गुजरात विधानसभा के चुनावी नतीजे आ चुके हैं। यह भी साफ हो गया कि हिमाचल में कांग्रेस ने बहुमत हासिल कर ली है। मतलब यह कि भाजपा की कोशिश गुजरात में कामयाब जरूर हुई लेकिन हिमाचल में नहीं चली। कांग्रेस को हिमाचल की जीत से जरूर थोड़ा बल मिलेगा लेकिन असली लड़ाई 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर है।
लोकसभा चुनाव की तस्वीर के बारे में कयास लगाने वालों को इस बात का इंतजार था कि गुजरात में मोदी का जादू कैसे काम करता है। मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने गुजरात विधानसभा के पुराने रिकार्ड तोड़ दिए, इससे भाजपा में भी उत्साह बढ़ा है। लेकिन इस बीच तृणमूल कांग्रेस ने एक बड़ी बात कांग्रेस के लिए कह दी है।
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष का मानना है कि मोदी को उनके गृहराज्य में पटखनी देने की कोशिश में कांग्रेस पूरी तरह नाकाम रही है। ऐसे में कुणाल का दावा है कि भाजपा विरोधी ताकत के रूप में कांग्रेस नहीं, बल्कि तृणमूल कांग्रेस काफी कारगर रही है।
उनका तर्क है कि तमाम विरोधी ताकतों को एक मंच पर आकर तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी का समर्थन करना चाहिए। कुणाल का मानना है कि इससे भाजपा की बढ़ती ताकत को कुंद किया जा सकेगा।
इसमें कोई दो मत नहीं कि तमाम कोशिशों के बावजूद पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में भाजपा वह मुकाम हासिल नहीं कर सकी जिसका दावा वह कर रही थी, क्योंकि ज्यादातर भाजपा नेताओं को लगता था कि बंगाल विधानसभा का चुनाव जीतकर भाजपा ही सरकार बनाएगी।
लेकिन ममता बनर्जी के जादू के आगे भाजपाई प्रभाव फीका रहा। इसी बात की ओर कुणाल ने सबका ध्यान आकृष्ट कराने की कोशिश की है। दरअसल राजनीति में कोई भी फारमूला चिरस्थायी नहीं हो सकता। दो विपरीत ध्रुवों पर काम करने वाले दलों को भी सत्ता सुख के लिए एक-दूसरे का हाथ थामते अतीत में देखा जा चुका है।
ऐसे में अगर कांग्रेस समेत देश की तमाम बड़ी या छोटी पार्टियां एक आम राय के तहत किसी एक दल के नेता को भावी पीएम के तौर पर पेश करती हैं तो चमत्कार की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। अतीत में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के साथ भाजपा और वामपंथियों को भी एक ही मंच पर देखा गया है, जो कम से कम सैद्धांतिक रूप से अजीब लगता है।
ऐसे में कुणाल घोष अगर ममता के नेतृत्व में ही समूचे विपक्ष को लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह दे रहे हैं तो इसमें अजूबा कुछ नहीं है। लेकिन इसके लिए पहले कांग्रेस आलाकमान को समझाने-बुझाने की जरूरत पड़ेगी। जरूरत है व्यंग्य छोड़कर विनयी होने की।
देश हित में अगर किसी क्षेत्रीय दल की बढ़ती ताकत को बड़े दलों ने स्वीकृति देना सीख लिया तो सत्ता परिवर्तन अवश्यंभावी हो जाएगा। लेकिन इसके लिए काफी सूझबूझ की जरूरत होगी, कई मामलों में निजी स्वार्थों का परित्याग भी करना पड़ सकता है।
अगर कांग्रेस समेत बाकी दलों को इस नए समीकरण के लिए राजी करा लिया जाए तो भाजपा के विकल्प के तौर पर ममता बनर्जी को जरूर पेश किया जा सकेगा। और इस तरह संभव है कि तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी देश की भावी प्रधानमंत्री बन जाएं।