कोलकाता : गोपाल कृष्ण गोखले ने बंगाल को लेकर एक बार कहा था कि ‘वॉट बंगाल थिंक्स टूडे, इंडिया विल थिंक टुमारो’ । पूरा बंगाल ना सिर्फ देश बल्कि दुनिया के सामने भी एक अलग नजरियां पेश करता है। लेकिन ये बात पिछले 600 दिनों से ज्यादा से वक्त से अपने हक की मांग पर बैठे अभ्यर्थी नहीं बोल सकते हैं। उनके लिए ये बंगाल गोपाल कृष्ण गोखले वाला बंगाल नहीं है।
राजनीतिक दलों का मिल रहा समर्थन
नारा, आंदोलन और पोस्टरों से पटा धर्मतला के मेये रोड स्थित आंदोलनकारियों के संघर्ष की कहानी पूरी तरह से बयां कर सकता हैं। मुट्ठी भर छात्रों द्वारा शुरू किया गया आंदोलन जिसे राज्य की ममता सरकार ने भी गंभीरता से नहीं लिया था। लगा था कुछ दिन बैठ कर चले जायेंगे लेकिन वो चट्टानी इरादे के साथ सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार बैठे थे। धीरे-धीरे यह आंदोलन बढ़ता गया लोग जुड़ते गए। क्या राजनीतिक दल क्या स्वयं सेवी सभी ने आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ाया। कभी बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी तो कभी लेफ्ट के नेता सुजन चक्रवर्ती तो कभी लोकसभा में नेता विपक्ष अधिर रंजन चौधरी सभी ने आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ाया ।
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क्यों हो रहा है आंदोलन
उल्लेखनीय है कि एसएससी ( 9वीं से 12वीं श्रेणी) (एसएलएसटी) नौकरी प्रार्थी के आंदोलन को 600 से ज्यादा दिन हो चुके हैं। उनकी समस्या का समाधान नहीं निकला है। आंदोलनरत लोगों का आरोप है कि परीक्षा में फेल हुए और उनसे बाद पास हुए लोगों को नौकरी मिल गई पर इन्हें नहीं मिली। इनको आंदोलन करते लगभग दो साल होने चले हैं पर है इन्हें सरकार की ओर से सिर्फ आश्वासन ही मिला है नौकरी नहीं।
घर से दूर आंदोलन जारी
कोई अपने बच्चे को छोड़कर तो कोई अपने घर से कईं सौ किलोमीटर दूर लगभग 2500 से 3000 ऐसे कैंडिडेट हैं जो नौकरी की मांग पर आंदोलन कर रहे हैं। दरअसल ये सभी लोग बंगाल में कक्षा 9 से 12 के टीचर्स की परीक्षा पास किए हुए हैं। इन सभी ने स्टेट लेवल सिलेक्शन टेस्ट यानी एसएलएसटी की मेरिट लिस्ट में स्थान बनाया था। लेकिन पिछले 2 साल से उन्हें राज्य में टीचर की नौकरी नहीं मिली है।