तो अब खत्म हो गई उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी दुश्मनी

राजू पाल की हत्या के बाद शुरू हुए अतीक के बुरे दिन

156

प्रयागराज : शनिवार देर रात उत्तर प्रदेश सहित पूरा देश एक ऐसी घटना का साक्ष्य बनने वाला था जो शायद उत्तर प्रदेश के इतिहास से कभी ना अमिट हो । जीं हां उत्तर प्रदेश के कुख्यात माफिया इसके बाद फिर नेता बने अतीक अहमद और उसके भाई को पुलिस रिमांड में गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्या से कुछ दिन पहले पुलिस ने उसके बेटे का एनकाउंटर कर दिया गया था। इन दोनों की हत्या के साथ ही शायद उत्तर प्रदेश के उस दुश्मनी के चैप्टर का भी अंत हो गया जो आज से आज से तकरीबन 18 साल पहले 25 जनवरी 2005 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में शुरू हुआ था।

उस हत्याकांड में मारे गये शख्स का नाम था राजू पाल और मुख्य आरोपी था माफिया अतीक अहमद। जब डॉक्टरों ने राजू पाल की डेडबॉडी का पोस्टमार्टम किया तो उसके शरीर से तकरीबन डेढ़ दर्जन गोलियां निकाली गयी। इसके बाद से उत्तर प्रदेश के राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हुआ था।
ऐसे शुरू हुई दुश्मनी
तो चलिए इस दुश्मनी की कहानी की शुरूआत शुरू से बताते हैं। ये कहानी है साल 2003 की, जब प्रदेश की सत्ता बदली और समाजवादी पार्टी की सरकार बनी। तब तक अतीक अहमद इलाहाबाद पश्चिमी सीट से 5 बार विधायक बन चुका था। पूरे प्रयागराज उसका डर कायम हो चुका था। वर्चस्व ऐसा की उसके सामने कोई मुंह तक नहीं खोलता जो मुंह खोलता फिर उसका अंजाम बुरा होता। वक्त आया साल 2004 का, जब लोकसभा का चुनाव हुआ। मुलायम सिंह यादव अब अतीक अहमद को प्रदेश की राजनीति से ऊपर उठाना चाहते थे। इसलिए फूलपुर सीट से उसे सांसद का चुनाव लड़वाया और अतीक अपने खौफ के दम पर विधायक से सांसद बन गया। तब अतीक की पारंपरिक सीट इलाहाबाद पश्चिम खाली हो गई और यही से शुरू हुई अतीक और राजू पाल के बीच संघर्ष की कहानी।
अतीक का दाहिना हाथ था राजू पाल
दरअसल, राजू पाल एक वक्त पर अतीक का सबसे गरीबी हुआ करता था। वो अतीक की ही तरह अपराधी था। कई मामले उसके ऊपर दर्ज थे। एक तरीके से अतीक के दाहिने हाथ की तरह था राजू पाल। लेकिन दुश्मनी तब शुरू हुआ जब अतीक ने अपनी इलाहाबाद पश्चिम सीट खाली की। अतीक ने इस सीट से सपा के टिकट पर अपने छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को प्रत्याशी बनाया। दूसरी तरफ बसपा की टिकट पर राजू पाल ने भी पर्चा भरा। दोनों के बीच तल्खी बढ़ती गई। इस उपचुनाव में राजू पाल ने अतीक के भाई अशरफ को हरा दिया। ये हार कहीं ना कहीं अतीक के मुंह पर थप्पड़ जैसी थी। अतीक को लगा की कहीं उसका वर्चस्व समाप्त ना हो जाए।

इसे भी पढ़ें : चाईबासा पुलिस ने गर्मी को देखते हुए राहगीरों के लिए पेयजल की व्यवस्था की
राजू के शरीर से मिली थी 19 गोलियां
2005 में राजू पाल ने पूजा पाल से शादी कर ली। शादी के ठीक 10 दिन बाद 25 जनवरी को तेज रफ्तार स्कॉर्पियो ने राजू पाल की गाड़ी को ओवरटेक किया। राजू पाल कुछ समझ पाता इसके पहले ही एक गोली सामने का शीशा चीरते हुए उसके सीने में घुस गई। गाड़ी धीमी हुई। स्कॉर्पियो से 5 हमलावर उतरे। तीनों राजू पाल पर दनादन गोलियां बरसाने लगे। बाकी दो हमलावरों ने पीछे चल रही गाड़ियों पर गोलियां बरसाईं। 9 दिन की दूल्हन को होना पड़ा था विधवा जब उनके समर्थकों ने गोली चलने के बाद राजू पाल को एक टेम्पो में लादा और अस्पताल लेकर जाने लगे तो इसी दौरान अपराधियों को लगा कि राजू पाल अभी जिंदा है तो उन सबने तकरीबन 5 किलोमीटर तक उस टेम्पो का पीछा किया और घेर कर फिर गोलियां बरसाईं। इरादा साफ था किसी भी तरीके से राजू पाल बच ना पाए। इस हमले में राजू पाल और उनके साथ बैठे संदीप यादव और देवीलाल की भी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम में डॉक्टरों ने राजू के शरीर से कुल 19 गोलियां निकाली थीं।

उसकी पत्नी ने लगाया था अतीक पर आरोप
इस हत्याकांड में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने सीधे तौर पर अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का नाम लिया था। लेकिन सरकार सपा की थी, तो पुलिस ने इन्हें हाथ भी नहीं लगाया।

सरकार बदली तो अतीक के बुरे दिन शुरू
लेकिन वक्त बदला तो अतीके के भी दिन पूरे हो गए। मायावती की सरकार ने अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित कर दिया। यहीं से शूरू हुई अतीक की खात्में की कहानी। राजू पाल हत्याकांड मामले में मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या के बाद ये मामला और गंभीर हो गया। और आखिरकार जैसे राजू और उमेश की हत्या हुई थी वैसा ही अंत हुआ अतीक का।