किससे शिकायत, किसकी दुहाई

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फिर हो गया रेल हादसा। यह कोई नई बात नहीं है। भारतीय रेल इस तरह के हादसों के लिए हाल के वर्षों तक कुख्यात रही है। लेकिन कथित तौर पर सरकार ने रेल की सेहत सुधारने की दिशा में काफी काम किया था और दावा यही किया जाता रहा है कि अब कोई हादसा भी होगा तो उतनी जनहानि नहीं होगी जितनी अतीत में होती रही है। लेकिन सारे दावों को कोरोमंडल एक्सप्रेस के पहियों ने झुठला दिया और हंसते-खेलते चेहरों को चिरनिद्रा नसीब हो गई। राहत एवं बचाव का काम जारी है तथा रेल मंत्रालय ने इस दिशा में तेजी से काम किया है। रेलवे नेटवर्क को पूरी तरह काम पर झोंक दिया गया है और घायलों के उपचार की भी समुचित व्यवस्था की गई है। लेकिन इतने बड़े हादसे से केवल भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों की भी चिंता बढ़ गई है। भारत के इस दर्द में दुनिया के कई देश भी सहानुभूति जता रहे हैं। रेल मंत्री ने हादसे की जांच के आदेश भी दे दिए हैं तथा हो सकता है कि जल्दी ही जांच की रिपोर्ट भी आ जाए। लेकिन एक सवाल जरूर खटकता रहेगा। सवाल यह है कि जांच किस नजरिए से होगी। हो सकता है कि मौजूदा सरकार ने नीतियों में बदलाव किया हो लेकिन अतीत के अनुभवों से यही कहा जा सकता है कि किसी भी घटना की जांच रिपोर्ट आते-आते लोग नाउम्मीद हो जाते हैं। दूसरी बात यह है कि रिपोर्ट भी कुछ ऐसी गोल मटोल होती है जिसके बारे में साफ कोई बात खुलकर सामने नहीं आती।

विभागीय जांच में सबसे बड़ी गफलत होती है विभागीय लोगों को बचाने से जुड़ी। इसमें किसी भी एक व्यक्ति या किसी एक विभाग को दोषी नहीं ठहराया जाता। रेलवे में आजतक जितने भी हादसे हुए हैं किसी भी हादसे में कदाचित किसी एक व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सका है। इसका कारण है कि जांच दल के लोगों को विभागीय अधिकारी ही गुमराह करने लगते हैं। कोई एक विभाग किसी घटना का जिम्मा अपने ऊपर लेने से बचता रहता है। इससे लोगों में भी निराशा पैदा होती है। रेलवे को अपनी इस नीति में सुधार करने की जरूरत होगी।
इसके साथ ही एक और सवाल पूछा जा सकता है। जिस पटरी पर कोरोमंडल एक्सप्रेस के साथ यह हादसा हुआ है, उसी तरह की पटरियों से होकर आज की सेमी हाइस्पीड ट्रेन वंदे भारत को भी चलाया जा रहा है। अगर 120 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चलने वाली ट्रेन के साथ बालासोर के पास इतना खौफनाक हादसा हो सकता है तो फिर वंदे भारत के साथ क्या होगा। ऐसा सोचकर ही आम लोग सिहर उठेंगे। जरूरी यही है कि रेल बोर्ड के सदस्यों को इस दिशा में त्वरित सक्रिय होना चाहिए तथा किन कारणों से यह हादसा हुआ है उसको तुरंत तय किया जाना चाहिए। हो सकता है कि किसी ने जानबूझकर ही शरारत की हो। वैसे भी शहरी माओवादियों को ठिकाने लगाने का अभियान चल रहा है जिससे वे सरकार से नाराज चल रहे हैं। हो सकता है कि रेलवे अधिकारियों की आड़ में ही किसी ने ऐसा घिनौना खेल खेला हो। बहरहाल, जरूरी यही है राहत एवं बचाव के काम को पूरा करके रेलवे की अबाध गति को चालू किया जाए ताकि राह में अटके हुए यात्रियों को उनके मुकाम तक पहुंचाया जा सके। इसके साथ ही घायलों के इलाज की समुचित व्यवस्था हो तथा जिन्होंने अपनों को खोया है, उनके घावों पर मरहम लगाने की दिशा में पर्याप्त मुआवजे का भुगतान किया जाए।