रांची : अपनी विशिष्ट संस्कृति और सभ्यता के लिए विख्यात उत्कल भूमि जिसकी स्थापना 1 अप्रैल 1936 में हुई थी आज अपने चरम उत्कर्ष पर अवस्थित है। केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड के ब्राम्बे कैंपस के प्रांगण में हुए उत्कल दिवस समारोह में इन सभी तथ्यों से माननीय अतिथियों के द्वारा छात्र-छात्राओं को अवगत कराया गया इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर क्षतिभूषण दास ने छात्र-छात्राओं को अपनी संस्कृति व विरासत को सहेज कर रखने की अपील की व अपने संस्कृति से अलग ना होने की भी अभिलाषा प्रकट की। इस मौके पर केंद्रीय विश्वविद्यालय के अन्य प्रोफेसर जैसे प्रो. कुंज बिहारी पांडा, प्रो. तपन कुमार बसंतिया, प्रो. सुभाष यादव भी मौजूद थे।
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इस कार्यक्रम में उड़ीसा के विभिन्न क्षेत्रों के खान-पान एवं वेशभूषा का भी प्रदर्शन किया गया। आयोजन में मुख्य आकर्षण का केंद्र ओडिसी नृत्य व संबलपुरी नृत्य प्रस्तुति थी। और साथ ही उड़ीसा के कई सारे त्योहारों से भी विद्यार्थियों को परिचित कराया गया। कार्यक्रम के समापन करते हुए प्रो. प्रदीप कुमार परदिया के द्वारा छात्र-छात्राओं को शपथ दिलाया गया कि वह अपने संस्कृति व विरासत को हमेशा सहेज कर जीवंत रखेंगे।।