यह भी अजीब परंपरा चल पड़ी है अपने यहां। जब भी किसी पर कोई आरोप लगता है तो आरोप लगाने वाले की गलती तलाशी जाती है और तपाक से उसका जवाब भी दे दिया जाता है।
जवाब भी कुछ इस अंदाज में दिया जाता है कि मैंने अगर अपशब्द कहे तो तुमने भी अमुक दिन अपशब्द का ही प्रयोग किया था। कोई इस बात पर चर्चा ही नहीं करता कि अपशब्द मैंने कहे या किसी और ने, किसी भी सूरत में अपशब्दों का जवाब अपशब्द नहीं हो सकते।
ठीक वैसे ही बुराई को ढकने के लिए अगर दूसरे की बुराई का सहारा लिया जाए तो बुराई इससे और पनपेगी।
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उसका सफाया नहीं किया जा सकता। कालिख से कालिख नहीं धुलती। लेकिन भारतीय लोकतंत्र की आजकल अजीब विडंबना है कि हर आदमी कालिख को कालिख से ही धोने की कोशिश करता है।
मिसाल के तौर पर आजकल संसद में चल रही उस बहस को ही लिया जा सकता है जिसमें कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा। यहां तक कि पीएम से अडाणी के संबंधों को भी खुलासा करने की मांग सदन में कर डाली।
कई चुभने वाली बातें भी उनमें शामिल रहीं तथा सीधे राहुल का हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर था। अडाणी से पीएम के व्यक्तिगत संबंधों की बात कही गई।
इसके जवाब में भाजपा के बड़े नेताओं की कतार ही खड़ी हो गई है। रविशंकर प्रसाद के अलावा मीनाक्षी लेखी वगैरह ने भी कांग्रेस को आड़े हाथ ले लिया और टूजी, थ्रीजी. जीजाजी तक की बात सामने आ गई। अब बोफोर्स और हेलिकॉप्टर कांड तक की बात संसद में सुनी जा रही है।
यह कालिख से कालिख धोने सरीखा ही लगता है। कांग्रेस के शासनकाल में कई मामले होते रहे हैं। यह सही है कि सबसे ज्यादा घोटालों का इतिहास कांग्रेस या उसके समर्थन से बनी सरकारों के कार्यकाल में ही हुआ था। लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार के बचाव में खड़े हुए नेताओं को इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि आखिर देश की जनता ने कांग्रेस के बदले एनडीए की सरकार को जनादेश क्यों दिया।
जाहिर है कि कांग्रेस के उन तथाकथित घोटालों से उकता चुकी जनता ने एक नया विकल्प खोजा और एनडीए की सरकार को अपना मत दिया। ऐसे में कथित घोटालेबाजों से जब एनडीए के लोग अपनी तुलना करने लगते हैं या कांग्रेस के जमाने के घोटालों का दुहाई देकर खुद को पाक-साफ बताने की दलील रखते हैं तो अफसोस होता है।
अफसोस की वजह यह है कि किसी एक भ्रष्ट शासक को हटाकर ही लोगों ने नयी सरकार को लाया। अब नयी सरकार भी पुराने लोगों की तुलना में ही अपनी पीठ थपथपाए और सच बताने से कतराए तो आखिर जनता क्या सोचेगी। आखिर क्यों यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस के शासन में टाटा-बिरला जैसे समूहों की वाणिज्यिक तरक्की हुई।
जाहिर है कि जनता यही सवाल करेगी कि तो क्या आप भी वही कर रहे हो जो कभी कांग्रेस ने किया। और अगर आप वही कर रहे हैं तो फिर जनता द्वारा चुने गए विकल्प का क्या मतलब रह जाता है।
इस हालत में अडाणी प्रकरण पर मचे बवेले के बीच यही कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार किसी दूसरे की करतूत से अपनी तुलना करने के बजाए सच से देश को वाकिफ कराए ताकि लोग अपने चयन से संतुष्ट हो सकें। कालिख से कालिख धोने की कला सही नहीं है।