ब्यूरो रांची : बंगाल के पंचायत चुनाव में 17 की हत्या हुई जो कि लोकतंत्र के लिए काला धब्बा ही कहा जा सकता है। चुनाव आयोग की गरिमा और ताकत बताने वाले टी.एन. शेषन नहीं रहे लेकिन जो कर गए हैं वह आज भी मील का पत्थर साबित हो रहा है चुनाव आयोग की जिम्मेवारी मिलते शेषन ने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को अपना अधिकार क्षेत्र बता दिया था। चुनाव में मतदान के दिन भारी सुरक्षा व्यवस्था बहाल करवा कर लोकतंत्र के पर्व को स्थापित करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी थी। शेषन के जमाने में मतदान और मतगणना दूध की दूध और पानी की पानी के ताह होते रहे।
शेषन के बाद नरसिम्हा राव ने भी अपना डंडा सही चलाया और इतिहास भी रचा। बिहार जैसे राज्य में निष्पक्ष चुनाव करवाना और हज़ारों फ़र्ज़ी नामों को मतदाता सूचि से निकलवाया। बता दे कि 2 अगस्त, 1993 को टीएन शेषन ने एक 17 पेज का आदेश जारी किया जिसमें कहा गया था कि जबतक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई चुनाव नहीं कराया जाएगा।
शेषन ने अपने आदेश में लिखा कि चुनाव आयोग ने तय किया है कि उसके नियंत्रण में होने वाला हर चुनाव जिसमें दो साल पर होने वाले राज्यसभा चुनाव, लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव जिनके कराने की घोषणा की जा चुकी है, अगले आदेश तक स्थगित रहेंगे। शेषन ने पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया जिसकी वजह से केंद्रीय मंत्री प्रणव मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा।
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु इससे इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने शेषन को ‘पागल कुत्ता’ तक कह डाला। वैसे पीठ पीछे उनसे परेशान लोग शेषन को ‘अलसेशियन’ भी कहने लगे थे। वही बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव एक बार गुस्से में कहा था- शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे। लेकिन चुनाव व्यवस्था में जब-जब सुधार की बातें होंगी वो हमेशा याद किए जाएंगे।
वास्तव में वो शेषन ही थे जिन्होंने चुनाव आयोग की तस्वीर बदल दी थी। चुनाव संबंधी नियमों को सख्ती से लागू करवाने के लिए मशहूर शेषन ने अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव किसी को नहीं बख्शा। वो पहले चुनाव आयुक्त थे जिन्होंने बिहार में पहली बार चार चरणों में चुनाव करवाया था। इस दौरान मात्र गड़बड़ी की आशंका में ही चारों बार चुनाव की तारीखें तक बदल दी थी। बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम रहे बिहार में उन्होंने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात किया था।
शेषन के कार्यकाल में ही चुनावों में मतदाता पहचान पत्र का इस्तेमाल शुरू हुआ। शुरू में नेताओं ने इसका विरोध किया था और इसे बहुत खर्चीला बताया था। लेकिन शेषन नेताओं के आगे नहीं झुके और कई राज्यों में तो मतदाता पहचान पत्र तैयार नहीं होने की वजह से उन्होंने चुनाव तक स्थगित करवा दिए थे।