शब्दकार ने काव्यांजलि से अटल को याद किया

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कोलकाता। कोलकाता महानगर की सामाजिक व साहित्यिक संस्था ‘शब्दकार’ ने काव्यांजलि के माध्यम से कीर्तिपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत माँ भारती की वन्दना से कवयित्री श्वेता गुप्ता ‘श्वेताम्बरी’ ने की।

ओज के गंभीर रचनाकार नंदू बिहारी ने अटल को याद करते हुए ‘सिरहाने मौत एक दिन सहमी रही खड़ी, फिर आ ही गयी मृत्यु की वह कारुणिक घड़ी, भारत के नैन का अटल तारा चला गया, उत्सव महाप्रयाण का मनालूँ तो चलूँ-’ सुनाकर सबको भाव विभोर कर दिया। वन्दना पाठक ने कहा– ‘इस धरा से उस गगन तक शब्दों के श्रृंगार थे, वाणी में परिपक्वता थी, साधु धीरजवान थे |’

वरिष्ठ गीतकार चंद्रिका प्रसाद पाण्डेय ‘अनुरागी’ की रचना – ‘स्वयं धूप में रहकर भी सुत को देते आराम, पिता जी थे बरगद की छाँव |’ वरिष्ठ शिक्षक व कवि डॉ० मनोज मिश्र की कविता – ‘तुझे समझना नहीं है आसान, पिघल जाते हो कभी मोम की तरह पाकर थोड़ा भी ताप |’

दूसरी ओर श्वेता गुप्ता ने रचना पढ़ी – ‘शीश है कश्मीर, मम शान है अभिमान है, छीन ले बल है किसे, चीर दे हम जान है-’ सुनाकर खूब तालियाँ बटोरीं| हास्य कवि गौरी शंकर दास की कविता थी ‘काल के भाल पर लिख गए अमिट कहानी, मौत को भी ललकार कर, कर दिए पानी पानी।’

इसके अलावा अन्य कवियों में धर्मदेव सिंह, भारत भूषण शर्मा, ओम प्रकाश चौबे, राम नारायण झा ‘देहाती’, मंजू तिलक, जतिब हयाल ने भी अपनी रचनाएँ सुनाकर खूब वाहवाही लूटी।

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समारोह के अध्यक्ष रवि प्रताप सिंह ने रचना पढ़ी – ‘अन्धकार पर बहुत लिख चुके, अब तो लिखो उजालों पर, बुझे दीप को छोड़ लिखो, अब धधकी हुई मशालों पर-’ इतना सुनते ही श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो गए।

मुख्य अतिथि दयाशंकर मिश्र के अतिरिक्त विशिष्ट अतिथि विश्वजीत शर्मा ‘सागर’ ने कहा– ‘निज लेखन मौलिक कहे, अद्भुत उनका ज्ञान, शिशु जन्मे नर गर्भ से तब मौलिकता मान।’ कार्यक्रम का संचालन संस्था के संस्थापक प्रदीप कुमार धानुक व धन्यवाद ज्ञापन प्रीति धानुक ने किय।