नई दिल्ली : रामसेतु भारत में हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। साल 2007 में उस वक्त की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बयान देते हुए कहा था कि जमकर ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि रामसेतु को इंसानों ने बनाया था। बस क्या था, इसी को लेकर बीजेपी ने उस वक्त यूपीए-1 की सरकार का जमकर विरोध किया था। बीजेपी ने अभी तक चुनावों में इसको लेकर प्रचार करती रही है। लेकिन गुरूवार को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में पृथ्वी विज्ञान मामलों के मंत्री जितेंद्र सिंह ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा है कि भारतीय सैटलाइटों को राम सेतु की उत्पत्ति से संबंधित कोई सबूत नहीं मिले हैं।
क्या है मामला…
दरअसल, गुरूवार को हरियाणा से निर्दलीय सांसद कार्तिकेय शर्मा ने राज्यसभा में सरकार से पूछा कि ‘क्या सरकार हमारे गौरवशाली इतिहास को लेकर कोई साइंटिफिक रिसर्च कर रही है? क्योंकि पिछली सरकारों ने लगातार इस मुद्दे को तवज्जो नहीं दी। उनके इस सवाल पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने जवाब दिया कि मुझे खुशी हो रही है कि हमारे सांसद ने रामसेतु को लेकर सवाल किया। इसे लेकर हमारी कुछ सीमाएं हैं। क्योंकि ये करीब 18 हजार साल पहले का इतिहास है। जिस ब्रिज की बात हो रही है वो करीब 56 किमी लंबा था। स्पेस टेक्नोलॉजी के जरिए हमने पता लगाया कि समुद्र में पत्थरों के कुछ टुकड़े पाए गए हैं, इनमें कुछ ऐसी आकृति है जो निरंतरता को दिखाती हैं। अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो ये कहना मुश्किल है कि रामसेतु का वास्तविक स्वरूप वहां मौजूद है। हालांकि कुछ संकेत ऐसे भी हैं जिनसे ये पता चलता है कि स्ट्रक्चर वहां मौजूद हो सकता है।
सरकार की तरफ से आए जवाब के बाद विपक्ष पूरी तरह से केंद्र सरकार पर हमलावर हो गया है। कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने ट्वीट कर कहा है कि सभी भक्त जन ‘सभी भक्त जन कान खोल कर सुन लो और आँखें खोल कर देख लो। मोदी सरकार संसद में कह रही है कि राम सेतु होने का कोई प्रमाण नहीं है।”
इसके अलावा पूर्व सांसद पप्पू यादव ने भी ट्वीट कर केंद्र सरकार पर हमला करते हुए कहा कि ‘जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू यादव ने भी इसे लेकर ट्वीट किया है ‘यही बात मनमोहन सिंह सरकार ने कहा था तो बीजेपी ने कांग्रेस को हिंदू विरोधी बताया था’।
आपको बताते चलें कि 2007 में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने राम सेतु मामले को मद्रास हाईकोर्ट में उठाया था। उन्होंने राम सेतु को धरोहर घोषित करने की मांग की थी। जिसके बाद पूरा विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने इस मामले पर दखल कर 2008 में आर के पचौरी कमेटी गठित की गई । पचौरी कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट को जो रिपोर्ट सौंपी उसमें कहा गया कि ये प्रोजेक्ट कहीं से भी फायदेमंद नहीं होगा। इसके अलावा उस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि चाहे वो आर्थिक दृष्टिकोण हो या फिर पर्यावरण का मसला किसी भी रूप में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसके बाद खूब हो हल्ला मचा था।