भारत सरकार की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के बहादुर जवानों को अमरत्व देने के लिए एक नायाब तरीका अपनाया है। इसके तहत अंडमान निकोबार द्वीप समूह के कुल 21 द्वीपों का नामकरण भारत के उन जवानों के नाम पर किया जा रहा है, जिन्होंने देश की माटी के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया।
ऐसे वीरों को ही भारत में सामरिक तौर पर सर्वोच्च सम्मान दिया जाता है जिसे परमवीर चक्र कहा जाता है। देश के इन परमवीरों को हमेशा याद रखने के लिए सरकार की ओर से की जाने वाली पहल का स्वागत किया जाना चाहिए।
वैसे भी पीएम मोदी सेना के जवानों के बीच ही अपना खास समय बिताने के आदी हैं तथा जब कभी मौका मिलता है, वे किसी न किसी मोर्चे पर मौजूद फौजियों के बीच जा पहुंचते हैं।
इसे हो सकता है कि कुछ लोग सियासत का नाम दें लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि सेना के जवानों के लिए पीएम के दिल में खास जगह है।
इसी क्रम में अब देश के परमवीरों को याद रखने की शुरुआत हुई है।
ऐसे में सरकार से कहा जा सकता है कि परमवीरों को याद करना सराहनीय है लेकिन जो सैनिक फिलहाल किसी न किसी जगह तैनात हैं, दुश्मन की गोलियों को सीने पर झेलते हैं तथा देश की रक्षा करते हुए खुद को कुर्बान कर देते हैं-उनके परिवार के लोगों के लिए भी जरूर सोचना चाहिए।
अव्वल तो यह है कि देश के लिए लड़ने वाला जवान अगर अपने माता-पिता या अन्य परिजनों के लिए मकान बनाने की ही सोचता है तो उसे कई जटिल परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता है। उसे सिविलियन सोसाइटी में बराबर का दरजा हासिल नहीं हो पाता तथा समाज में ज्यादातर लोग उससे दूरी बनाते हैं।
समाज की ऐसी सोच के प्रति भी सरकार को सजग होना पड़ेगा। एक फौजी को अपनी सेवा पूरी करने के बाद वह सारे हक मिलने चाहिए जो एक आम शहरी को हासिल हैं।
इसके अलावा भारतीय फौज की ओर से ही सवाल किए जाते रहे हैं कि सीमा पर डटे लोगों को आवश्यक सुविधाएं नहीं दी जातीं। कई बार तो खाने-पीने को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। ऐसे सवालों से आम लोगौं को दो-चार नहीं होना पड़े तथा सारे फौजी बराबर का हक पा सकें, इसका भी प्रबंध करना चाहिए।
परमवीरों को याद करने वाला देश यह भी जानता है कि दुश्मन के जासूस हमारे जवानों को नई कारपोरेट संस्कृति में कैसे अपने बुने जाल में फंसा लेते हैं।
इसके लिए सेना की ओर से जवानों को कई बार अलर्ट भी किया जा चुका है। लेकिन तब भी ऐसी वारदातों पर विराम नहीं लग रहा है।
बेहतर है कि सरकार अपने इंटेलिजेंस नेटवर्क के जरिए ही कोई ऐसा रास्ता निकाले जिससे जवानों को किसी जाल में फंसाने वाले देशद्रोहियों की शिनाख्त हो सके तथा किसी आतंकी संगठन की घुसपैठ को विराम दिया जा सके।
ध्यातव्य है कि भारतीय सेना का लोहा दुनिया के बड़े-बड़े देश भी मानते हैं तथा कई बार हमारे जवानों ने अपनी काबिलियत का सबूत पेश किया है। मगर देश आज ऐसे मुकाम पर खड़ा है जहां तमाम दुश्मन हमारी सेना को ही कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।
सरकार का ध्यान इस ओर जरूर रहना चाहिए ताकि परमवीरों की आत्मा अपनी शहादत पर गर्व महसूस करे।
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