जनाब की चिंता

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दुनिया में अपनी ताकत की धौंस दूसरों पर दिखाने का शौक पालने वाले देशों में अमेरिका का नाम सबसे आगे है। यह सही है कि लोकतंत्र की राह पर चल रहे अमेरिका के आर्थिक विकास की पूरी दुनिया कायल है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह किसी भी गैर मुल्क के घरेलू मामले में दखलंदाजी करता रहे और उसे ऐसा करने की छूट दी जाती रहे। जनाब बराक होसैन ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके हैं। अपने शासनकाल में उन्हें मध्य-पूर्व के मुसलमानों की फिक्र तक नहीं थी। सीरिया और यमन में अमेरिकी फौज वहां रह रहे मुसलमानों पर कहर ढाती रही और व्हाइट हाउस में बैठे ओबामा हत्या लीला का आनंद उठाते रहे। उन्हें तब ऐसा महसूस नहीं हुआ कि इन इलाकों में मारे जाने वाले लोग इस्लामी दुनिया के खास लोग हैं। तब शायद उन्हें यह इसलिए नहीं लगा होगा क्योंकि तब वे अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देश के अगुवा थे और किसी एक मजहब की वकालत नहीं कर सकते थे। लेकिन आज ओबामा भूतपूर्व हो चुके हैं। आज उन्हें भारतीय मुसलमानों का दर्द महसूस हो रहा है।

ओबामा ने दार्शनिक की भूमिका ली है। प्रधानमंत्री मोदी के हाल के अमेरिका दौरे पर ओबामा का दार्शनिक दर्द छलका है और उन्होंने साफ कर दिया है कि भारत के मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के मसले पर जो बाइडन को मोदी से बात करनी चाहिए। ओबामा का मानना है कि अगर भारत में मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा तो इससे भारत की एकता खंडित हो सकती है। ओबामा की यह शातिराना चाल है जिसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम है। सबसे पहली बात तो यह है कि दुनिया में किसी भी देश को भारत के घरेलू मामलों में झांकने की जरूरत नहीं है। दूसरी बात यह कि भारत विविधताओं का देश है जहां हर मजहब के लोग सदियों से आपस में मिलजुल कर रहते हैं। एक दूसरे के पर्व-त्यौहार में शामिल होते हैं तथा एक-दूसरे का दर्द बांटते हैं। यह अमेरिकन सोसाइटी नहीं है जहां ओपन सिस्टम है। तीसरी बात यह कि इतनी कोशिश के बावजूद ओबामा अपने देश में काले-गोरे का भेद नहीं मिटा सके। उनसे पूछा जा सकता है कि काले लोगों ने आखिर क्या गुनाह कर दिया है कि अमेरिकन समाज आज भी उनसे घृणा करता है। भारत में जितने मुसलमान रहा करते हैं, उससे कम अमेरिका में काले लोग रहा करते हैं। क्या कभी काले लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए ओबामा ने सड़क पर कोई आंदोलन छेड़ा। नहीं।

मतलब यह है कि ओबामा ने राष्ट्रपति भवन से जाने के बाद फिर से सियासी शगूफा छोड़कर खुद को लाइमलाइट में लाने की कोशिश की है। लेकिन भारतीय मुसलमानों के हक-हकूक के लिए चिंतित होने वाले ओबामा को चाहिए कि पहले अपने गिरेबान में झांक लें। राजनीतिक समीकरणों के बूते भारत की आत्मा को मापने की गलती करने वाले कई विदेशी इसके पहले भी गलत साबित हो चुके हैं। अपनी विविधताओं पर भारत को नाज है। किसी खास वर्ग या धर्म की वकालत करने के लिए ओबामा को चाहिए कि कहीं और जाएं।भारतीय समाज में उनकी दाल नहीं गलेगी। एक बात और है। भारतीय समाज ऐसा नहीं है जहां एक संतान की माता तो एक है, मगर पिता कई हो जाते हैं। यहां पारिवारिक तानेबाने के सूत्र में ही पूरा समाज बँधा हुआ है और परिवार के वृत्त के बाहर एक ही तस्वीर देश के स्तर पर भी देखी जा सकती है। अभी इस गणित को समझने के लिए ओबामा जैसे नेताओं को काफी मशक्कत करनी होगी। इसलिए बराय मेहरबानी, अपना उपदेश और अपनी सोच लेकर ओबामा कहीं और दुकान लगाएं, भारत की चिंता न करें।