मां सरस्वती की प्रतिमा का अंतिम रूप देते मूर्तिकार

बंगाल के लोग सरस्वती पूजा से पहले बेर खाने से क्यों करते हैं परहेज?

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कोलकाता, सूत्रकार : मां सरस्वती की प्रतिमा का अंतिम रूप देने में मूर्तिकार जुट गए हैं। 14 फरवरी को सरस्वती पूजा है, जिसकी तैयारी लगभग पूरी हो गयी है। विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजन की तैयारी तेज हो गई है।

बसंत पंचमी को लेकर प्रतिमा बनाने का कार्य भी तेज हो गया है। अब कुंभकार सरस्वती प्रतिमा को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। जिलों भर में एक सौ से अधिक जगहों पर मूर्तिकार सपरिवार प्रतिमा बनाने में जुटे हुए हैं। कोई मिट्टी ला रहा है तो कोई उसे गीला कर प्रतिमा को आकार दे रहा है।

पश्चिम बंगाल के मूर्तिकार प्रकाश सूत्रधर ने बताया कि 800 रुपया से लेकर 20 हजार तक की मूर्ति बनाई जा रही है। सबसे बड़ा आठ फीट की मूर्ति बनाई गई

है। मूर्तियों का ऑर्डर भी आने शुरू हो गए हैं। कुल 130 मूर्ति बनाए गए हैं। आज मूतियों का फाइनल टच दे दिया जायेगा। इस वर्ष मूर्तियों का अच्छा ऑर्डर है। उधर, अन्य मूर्तिकार भी अपनी अपनी मूर्तियों का अंतिम रूप देने में दिन रात जुटे हुए हैं।

साल का वह समय लगभग आ गया है जब कड़कड़ाती ठंड का मौसम धीरे-धीरे सुंदर और भरपूर बसंत ऋतु में बदल रहा है। खिलते फूल, पके फल और हरे-भरे खेत, यही वजह है कि बसंत को सभी ऋतुओं का राजा कहा जाता है। भारत में बसंत ऋतु कृषि और फसल कटाई में एक बड़ी भूमिका निभाती है। बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। पूरे देश में इस त्योहार को बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

बंगाली लोग सरस्वती पूजा से पहले बेर खाने से क्यों बचते हैं?

बेर का उल्लेख ब्राह्मण, संहिता और प्रसिद्ध रामायण जैसे कई पुराने ग्रंथों में मिलता है। रामायण की कहानी में शबरी, जो भगवान राम की अत्यधिक प्रशंसा करती थी, ने उन्हें जंगली बेर का फल दिया था। इसके अलावा, भगवान विष्णु, जो बेर के पेड़ से जुड़े हैं, को अक्सर संस्कृत में ‘बद्री’ या ‘बदरा’ कहा जाता है।

सांस्कृतिक महत्व होने के बावजूद भी बंगाल में सरस्वती पूजा से पहले बेर खाना सही नहीं माना जाता है। इसे सबसे पहले देवी सरस्वती को अर्पित करने की परंपरा है। बंगाल के ज्यादातर लोग इसे बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के बाद ही खाते हैं। बाद प्रसाद के रूप में बेर खाए जाते हैं।

बसंत ऋतु का फल होने के कारण, बेर बसंत पंचमी के आसपास ही बाजारों में आने लगते हैं। बंगाली में बेर को मां सरस्वती का पसंदीदा फल माना जाता है। ऐसे में बंगाल के लोगों का मान्यता है कि देवी का पसंदीदा फल उनको खिलाए या अर्पित किए बगैर नहीं खा सकते हैं। यही कारण है कि बंगाल में बसंत पंचमी पर देवी सरस्वती को अर्पित करने से पहले बेर खाने से परहेज किया जाता है।

इस शुभ दिन से पहले बेर खाना देवी सरस्वती का अपमान करना माना जाता है। यही कारण है कि बंगाल में बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती को बेर चढ़ाया जाता है। देवी को भोग में अर्पित करने के बाद ही इसे प्रसाद के रूप में बांटा किया जाता है।

बंगाल के कुछ घरों में सरस्वती पूजा पूरी होने के बाद शाम को पारंपरिक बेर का अचार जिसे कूल अचार भी कहते हैं, तैयार किया जाता है।

 

बंगाल में सरस्वती पूजा का महत्व

सरस्वती पूजा बंगाल के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसकी तैयारी कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती है। इस दिन वीणा धारण करने वाली देवी की मिट्टी की मूर्तिया घरों और मंदिरों में स्थापित की जाती हैं। सरस्वती की मूर्तियों को सुंदर कपड़ों और सामानों से सजाया गया है और आंगन में चावल के आटे से रंगोली बनाई जाती हैं। इसके बाद दोपहर में देवी की पूजा कर ढेर सारा प्रसाद चढ़ाया जाता है। ताजे पीले और सफेद फूल और बेर आदि प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। इस शुभ दिन पर छात्र देवी सरस्वती का आशीर्वाद पाने के लिए अपनी किताबें उनकी मूर्ति के चरणों में रखते हैं। हिंदू मान्यता में मां सरस्वती को ज्ञान, बुद्धि, कला और संस्कृति की देवी माना जाता है। सरस्वती पूजा का अवसर बच्चों की पढ़ाई और आध्यात्मिक कार्यों के लिए बेहद शुभ माना जाता है।