मेडिकल कॉलेजों में आपातकालीन यूनिट खोलेगी राज्य सरकार

इस बार राज्य स्वास्थ्य विभाग पश्चिम बंगाल के सभी मेडिकल कॉलेजों में यह यूनिट बनाने जा रहा है

43

कोलकाता, सूत्रकार : दिल के दौरे, सांस लेने में गंभीर समस्या, स्ट्रोक या अन्य जटिल समस्याओं वाले मरीजों को अक्सर अस्पताल के आपातकालीन विभाग में ले जाया जाता है। वहां जांच के बाद डॉक्टर मरीज को संबंधित विभाग में भेजते हैं, तब जाकर मरीज का इलाज शुरू होता है। लेकिन, इस प्रक्रिया में कुछ समय लगने के कारण मरीज की जान पर खतरा मंडराने लगता है। हालांकि, यदि आपातकालीन विभाग में एक सामान्य चिकित्सा अधिकारी के साथ-साथ आपातकालीन चिकित्सा में विशेषज्ञता वाला डॉक्टर भी है, तो रोगी को प्राथमिक उपचार प्रदान करना संभव है। इसे ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने पहले राज्य के 11 मेडिकल कॉलेजों में आपातकालीन चिकित्सा इकाइयां शुरू करने की घोषणा की है। और इस बार राज्य स्वास्थ्य विभाग पश्चिम बंगाल के सभी मेडिकल कॉलेजों में यह यूनिट बनाने जा रहा है।

क्या सेरेब्रल अटैक या हार्ट अटैक के मरीज को स्थिर करने के लिए सही समय पर सही दवा दी जा रही है? नेशनल मेडिकल कमीशन ने इस पर सवाल उठाए थे। साथ ही, उन्होंने 31 दिसंबर 2024 तक राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों में यह मेडिसिन यूनिट शुरू करने का निर्देश दिया। उस निर्देश के मुताबिक, स्वास्थ्य विभाग सभी मेडिकल कॉलेजों में यह यूनिट शुरू करने जा रहा है। गौरतलब है कि राज्य में फिलहाल 28 मेडिकल कॉलेज हैं। इन सभी में यह मेडिसिन यूनिट शुरू की जाएगी। संयोग से, आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं विदेशों में भी उपलब्ध हैं।

इसके अलावा, चिकित्सा आयोग ने पिछले साल कहा था कि सभी स्नातकोत्तर मेडिकल कॉलेजों में आपातकालीन चिकित्सा पढ़ाई जानी चाहिए। लेकिन, राज्यों का कहना था कि इसके लिए विशेषज्ञ प्रोफेसर या असिस्टेंट प्रोफेसर मिलना मुश्किल है। हालांकि, राज्य एक दवा इकाई शुरू करने पर सहमत हुआ। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के अनुसार राज्य में केवल एसएसकेएम अस्पताल में ही आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं चल रही हैं।

ऐसे में पहले चरण में कोलकाता के बाकी मेडिकल कॉलेजों में मेडिसिन यूनिट बनाई जाएंगी। इसके बाद, चरणबद्ध तरीके से जिलों के मेडिकल कॉलेजों में आपातकालीन चिकित्सा इकाइयां बनाई जाएंगी। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर आपातकालीन विभाग में अच्छे से इलाज किया जाए तो संबंधित मरीज को बचाना संभव है। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, इससे मरीज की मौत का खतरा कम हो जाएगा।