प्रचंड या किसी की कठपुतली

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लो फिर वही हुआ, जिसकी आशंका थी। फिर से माओवादी नेता पुष्प कमल दहल यानी प्रचंड की ताजपोशी पड़ोसी मुल्क नेपाल में हो गई है। जाहिर है कि इस ताजपोशी से दिल्ली बहुत खुश नहीं होगी लेकिन दस्तूर निभाने के लिए काठमांडू को भारत की ओर से बधाई जरूर भेज दी गई है।

दुनिया के हर देश को पता है कि हमारा पड़ोसी चीन हर हाल में अपने आसपास के देशों पर काबिज होने की नीति के तहत काम कर रहा है और उसकी लगातार कोशिश रही है कि हर हाल में भारत को घेरा जाए।

भारत को घेरने की नीति के तहत ही बीजिंग ने ढाका को भी अपने पैसे के चंगुल में लेने की कोशिश की, श्रीलंका को अपना खास अड्डा बनाया तथा मलेशिया तक को अपना शिकार बना लिया।

हर देश में वह अपने चहेते चेहरों को स्थापित करने की चाल चलता रहा है जिससे कि भारत के चारों ओर घेराबंदी की जा सके। इस काम में उसे सामयिक तौर पर सफलता भी मिलती रही है। किंतु नेपाल में लगता यही था कि उसकी दाल नहीं गलने वाली मगर सियासी पैंतरे भी अजीबोगरीब हुआ करते हैं।

कौन-कब-किसके साथ चला जाए या किसे-किसका समर्थन हासिल हो, यह कयास लगाना मुश्किल हो जाता है। प्रचंड को अचानक नेपाली कांग्रेस का समर्थन यह बताता है कि चीन का प्रभाव नेपाली सियासत पर किस हद तक है। इससे कम से कम यह तय हो गया कि नेपाल की मौजूदा सरकार ले-देकर भारत के लिए सिरदर्द ही पैदा करेगी। लगे हाथों अब पिछली प्रचंड सरकार के कामकाज की समीक्षा भी जरूरी हो जाती है।

काफी लंबे संघर्ष के बाद माओवादियों को नेपाल में सरकार बनाने का मौका जब पहली बार मिला तो सबकी राय से प्रचंड को ही पीएम बनाया गया था। लेकिन कानून-व्यवस्था की हालत इतनी गंभीर हुई कि नेपाली अवाम ने त्राहित्राहि शुरू कर दिया था।

समाज में समानता लाने तथा गरीबों को इंसाफ देने के नाम पर माओ का झंडा लेकर जिन लोगों ने अवाम को सपने दिखाए थे, उनके बारे में पता चला कि अंदर से प्रायः सभी बड़े नेता भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोर थे। महज कुछ ही दिनों में प्रचंड की पिछली सरकार को प्रचंड झटका लगा और मजबूरन माओवादी नेता को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

इसके अलावा प्रचंड की असफलता ने माओवादियों के प्रति लोगों का लगाव भी कम कर दिया था। लेकिन चीन की ओर से लगातार ऐसे माओ पंथी नेताओं को शह दी जाती रही है। उसी शह का नतीजा है कि आज भारतीय भूखंड के कुछ इलाकों पर नेपाल ने अपना दावा ठोंकना शुरू किया है।

चीन की गोद में बैठी प्रचंड सरकार एक बार फिर से भारत विरोधी गतिविधियों को आगे बढ़ाएगी और संभव है कि काठमांडू को पाकिस्तान अपना नया आतंकी ठिकाना बनाने की कोशिश करेगा। इस तरह भारत के पश्चिम, पश्चिमोत्तर और उत्तर में सोची समझी रणनीति के तहत चीन ने एक दीवार खड़ी करने की कोशिश की है।

संभव है कि प्रचंड के नेपाल में सत्तारूढ़ होने का लाभ भारत में भूमिगत हो चुके कुछ अति वाम संगठन भी उठाने की कोशिश करें। ऐसे में भारत को कूटनीतिक मोर्चे पर जमकर बैटिंग करने की जरूरत आन पड़ी है।

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