क्रूस रास्ता का महत्व: चालीसा के शुक्रवार के संदर्भ में:

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रांची : ईसाइयों के लिए चालीसा काल का शुक्रवार महत्वपूर्ण दिन होता है। चालीसा काल के प्रत्येक शुक्रवार को गरिजघरों या धार्मिक स्थलों में ईसाई समुदाय इक्ठठे होकर विशेष प्रार्थना करते तथा येसु के क्रूस के रहस्यों पर चिंतन करते है। संत मरिया महागिरजाघर के अलावा शहर के लगभग सभी गिरजाघरों में क्रूस-रास्ता प्रार्थना की गयी। चालीसा काल राखबुध से प्रांरम्भ हुआ। मान्यता है कि पुण्य शुक्रवार के दिन अर्थात गुड फ्राइडे के दिन ईसा मसीह सूली अर्थात क्रूस पर अपनी जान की कुर्बानी दी थी। इसलिये चालीसा काल के प्रत्येक शुक्रवार को ईसाई लोग ईसा मसीह के क्रूस, उनके दुख भोग और उनके मरण का स्मरण करते हैं। क्रूस मरण के फलस्वरुप ईसा मसीह ने लोगों को पाप तथा मृत्य से बचाया। उनका मानना है कि आज भी क्रूस भक्ति द्वारा पापों से छुटकारा, बुराइयों से बचने तथा मुक्ति पाया जा सकता है।

येसु को मृत्युदंड की सजा रोमन शासनकाल में क्रूस पर दिया गया। किसी घोर अपराधी को उस समय लकड़ी से बना क्रूस पर ठोंक कर चौराहे या सार्वजनिक स्थल पर मृत्युदंड दिया जाता था। यह घृणित, अपमान, हार, विनाश तथा मृत्य का प्रतीक माना जाता था। येसु का कोई दोष नहीं था निर्दोष होते हुए भी उसे सजा-ए-मौत दिया गया। उन्होंने क्रूस बलिदान को स्वीकार किया। उन्होंने क्रूस की मृत्यु को अंनत जीवन का स्रोत बना दिया। पाप की वजह से हमें मरना था, उन्होंने स्वयं मरकर हमें बचा लिया। हतासा तथा विफलता को आशा और विजय में बदल दिया। क्रूस हमेशा के लिये मुक्ति का स्रोत बन बन गया।

 

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कैथोलिक ईसाई लोग येसु के क्रूस के रास्ते पर होने वाले कुल 14 घटनाओं पर चिंतन व प्रार्थना करते हैं। ये येसु के मृतुदण्ड की सजा से लेकर उनकी मृत्य तथा मृत शरीर को कब्र तक रखने तक की घटना है। यह येरूसलेम के रोमन राज्यपाल के दरबार से लेकर कलवारी पहाड़ तक की घटना है:

 

पहला स्थान : येसु को प्राणदण्ड की आज्ञा मिलती है। निर्दोष होते हुए भी येसु को मृतुदण्ड तत्कालिक राज्यपाल पिलातुस के द्वारा दिया जाता है।
दूसरा स्थान: येसु के कंधे पर क्रूस लादा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ होता है। उस क्रूस को ढोकर येसु कलवारी पहाड़ की ओर चलते हैं।
तीसरा स्थान: यह पहली बार क्रूस के नीचे गिरते हैं। कोड़ो की मार, सिपाहियों की क्रूरता तथा क्रूस की बोझ की वजह से येसु क्रूस के नीचे गिर जाते हैं।
चौथा स्थान: येसु अपनी दुखित माता मरियम से मुलाकात करते हैं। एक माँ का दुःख अपने बेटे के लिये कितना कष्टदायक है।
पांचवा स्थान: सिरिन के निवासी सिमोन येसु के क्रूस को ढोने में मदद करता है। येसु काफी थक चुके थे इसलिए कुछ समय क्रूस ढोने में वह येसु का साथ देता है।
छठवां स्थान: एक धर्म मिस्त्री जिसका नाम वेरोनिका है वह येसु के चेहरे को रुमाल से पोछती है। खून और पसीना से सना हुआ येसु के चेहरे वह पोछती है।
सातवां स्थान: येसु दूसरी बार क्रूस के नीचे गिरते हैं।
आठवां स्थान: येरूसलेम की स्त्रियों से मुलाकात। ये स्त्रियां येसु के लिए रोती और विलखती हैं।
नवा स्थान: येसु तीसरी बार क्रूस के नीचे गिरते हैं। क्रूस का बोझ अत्यधिक होने से तथा सिपाहियों के मार से वे तीसरी बार गिरते हैं।

दसवां स्थान: येसु के कपड़ों को उतारा जाता है।जबरन येसु के शरीर से कपड़ा उतारा जाता है।
ग्यारवाँ स्थान: येसु को क्रूस पर ठोंका जाता हैं। येसु को क्रूस पर पटक कर उसके हाथ और पैर पर कील से ठोंका जाता है।
बारवां स्थान: येसु क्रूस पर मर जाते हैं। तीन घंटे असहाय कष्ट झेलने के पश्चात येसु मर जाते हैं।
तेरवँह स्थान: येसु के मृत शरीर को क्रूस से उतारा जाता है। मरियम अपने बेटे के मृत शरीर को छाती से लगा लेती है।
चौधवं स्थान: येसु के मृत शरीर को कब्र में रखा जाता है। तीन दिन तक कब्र में रहकर येसु ईस्टर संडे को पुनर्जीवित हो जाते हैं।
क्रूस सभी मानव के लिए मुक्ति का साधन है। जो उसके प्रति श्रद्धा व भक्ति दिखाएगा उसके लिये जीवन मिलेगा, वह चैन व खुशी पायेगा।