कौन बुझाए समाज को दूध पिलाने वाले अभागों की प्यास

कोलकाता या हावड़ा से खटालों को हटा दिया गया

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राकेश पांडेय

कोलकाता:  खटाल…! कहीं कहीं बड़े स्तर पर इसे डेयरी भी कहा जाता है। यह शब्द सुनते ही कई संभ्रांत लोगों के दिमाग में एक बदबू सा घर कर जाता है। लेकिन अगर खटाल न रहे तो फिर लोगों को अपने बच्चों के लिए असली दूध कहां से मिलेगा, लोग यह नहीं सोचते।

अगर आप पैकेट का दूध भी पी रहे हैं तो कहीं ना कहीं इन खटालों से हो करके ही यह आपके घर तक पहुंच रहा है। आपरेशन सनसाइन के बाद से महानगर कोलकाता या हावड़ा से खटालों को हटा दिया गया।

मजबूरन दूध के कारोबारियों को उपनगरीय़ इलाकों में अपना आशियाना बसाना पड़ा जो प्रायः हुगली, हावड़ा या उत्तर और दक्षिण चौबीस परगना के देहाती
इलाकों में रहते हैं।

कड़ी मेहनत

सुबह मवेशियों को चारा डालने, गोबर साफ करने और दूध दूहने के बाद कैन में लेकर महानगर के दूध बाजार तक प्रोडक्ट पहुंचाने का काम आमतौर पर उपनगरीय ट्रेनों के जरिए होता है। दोपहर तक दूध बेचकर किसी तरह भागे-भागे आना और फिर शाम ढलने के साथ दूध लेकर बाजार तक पहुंचाने का क्रम रोजाना की जी-तोड़ मेहनत का नमूना है। मगर कमाई सिफर बताई जाती है।

बदहाल जिंदगी

खटाल में पल रहे जानवरों की स्थिति तो अच्छी है, मगर उन जानवरों की सेवा करने वाले लोगों की स्थिति अच्छी नहीं है। ये लोग रात-दिन मेहनत करते हैं।

खटालों में गाय-भैसों की सेवा करने वाले लोगों का अधिकतम समय गोबर साफ करना और खटालों की सफाई में निकल जाता है। ये लोग दिन-रात मेहनत करके दूसरे तक दूध तो पहुंचा देते हैं, लेकिन खुद चैन की जिंदगी नहीं जी पाते हैं।

कमाई क्या है?

इनकी स्थिति देखने के बाद तो ऐसा लगता है कि उनकी कमाई राम भरोसे है। इनका आरोप है कि मेहनत भले ही हम करें लेकिन दूध किस बाजार में बिकेगा और इसकी कीमत क्या होगी-यह कोई और तय करेगा।

मार्केट में जाने से पहले तो इनको यह भी नहीं पता रहता है कि इनके  दूध की कीमत आज क्या है। रेट यह तय नहीं करते हैं।

आरोप है कि रेट वह तय करता है जो खटालों की जिंदगी से दूर बाजार का मसीहा बन बैठा है। ग्वालों का कहना है कि हमारी तकदीर (कमाई) का फैसला किसी और के हाथों में है। आइए बताते हैं, उनकी कहानी उनकी ही जुबानी।

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रिसड़ा के बिचाली गोला के रहने वाले बीरबल यादव ने बताया कि उनके पास 8 गाय और 9 भैंसे हैं। उन्होंने बताया कि कब सुबह और शाम हुई- यह पता ही नहीं चलता है। उनका कहना है कि इस काम में इनकम फिक्स नहीं होता है।  किसी महीने में ठीकठाक तो किसी महीने में कम।

वहीं, पास में रहने वाले प्रेम यादव ने बताया कि इस काम में पहले इनकाम होता था, लेकिन अब नहीं होता है। उन्होंने बताया कि अब एक मवेशी को खरीदने में हालत खराब हो जाती है।

क्या आती है लागत

प्रेम ने बताया कि आजकल एक गाय की कीमत 60 हजार से 1 लाख तक है और एक भैंस की कीमत 80  हजार से 1.20 लाख तक है। उन्होंने बताया कि एक गाय या भैंस पर एक दिन का खर्च प्रतिदिन 200 से 300 रुपये तक लगता है।

तारकेश्वर यादव ने बताया कि आजकल इतनी महंगाई हो गयी है कि इनकाम किसे कहते है, यह समझ में नहीं आ रहा है। उन्होंने बताया कि पहले भूसा 8 से 9 रुपये किलो बिकता था, लेकिन आज के दिन में वह 14 से 15 रुपये किलो बिक रहा है।

इसके बाद  मार्केट में दूध के दामों का उतार -चढ़ाव। उन्होंने बड़ी ही निराश भाव से कहा कि कभी-कभार तो ऐसा मन करता है ये सभी काम छोड़ कर अन्य कोई काम शुरू कर दूं।

उसी इलाके के रहने वाले हर्ष यादव ने बताया कि इस काम में इनकम नहीं है। काफी जमाने से यह काम करते आ रहा हूं, इसीलिए इस धंधे से जुड़ा हुआ हूं। अगर मवेशी बीमार पड़ गए तो कितना खर्च आएगा, यह पता नहीं चल पाता है।

मार्केट से बेहतर है लोकल इलाका 

उन्होंने बताया कि पहले वह दूध को मार्केट में देते थे लेकिन मन मुताबिक काम नहीं होने के कारण वे लोकल में ही बेचना शुरू कर दिये हैं। इनका मानना है कि किसी बाजार में जाने का जोखिम उठाने से बेहतर है कि लोकल इलाके में ही दूध का कारोबार कर लिया जाए।

इससे आवाजाही की समस्या से बचाव के साथ ही पैसों की भी थोड़ी बचत हो जाया करती है। कुल मिलाकर देखा यही जाता है कि लोगों को दूध पिलाने का काम करने वाले खुद अपने लिए दो जून की रोटी भी ठीक से नहीं जुगाड़ पाते।