गई भैंस पानी में

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किसी काम को पूरा करने की कोशिश की जाए और सारा प्रयास करने के बावजूद किसी अनहोनी के कारण या खुद की असावधानी से ही जब लक्ष्य तक नहीं पहुंचा जा सके तो आम तौर पर बोलचाल की भाषा में लोग कहते हैं- लो, गई भैंस पानी में। बिहार की सियासत या फिर बिहार के प्रशासन के बारे में भी शायद अब यही कहना पड़ेगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सोशल इंजीनियर कहा जाता है। माना जाता है कि वे लोगों की नब्ज टटोलने में माहिर हैं तथा समय देखकर काम करते हैं। लेकिन लगता है कि राजनीतिक और प्रशासनिक मोर्चे पर आजकल नीतीश जी कहीं न कहीं पिछली कतार में खिसकने लगे हैं। राजनीतिक तौर पर उन्हें लोकसभा चुनाव से पूर्व विरोधी खेमे को एक करने की सूझी। इस सूझबूझ के कारण अपने सेकेंड इन कमांड तेजस्वी यादव को साथ लिए और चल दिए देश भ्रमण पर। मुद्दा था भाजपा के खिलाफ मोर्चाबंदी का। कांग्रेस समेत तमाम दलों की ओर से भी कथित तौर पर नीतीश को समर्थन मिलने लगा था। सबको उम्मीद जगी थी कि  मोदी के खिलाफ एक सशक्त मोर्चा बनने जा रहा है तथा हो सकता है कि लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार को बड़ी भूमिका अदा करने का मौका मिले। ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल से मुलाकात के बाद नीतीश की बॉडी लैंग्वेज से भी यही लग रहा था। लेकिन कांग्रेस ने 12 जून की बैठक को स्थगित करके नीतीश को राजनीतिक तौर पर चुप करा दिया है। जाहिर है कि नीतीश कुमार को एक सियासी झटका लगा है। मतलब गई सियासी भैंस पानी में।

अब आती है प्रशासनिक विफलता। शराबबंदी का क्या हाल है इस बारे में कुछ कहने की जरूरत अब शायद नहीं है। सरकार ने शराब क्या बंद किया पूरे बिहार में चल पड़ा कालाबाजारी का युग और नकली शराब से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। नीतीश जी जो जहरीली शराब पीने वालों के लिए कुछ भी बोलने से हिचकते थे, अब उनकी सरकार ने जहरीली शराब से मरने वालों के लिए मुआवजे की रकम भी तय करनी शुरू की है। इसके अलावा भागलपुर का बन रहा पुल जिस तरह भरभराकर गिर पड़ा है, उसने बिहार सरकार की कार्यशैली और नीतीश कुमार की प्रशासनिक क्षमता पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। हो सकता है कि आनन-फानन में नीतीश जी कुछ अधिकारिय़ों के खिलाफ कार्रवाई की बात करें या जांच के नाम पर लीपापोती की जाए, मगर यह हकीकत है कि राज्य सरकार के अधिकारियों की गफलत के कारण ही 17000 करोड़ रुपये गंगा में बह गए। मतलब यह कि नीतीश जी घूम-घूम कर जहां सियासी बिसात बिछाने में लगे हैं, वहीं उनके अधीन काम कर रहे अधिकारी और नौकरशाह उनकी सरकार को बदनाम करने की होड़ में शामिल हो गए हैं। यहां भी वही कहावत चरितार्थ होती  है कि तमाम कोशिशें होती रहीं लेकिन चली गई भैंस पानी में। नीतीश कुमार जिस कद के नेता रहे हैं तथा उनकी जो छवि आम लोगों में रही है-उसे नए सिरे से काबिज करने की जरूरत आन पड़ी है। बेहतर है कि पहले नीतीश कुमार खुद को दुबारा सुशासन बाबू बनाने की कोशिश करें। अगर सियासी दाँव-पेंच से अलग नीतीश कुमार ने अपनी चाल से चलना शुरू कर दिया तो उनके जैसे व्यक्तित्व वाले नेता के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। जरूरत है नीतीश कुमार को संभलने की। अगर समय रहते नहीं संभले तो फिर भैंस पानी में ही जाएगी।