जमीन कब्जा मामलाः विश्वभारती प्रबंधन का सुझाव, कोर्ट जाएं या बातचीत से सुलझाएं अमर्त्य सेन

नोबल पुरस्कार प्राप्त अमर्त्य सेन पर जमीन पर अवैध कब्जा करने का आरोप

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शांतिनिकेतन (बीरभूम) : विश्वभारती विश्वविद्यालय प्रबंधन ने नोबल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री और प्रोफेसर अमर्त्य सेन से जमीन विवाद को या तो अदालत के माध्यम से या आपसी बातचीत से सुलझाने की बात कही है। विश्वभारती की तरफ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में स्पष्ट रूप से दावा किया गया कि विश्वभारती की कुछ जमीन पर कब्जा कर लिया गया है। इसे पुनरुद्धार करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।

विश्वभारती प्रबंधन की ओर से रविवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति में प्रो. अमर्त्य सेन से कहा गया कि अब दो विकल्प खुले हैं। पहला यह है कि प्रो. सेन अदालत जाएं और इसे साबित करें अथवा विश्वभारती प्रबंधन के साथ खुले तौर पर मामले को निपटाने के लिए जो भी आवश्यक हो वह करें।

बता दें, विश्वभारती विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रो. विद्युत चक्रवर्ती ने नोबल पुरस्कार प्राप्त अमर्त्य सेन पर विश्वभारती की जमीन पर जबरन कब्जा करने का आरोप लगाया है जिसे लेकर विवाद शुरू हो गया है। इस विवाद में नोबेल विजेता अर्थशास्त्री ने पहले ही इशारा किया कि दिल्ली में कुछ लोग उन्हें पसंद नहीं करते। इसलिए इस तरह का विवाद खड़ा किया जा रहा है।

विश्वभारती प्रबंधन ने प्रो. अमर्त्य सेन पर विश्वभारती की 13 डिसमिल जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा करने का आरोप लगाया है। इसे लेकर विश्वभारती प्रबंधन की ओर से पिछले मंगलवार को अमर्त्य सेन के शांतिनिकेतन स्थित घर के पते पर पत्र भेजकर उस जमीन को जल्द लौटाने को कहा गया।

विश्वभारती प्रबंधन की तरफ से अमर्त्य सेन को पत्र लिख कर कड़े शब्दों में कहा गया कि वे उस जमीन को जितनी जल्दी हो सके, लौटा दें अन्यथा देश का कानून आपको और विश्वभारती, जिसे आप बहुत प्यार करते हैं, दोनों को ही विडंबना में डाल सकता है। आपको पता है कि अवैध तरीके से कब्जा करके रखी गई जमीन को छुड़ाने के लिए देश में निर्दिष्ट कानूनी प्रक्रिया है।

विश्वभारती का दावा है कि 1943 के समझौते के मुताबिक प्रोफेसर अमर्त्य सेन के पिता आशुतोष सेन को 1.38 एकड़ नहीं, बल्कि 1.25 एकड़ जमीन का पट्टा दिया गया था। अमर्त्य सेन को पिछले दो पत्रों में इस मामले की जानकारी दी जा चुकी है। इतना ही नहीं, बल्कि 1943 के समझौते और 2006 की कर्म समिति के प्रस्ताव में आशुतोष या अमर्त्य सेन को विश्वभारती की किसी भी जमीन का मालिक घोषित नहीं किया गया था।

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विश्वभारत प्रबंधन ने प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया कि अमर्त्य के ‘प्रतिची’ घर की वास्तविक जमीन 1.25 एकड़ है। वहां 13 शतक जमीन पर अवैध कब्जा किया गया है। इससे पहले भूमि विवाद में नोबेल विजेता अर्थशास्त्री ने इशारा किया था कि दिल्ली में कुछ लोग उन्हें पसंद नहीं करते। इसलिए इस तरह का विवाद खड़ा किया जा रहा है। हालांकि, विश्वभारती द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति ने विवाद  को और हवा दे दी है।

इधर, बीरभूम जिला प्रशासन ने अमर्त्य सेन के खिलाफ अवैध जमीन अधिग्रहण के आरोप का खंडन किया है। इस संबंध में एक आधिकारिक दस्तावेज भी सामने आया है। इससे पता चलता कि शांतिनिकेतन में 1.38 एकड़ जमीन लंबी अवधि के लिए आशुतोष सेन को लीज पर दी गई थी।

बीरभूम के जिलाधिकारी बिधान राय ने कहा, प्रशासन के पास उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, अमर्त्य सेन के परिवार के पास लंबी अवधि के पट्टे पर 1.38 एकड़ जमीन है। वहीं, जिला भूमि और भूमि सुधार विभाग सूत्र ने यह भी दावा किया कि सेन परिवार को पट्टे पर दी गई 1.25 एकड़ जमीन के पक्ष में कोई ‘रिकॉर्ड’ नहीं है।

विश्वभारती की जनसंपर्क अधिकारी महुआ बंद्योपाध्याय ने कहा, भू-राजस्व विभाग का जो दस्तावेज मीडिया में प्रकाशित हुआ है, वह 1943 की लीज का है। 2006 में प्रोफेसर सेन ने हार्वर्ड से विश्व भारती के तत्कालीन कुलपति रजतकांति राय को एक पत्र लिखा था। उसके बाद विश्वभारती की अनुमति से 1.25 एकड़ जमीन सेन परिवार के नाम पर नामांतरण की अनुमति दी गई थी। बाकी 13 डिसिमेल जमीन का कोई म्युटेशन नहीं हुआ। इसलिए उस जमीन को वापस करना पड़ेगा।

ऐसी स्थिति में विश्वभारती विश्वविद्यालय द्वारा रविवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार विश्वभारती के पास 1134 एकड़ जमीन है। जिसमें से 77 एकड़ जमीन पर कब्जा किया गया था। केंद्र सरकार के आदेश के बाद विश्वभारती ने अवैध कब्जाधारियों को बेदखल करने के लिए अभियान चलाया था। इसी आधार पर अमर्त्य को पत्र दिया गया है। प्रो. सेन को लिखे पत्र में विश्वभारती प्रबंधन ने मोटे अक्षरों में लिखा कि अमर्त्य सेन का निवास स्थान प्राचीची जिस जमीन पर है, वह विश्वभारती की है।

वर्तमान में यह जमीन संबंधित भूमि एवं भू-राजस्व विभाग के अभिलेखों में अमर्त्य सेन के नाम पर नहीं, उनके पिता के नाम पर है। इसलिए इसमें बेटे का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, इस तर्क को आम निवासियों ने ‘हास्यास्पद’ बताया है। उनका यह भी मानना है कि विश्वभारती प्रबंधन ने नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री को पूर्व में ‘कब्जा’ की गई जमीन पुनरुद्धार करने को लेकर चेतावनी दी है।