सिमडेगा : मणिपुर में करीब 3 महीने से चल रही हिंसा के तांडव का सच अब सामने आ रहा है. कैसे लोगों की कई दशकों से बनी गृहस्थियां उजड़ रही हैं? किस तरह लोगों को अपनी जान बचाने के लिए सबकुछ छोड़कर दर-दर भटकना पड़ा है? दर्द से भरी ये कहानियां अब सामने आ रही हैं. ऐसी ही एक कहानी सलेस्टीन के परिवार की भी है, जो अपनी कुकी समुदाय की बहू की जान बचाने के लिए रातोंरात मणिपुर से भागे.
यह परिवार करीब 50 साल बाद मणिपुर छोड़कर झारखंड लौटने पर मजबूर हुआ है. मणिपुर में फैली हिंसा के डर से लोगों का पलायन अब भी जारी है. इन लोगों में वे लोग भी शामिल हैं, जो कभी अपना घर छोड़कर काम की तलाश में मणिपुर पहुंचे थे. इन्हीं लोगों में से एक हैं सेलेस्टिन. झारखंड के सिमडेगा के तुमड़ेगी गिरजा टोली के सेलेस्टिन ने 50 साल पहले रोजी रोटी के लिए घर छोड़ते वक्त कभी नहीं सोचा था कि वह सिमडेगा लौटेंगे.
सेलेस्टिन सिमडेगा से काम की तलाश में मणिपुर पहुंचे थे और वहीं इस्लयगंज में बस गए. परिवार में एक कुकी जनजाति की बहू भी आ गई. हाल में वहां चल रहे जातीय हिंसा में उन्हें अपने परिवार खास कर अपनी कुकी बहू की जान का डर सताने लगा. हर दिन बढ़ती हिंसा को देख उन्होंने अपना घर छोड़कर हले राहत शिविर में शरण ली फिर अपने परिचित सेना के जवान की मदद से गुवाहाटी आ गए.
वहां से अपने 19 सदस्यीय परिवार के साथ वह सिमडेगा लौट आए. उन्होंने बताया कि उनके घर छोड़ने के दूसरे दिन ही मैतेई लोगों ने उनका घर जला दिया था. अब लौटने के बाद उनके सामने खाने-पीने की समस्या हो गई है. अभी तक उनके परिवार को प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली है.मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सलेस्टीन और उसके परिवार ने बताया कि हिंसा की शुरुआत में कुकी और मैतेई समुदाय के लोग केवल एक-दूसरे के खून के प्यासे थे. बाकी समुदायों को कुछ नहीं कहा जा रहा था. मैतेई समुदाय के लोगों ने उन्हें कहा कि आप यहां आराम से रहो, आपको कोई खतरा नहीं है.
बाद में कहीं से मैतेई समुदाय को उनकी बहू के कुकी होने की खबर लग गई. इस पर भीड़ ने घर पर हमला कर दिया. डर के मारे सलेस्टीन अपने पूरे परिवार को लेकर जंगलों के रास्ते भाग निकला. कई दिन तक जंगलों में ही भूखे-प्यासे छिपे रहे. सलेस्टीन के मुताबिक, किसी तरह उन्होंने सिमडेगा के ही रहने वाले एक आर्मी जवान से कॉन्टेक्ट किया, जो मणिपुर में ही आर्मी कैंप में था.
उस जवान ने उन्हें सेलम स्थित आर्मी कैंप तक किसी भी तरह पहुंचने के लिए कहा. इस पर सलेस्टीन और उनका परिवार करीब 20 किलोमीटर तक खतरनाक जंगल में पैदल चलकर कैंप तक पहुंचा. वहां से आर्मी जवान ने राशन के एक ट्रक में गुवाहाटी पहुंचने का इंतजाम किया.
बता दे की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सलेस्टीन का कहना है की, कुकी और मैतेई का झगड़ा बहुत ज्यादा बढ़ गया है. दोनों समुदाय एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं. इसके चलते हिंसा बढ़ती ही जा रही है. उन्होंने कहा कि फिलहाल मणिपुर किसी भी तरह से रहने लायक नहीं बचा है. अब झारखंड में ही कोई रोजगार देखेंगे.
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