विद्यार्थियों ने की अपील-शिक्षांगन बचा लो दीदी

कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक साथ दर्जनों कुलपतियों की नियुक्ति को गैरकानूनी करार दिया है

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निशा मिश्रा

कोलकाता। राजनीति और शिक्षा दो अलग क्षेत्र जरूर हैं, मगर एक के बिना दूसरा अधूरा है। फिर भी शिक्षा पर अगर राजनीति पूरी तरह हावी हो गई, तो पूरा समाज डूबने लगता है।

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पश्चिम बंगाल की शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक इतिहास में खास दर्जा हासिल रहा है जिसकी बुनियाद में पं. ईश्वर चंद्र विद्यासागर, राममोहन राय व गुरुदेव रवीन्द्रनाथ जैसे लोगों का अवदान रहा है।

लेकिन शायद यह पहली बार हुआ है कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक साथ दर्जनों कुलपतियों की नियुक्ति को गैरकानूनी करार दिया है। सूत्रों का मानना है कि इससे पूरे देश में राज्य की शिक्षा व्यवस्था की किरकिरी हुई है। जिन्हें अवैध घोषित किया गया, ये ऐरे-गैरे लोग नहीं, बल्कि उच्च शिक्षा के सर्वोच्च आसन पर बैठने वाले लोग थे। आरोप लगाने वालों का यही कहना है कि राज्य के शासक दल ने इनका पदस्थापन राजनीतिक रंग के तहत किया था। लेकिन शिक्षा जगत से जुड़े लोगों की दलील है कि कुलपतियों का रंग नहीं हुआ करता। ये देश की भावी पीढ़ी गढ़ने का काम करते हैं।

कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक छात्र मनीष ने कहा कि यह सोच कर ही शर्म से सिर झुक जाता है कि जिस कुलपति के अधीन हमारा दीक्षांत होता है, उसे अवैध करार दे दिया जाए। ऐसे कुलपतियों के हस्ताक्षर वाले सर्टिफिकेट भी पेश करने में हम छात्रों को शर्मिंदगी का एहसास होगा। ज्यादातर छात्र-छात्राओं का मानना है कि सत्ता चाहे जिसकी हो, कम से कम शिक्षा के शीर्ष पर बैठे लोगों को राजनीति से दूर ही रखा जाना चाहिए।

बर्दवान विश्वविद्यालय के रफीक अहमद ने कहा है कि अदालत का फरमान हम विद्यार्थियों के लिए सबक है। विश्वविद्यालयों को राजनीति से मुक्त रखने की जरूरत है लेकिन जिस राज्य का पूर्व शिक्षामंत्री ही शिक्षकों की खऱीद-बिक्री में जेल के अंदर है, उसके बारे में अब और क्या कहा जाए।

उत्तर बंग विश्वविद्यालय के कुलदीप, नेहा और समीर ने कहा है कि हम राज्य की सीएम ममता बनर्जी से अपील करते हैं कि शिक्षांगन की पवित्रता बरकरार रखी जाए। यह वही बंगाल है जिसकी मिसाल कभी पूरा देश दिया करता था। इतिहास के उन सुनहरे दिनों को वापस लाने में मुख्यमंत्री सक्रिय हों-यही है हमारी अपील।