रांची : मौसम विज्ञान केंद्र रांची द्वारा जारी पूर्वानुमान की बात करें तो राजधानी रांची में 22 जुलाई तक आसमान में काले बादल छाए रहेंगे और हल्की वर्षा होने की संभावना है। वहीं 17, 18 और 19 जुलाई को राज्य में कहीं-कहीं हल्की व मध्यम दर्जे की वर्षा होने की संभावना है। पिछले 24 घंटे के मौसम की बात करें तो राज्य के सभी स्थानों पर हल्की व मध्यम दर्जे की वर्षा हुई। राज्य में मानसून की गतिविधि कमजोर देखी गई। सबसे अधिक वर्षा 37.2 मिमी वर्षा गोड्डा में रिकॉर्ड की गई। सबसे अधिक अधिकतम तापमान 36.3 डिग्री गोड्डा का जबकि सबसे कम न्यूनतम तापमान 23.5 डिग्री सेल्सियस रांची का रिकॉर्ड किया गया। राजधानी रांची का अधिकतम तापमान 28.4 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। राजधानी समेत पूरे राज्य के मौसम में बदलाव हो रहा है। मौसम विज्ञानी अभिषेक आनंद बताते हैं कि यह बदलाव वैश्विक और स्थानीय कारणों से हो रहा है। स्थानीय तौर पर लगातार पौधों की कटाई और इसके सापेक्ष में कम पौधारोपण ने परेशानी बढ़ाई है। यही नहीं प्राकृतिक संसाधनों के दोहन ने भी कम वर्षापात और तापमान को बढ़ावा दिया है। जलवायु परिवर्तन के कारण राजधानी में वर्षा की समय सीमा जून और जुलाई से अगस्त और सितंबर के वर्षापात पर आ टिकी है। एक जून से 16 जुलाई तक हुए वर्षापात की बात करें तो पूरे राज्य में अब तक 348.9 मिमी वर्षापात होना था जो कि सामान्य से काफी कम 186.1 मिमी वर्षा हुई है। वहीं, राजधानी रांची में 361.3 मिमी वर्षापात के सापेक्ष में महज 184.7 मिमी वर्षा हुई है। जो कि सामान्य से काफी कम है।
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मौसम विज्ञानी ने बताया कि पिछले वर्ष भी कुछ ऐसा ही मौसम का मिजाज देखने को मिला था। इसमें पिछले 10 पर्षों से धीरे धीरे परिवर्तन हो रहा है। गत दिनों पर्यावरण दिवस पर इस पर विशेषज्ञों ने चर्चा भी की थी। बताया कि झारखंड, बिहार, ओडिशा वा आसपास के राज्यों का मौसम बंगाल की खाड़ी की गतिविधियों पर टिका है। वहां क्लाउड सर्कुलेशन जैसा होता है उसी अनुपात में इन राज्यों में वर्षा होती है। उन्होंने कहा कि जून और जुलाई माह में क्लाउड सर्कुलेशन का असर लगातार कम होता जा रहा है। जिस कारण इसकी दिशा मुड़कर उत्तर पूर्वी राज्यों की ओर हो रही है और झारखंड व आसपास के राज्यों में कम वर्षापात हो रहा है। अभिषेक आनंद कहते हैं कि स्थानीय कारणों की बात करें तो लगातार कम होती हरियाली अहम रोल निभा रही है। जिन क्षेत्रों में हरियाली कम है वहां क्लाउड बैंड का बनना कम हो जाता है और मानव जनित ताप अधिक होने के कारण क्लाउड शिफ्टिंग होकर हरियाली वाले क्षेत्रों में वर्षा हो रही है।