बाबा की सरकार के सपनों को पलीता लगा रहे जिला अस्पताल के डॉक्टर

जिला अस्पताल में उपलब्ध नहीं दवाएं और बेड 

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सुलतानपुरः सूबे की योगी सरकार पार्ट-2 गरीबों के हक और हकूक के लिए चाहें जितने लाख दावे कर लें लेकिन सुलतानपुर जिला अस्पताल के डॉक्टर सरकार के सपनों को पलीता लगाते नजर आ रहे है।

बताते चले कि योगी सरकार पार्ट-2 के गठन के बाद स्वास्थ्य विभाग की कमान सम्भालने वाले मंत्री और सूबे के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने स्वास्थ्य महकमे की दयनीय स्थिति देखते हुए सरकार के मुलाजिमों के खिलाफ मोर्चा सम्भाल लिया और शासन को बैकफुट पर भी आना पड़ा लेकिन यहां तो सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं पा रहे गरीब तबके के लोग।

सरकार ने भले ही डेंगू से निपटने के लिए स्वास्थ्य महकमे को जरूरी दिशा-निदेर्श दिए हो लेकिन सरकारी दिशा-निदेर्शो पर सुलतानपुर का स्वास्थ्य महकमा ठेंगा दिखाते नजर आ रहा है।

न तो जिला अस्पातल में दवाओं का मिलने और न ही मरीजों को बेड नसीब हो रहा है। बल्कि यूं कहें तो अब आम शहरियों की जिंदगी अब बस राम भरोसे ही नजर आ रही है।

सुलतानपुर जिले के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) ने सरकार की मंशा पर ही पानी नहीं फेरा बल्कि मीडिया को भी गुमराह करने के लिए ऑन कैमरा कहा कि डेंगू के चलते अभी किसी तरह की कैजुअल्टी नहीं हुई है, बल्कि डेंगू के प्रकोप ने लगभग दजर्नों जिंदगियों की लीला समाप्त कर दी है।

ताजा मामला सुलतानपुर जनपद के जिला अस्पताल का है। जहां सरकार ने तमाम योजना जिला अस्पताल में लागू की  लेकिन जिला अस्पताल के डॉक्टरों का क्या कहना। कमीशन खोरी की तो हद हो गई है। जहां गरीब तबके के लोगों को सरकारी डॉक्टर बाहर से दवा लिख देते हैं।

बड़ी बात तो यह है कि डेंगू प्रभावित मरीजों के लिए अभी तक महकमा गंभीर नहीं है। मरीजों को डेंगू की जांच के लिए प्राइवेट पैथोलॉजी का सहारा लेना पड़ रहा है। लापरवाही का आलम यह है कि डेंगू मरीजों को देखने के लिए डाक्टर भी समय समय पर चेकअप करना जरूरी नहीं समझते।

जबकि जिला अस्पताल में लापरवाही के चलते डेंगू मरीजों ने इलाज के अभाव में प्राइवेट अस्पताल में इलाज करना उचित समझा है। आपदा वार्ड में अभी भी लगभग दजर्न भर डेंगू मरीज भर्ती हैं। जिला अस्पताल मे इधर बीच डेंगू मरीजों की आमद बेदस्तूर बढ़ती जा रही है। अस्पताल में अव्यवस्थाओं के आलम के चलते इलाज ढंग से नहीं हो पा रहा है।

इसकी मुख्य वजह दवाओं के बाहर से लिखने की कमीशनखोरी से जुड़ी है। मरीजों को देखने के लिए न तो समय से डाक्टर आते हैं और न ही ठीक से इलाज हो रहा है। देखरेख में जहां लापरवाही बरती जा रही है, तो वहीं मरीजों के तीमारदारों से बाहर की महंगी दवाएं भी मंगवाई जा रही हैं।

लापरवाही से दिन प्रतिदिन मरीजों की हालत में सुधार होने की बजाय स्थिति और खराब हो रही है। जिससे तीमारदार भी परेशान है। मरीजों को अपनी जांच रिपोर्ट के लिए भी प्राइवेट पैथोलॉजी का सहारा लेना पड रहा है। इलाज के लिए जेब ढीली करनी पड़ रही है।

दूसरी ओर, जिला अस्पताल में गंदगी का अम्बार लगा हुआ है। वहीं डेंगू मरीजों का इलाज भी चल रहा है। सवाल यह है, ऐसे गैरजिम्मेदार सीएमएस पर कब होगी कायर्वाही ? आखिरकार स्वास्थ्य महकमे की बदतर स्थिति का कौन बनेगा खेवनहार ?

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