आम धारणा यह है कि शिक्षा आदमी को इंसान बनाती है। अपने पुरखे कहा करते थे कि विद्या ददाति विनयम अर्थात विद्या हासिल करने वाले लोग विनयी हो जाते हैं। उनकी समझ औसत लोगों से बेहतर मानी जाती है। लेकिन बंगाल की आबोहवा में कुछ ऐसा जहर फैल रहा है जिसमें यह नहीं लगता कि शिक्षित लोगों में विनम्रता भी होती होगी। इसकी मिसाल के तौर पर पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले को लिया जा सकता है जिसमें रोजाना नए-नए अध्याय जुड़ रहे हैं।
राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी जेल में बंद पड़े हैं और विद्यालय सेवा आयोग या एसएससी के अधिकारियों की सांसें अटकी हुई है। सचमुच यह हैरत की बात है। जिस राज्य का शिक्षा मंत्री ही कथित तौर पर रुपये लेकर नौकरियों की बंदरबाँट करता रहा हो, वहां घूस देकर नौकरी पानेवाले की योग्यता का भला हिसाब कौन रखेगा।
यह तो गनीमत है कि जिन परीक्षार्थियों ने नौकरी के लिए परीक्षा दी थी, उन्हें अपनी योग्यता का भरोसा था और अपने से कम योग्य लोगों के चयन पर उन्हें संदेह हुआ जिससे मामला अदालत में चला गया। आज यह मुद्दा अदालत के विचाराधीन है। कौन-कितना दोषी है या किसे कितने रुपये दिए गए-यह मुद्दा नहीं है।
चिंता का विषय यह है कि जिन शिक्षकों ने कथित तौर पर रिश्वत देकर नौकरी खरीदी थी, उनसे बंगाल के स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को क्या सीख मिलेगी। अपने समाज में आज भी शिक्षक को गुरु का दर्जा हासिल है और आम तौर पर बच्चे अपने शिक्षकों से ही बहुत कुछ सीखते हैं। पूछा जा सकता है कि नौकरी खरीद कर शिक्षक बनने वाले लोग क्या राज्य की भावी पीढ़ी को भी अपने ही तरह से शॉर्टकट में जीने की सीख नहीं देंगे।
राज्य सरकार को बार-बार इस मसले पर अदालत की हिकारत झेलनी पड़ रही है। पूरा विपक्ष शिक्षक भर्ती घोटाले में मुख्यमंत्री को घेरने में लगा है। लेकिन किसी को भी यह नहीं सूझ रहा कि आखिर प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चो को जब उनके गुरुओं की करतूत का पता चलेगा तो उनके कोमल मन पर क्या असर होगा। इस मसले पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि यह बंगाल की भावी पीढ़ी को गढ़ने के मामले से जुड़ा है।
काबिलेगौर है कि वामपंथी सरकार ने भी कभी प्राइमरी शिक्षा से अंग्रेजी को हटाकर पूरी एक पीढ़ी को ही भाषाई तौर पर पंगु बनाने का काम किया था। वह पीढ़ी आज भी वामपंथी सरकार की उस नीति की मार झेल रही है। ऐसे में शिक्षकों की भर्ती में किया गया घोटाला किस हद तक राज्य में शिक्षा की नींव को खोखला करेगा तथा इसका अंजाम कितना घातक होगा- इसकी कल्पना से ही सिहरन हो सकती है।
पूरे सिस्टम में शामिल लोग तथा स्कूल सर्विस कमीशन के अधिकारियों की कथित अवैध कमाई का खामियाजा आज मुख्यमंत्री को अदा करना पड़ रहा है। समय की मांग यही है कि इस मुद्दे पर सियासत छोड़कर राज्य की भावी पीढ़ी के भविष्य को मजबूत करने का काम किया जाए और दोषी लोगों को कानून के कटघरे तक ले जाया जाए। ध्यान रहे कि जिन लोगों की मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया है वे केवल भावी पीढ़ी के दुश्मन नहीं, वरन खुद ममता बनर्जी के भी दुश्मन हैं- जिनकी करतूत से सीएम को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है।