आदिवासियों का खास पर्व है ‘सरहुल’
प्रकृति पर्व 'सरहुल' पर्व प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होकर चैत्र पूर्णिमा के दिन संपन्न होता है।
सूत्रकार, शिखा झा
रांची : प्रकृति को पूजते हुए झारखण्ड में कई सारे त्योहार मनाये जाते है। उनमे से एक मुख्य त्योहार है जो की पुरे झारखण्ड में पुरे हर्सोल्लास और धूम धाम के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार का लोग साल भर इंतज़ार करते हैं। इस पर्व को लोग ‘सरहुल’ के नाम से जानते है। सरहुल आदिवासियों का वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। पतझड़ के बाद पेड़-पौधे की टहनियों पर हरी-हरी पत्तियां जब निकलने लगती है। आम के मंजर तथा सखुआ और महुआ के फुल से जब पूरा वातावरण सुगंधित हो उठता है। तब मनाया जाता है आदिवासियों का प्रमुख “प्रकृति पर्व सरहुल“ यह पर्व प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होकर चैत्र पूर्णिमा के दिन संपन्न होता है। इस पर्व में “साल अर्थात सखुआ” के वृक्ष का विशेष महत्व है। आदिवासियों की परंपरा के अनुसार इस पर्व के बाद ही नई फसल विशेषकर गेहूं की कटाई आरंभ की जाती है। इसी पर्व के साथ ही आदिवासियों का शुरू होता है “नव वर्ष” सरहुल पर्व प्रमुख रूप से झारखण्ड राज्य में मनाया जाता है।इसके अलावे मध्य प्रदेश , ओडिशा ,पश्चिम बंगाल में भी मनाया जाता है। सरहुल का पर्व झारखंड के आदिवासी समुदाय मुंडा, उरांव और संथाल जनजातियों के बीच मनाया जाता है।
ये भी पढ़ें : सरहुल शोभायात्रा में दिखेंगी पारंपरिक झलक
सरहुल का पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है।सरहुल पर्व के पहले दिन मछली के अभिषेक किए हुए जल को घर में छिड़का जाता है। दूसरे दिन उपवास रखा जाता है और वहीं तीसरे दिन पूजा स्थल पर सरई के स्कूलों की पूजा की जाती है साथ ही मुर्गी की बलि दी जाती है। तथा चावल और बलि की मुर्गी का मांस मिलाकर नामक खिचड़ी बनाई जाती है। जिसे प्रसाद के रूप में गांव में वितरण किया जाता है। वहीं चौथे दिन गिडिवा नामक स्थान पर सरहुल फूल का विसर्जन किया जाता है। सरहुल पूजा के दौरान ग्रामीणों द्वारा पूजा स्थान को घेरा जाता है। सरहुल में एक वाक्य प्रचलन है; नाची से बांधी अर्थात जो नाचेगा वही बचेगा। ऐसी मान्यता है कि आदिवासियों का नृत्य ही संस्कृति है। इस पर्व में झारखंड और अन्य राज्यों में जहां यह पर्व मनाया जाता है। जगह-जगह नृत्य किया जाता है महिलाएं सफेद मैं लाल पाढ़ वाली साड़ी पहनती है और नृत्य करती हैं। सफेद पवित्रता और शीतलता का प्रतीक है जबकि लाल संघर्ष का प्रतीक है।