सेना की वर्दी पर दाग लगाने की साजिश में जुटे लोगों के चेहरे बेनकाब होंगे।