देश की आजादी के बाद से ही लोकतंत्र को नए-नए सांचे में ढालने की कोशिश होती रही है। जितनी भी सरकारें अबतक केंद्र में बनीं, सबने अपने-अपने तरीके से देशसेवा करने की ठानी। लेकिन इतने सालों में एक बात सभी सरकारों के दौर में कायम रही। वह है सरकारों की सत्ता की लाठी के दम पर सबको हाँकने की कोशिश तथा विपक्ष द्वारा सरकार के हर कदम का विरोध। अपने लोकतंत्र से कम से कम आम भारतीयों को इतना तो जरूर पता चल गया है कि सरकार जो भी करेगी, विपक्ष बगैर सोचे-समझे उसका विरोध करेगा और विपक्ष के तमाम हंगामे के बावजूद सरकार वही करेगी जो उसने करने को ठान लिया है। यही वजह है कि आम तौर पर संसद में हो रही बहस भी अब देश की आबादी के बड़े हिस्से को आकर्षित नहीं कर पाती। मगर ऐसा होना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। देश तथा आम मतदाता को जानने का हक है कि उसके बारे में उसके द्वारा चुन कर भेजे गए लोगों की क्या धारणा है तथा जनहित के किन मुद्दों पर सरकार का ध्यान अधिक है।
लेकिन सरकार ही जब जिद्दी हो जाए या विपक्ष को लोकतंत्र का हिस्सा नहीं माने तो फिर सदन की गरिमा घटने लगती है। फिलहाल भारत में यही देखा जा रहा है। भारत सरकार ने दिल्ली में नए संसद भवन की जरूरत महसूस की और जनता के पैसों से एक सुंदर इमारत का निर्माण कर दिया गया है। महज तीन सालों में बनी यह देश की नई संसद होगी जिसका उद्घाटन 28 मई को होने जा रहा है। इस संसद के उद्घाटन समारोह में सभी सियासी दलों के निर्वाचित प्रतिनिधियों को शामिल रहने का आमंत्रण पत्र भी भेज दिया गया है लेकिन सदन में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत 19 दलों ने इस उद्घाटन समारोह के बहिष्कार का फैसला लिया है।
बहिष्कार करने का फैसला लेने वाले दलों की दलील है कि सरकार अपनी मर्जी से काम करती है तथा विपक्षी दल के सदस्यों को परेशान करने के लिए सारे लोकतांत्रिक सिद्धांतों को ताक पर रखकर सीबीआई या ईडी के जरिए विपक्षियों को फंसा रही है। कथित तौर पर सरकार की इसी सोच के विरुद्ध विपक्ष ने इस भवन के उद्घाटन से खुद को दूर रखने का फैसला लिया है। विपक्षियों का आरोप है कि पीएम मोदी ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के बदले खुद ही इस इमारत के उद्घाटन की घोषणा करके लोकतंत्र को अपमानित किया है। विपक्ष के तर्क में दम है। ऐसे मामलों में सरकार पक्ष की ओर से संसदीय कार्यमंत्री के साथ ही स्पीकर की भूमिका भी होती है क्योंकि ये सरकार के ऐसे लोग होते हैं जिन्हें किसी भी तरह के गतिरोध का समाधान निकालने में महारत हासिल होती है। नई संसद का प्रारूप देश के सामने आ चुका है जिसमें लोकसभा के 543 के बदले 888 तथा राज्यसभा के 250 के बदले 384 सदस्यों के बैठने की जगह होगी। विपक्ष को भी यह समझना चाहिए कि केवल विरोध के लिए विरोध नहीं किया जाना चाहिए। नई इमारत किसी नेता या कारोबारी के पैसे से नहीं, बल्कि देश की जनता की गाढ़ी कमाई से बनी है। यह लोकतंत्र की इमारत है। इसका अपमान नहीं किया जाना चाहिए। और विपक्ष हो या सत्ता पक्ष दोनों को ही इस बात का ध्यान रखना होगा कि लोकतंत्र में कोई भी स्थाई नहीं है। याद रहे—
ये शान-ओ-शौकतें सदा किसी की नहीं
चिराग सबके बुझेंगे, हवा किसी की नहीं।